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Pathaan Film Controversy: शाहरुख के बुढ़ापे में लिपटा पठान का बेशर्म रंग

कंतारा की सफलता पर अनुराग कश्यप के बिगड़े बोल को लेकर विवाद अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि पठान फिल्म के गीत ‘बेशर्म रंग...’ ने एक नये विवाद को हवा दे दी है। बड़े-बड़े स्टार इस विवाद में कूदते नजर आ रहे हैं।

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Pathaan Film Controversy shahrukh khan of besharam rang

Pathaan Film Controversy: अमिताभ बच्चन कह रहे हैं कि सिल्वर स्क्रीन सियासी जंग का मैदान बन रही है। वहीं, शाहरुख अचानक वैज्ञानिक बनकर मौसम बिगड़ने की चेतावनी और कुर्सी की पेटी बॉंध लेने की सलाह दे रहे हैं, जिसकी ज्यादा जरूरत अब शायद खुद उन्हें ही पड़ने वाली है। ट्वीटर पर अब तक करीब 48 हजार यूजर्स #BoycottPathaan का इस्तेमाल कर चुके हैं।

चुनौती देने वाली हैं गाने की पंक्तियॉं

यशराज फिल्म्स के ऑफिशियल यूट्यूब चैनल पर बेशर्म रंग गाने को बीते तीन दिनों में करीब सवा पॉंच करोड़ लोगों ने देखा है। इनमें प्रशंसक और आलोचक, दोनों शामिल हैं। दिलचस्प रूप से इनमें से ज्यादातर की सराहना या आलोचना के केंद्र में दीपिका की मादकता, बिकनी का भगवा रंग और शाहरुख का बुढ़ापा ही है।

बहुत कम लोग होंगे, जिन्होंने 'बेशर्म रंग' गाने की बाकी पंक्तियों पर भी ध्यान दिया होगा। गाने के शब्द ही चुगली करने के लिए काफी हैं कि जिस पॉजिटिविटी को शाहरुख अपने और अपने जैसे लोगों के जीवित होने का प्रमाण बता रहे हैं, गीत में कैसे उसकी धज्जियॉं उड़ायी गयी हैं।

गाने के बोल हैं, '' नशा जो चढ़ा शरीफी का, उतार फेंका है/बेशर्म रंग कहॉं देखा दुनिया वालों ने/ है जो सही वो करदा नहीं, गलत होने की यही तो शुरुआत है...''। निश्चय ही शाहरुख खान ने अपने रंग दिखा दिये, अब दुनिया के रंग देखेंगे।

मुस्लिम संगठन भी विरोध में

दीपिका की बिकिनी को बेशक कुछ लोग भगवा की बजाय नारंगी रंग का बताकर फिल्म का बचाव कर रहे हैं, लेकिन पहले वाला समूह ज्यादा विशाल और आक्रामक हे। इसलिए, इसका बॉयकॉट करने, इस पर बैन लगाने, इसे रिलीज करने वाले थिएटर फूंक देने जैसी बातें कहीं जा रही हैं। अभी तक इस तरह के विरोध को कट्टरपंथी हिंदू प्रतिक्रिया का नाम देकर खारिज कर देने की कोशिशें की जाती रही हैं।

लेकिन, बेशर्म रंग गाने का विरोध मुस्लिम संगठनों द्वारा भी किया जा रहा है। मध्य प्रदेश का उलेमा बोर्ड प्रदेश में और ऑल इंडिया मुस्लिम त्यौहार कमेटी जैसे संगठन पूरे देश में पठान की रिलीज न होने देने की चेतावनी दे रहे हैं। उनका कहना है कि शाहरुख खान हो या कोई भी खान, मुस्लिम धर्म को बदनाम करने की इजाजत किसी को नहीं दी जा सकती।

बढ़ रहा है बॉयकॉट का ट्रेंड

पिछले कुछ सालों में फिल्मों और फिल्मी हस्तियों के बॉयकॉट का जो ट्रेंड चला है, उसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। यह सिनेप्रेमियों के बदलते मिजाज का प्रतीक है, जो खराब, अतार्किक, अप्रासंगिक, एजेंडावादी सिनेमा को स्वीकार करने के लिए जरा भी तैयार नहीं है और न ही अपने प्रिय सितारों की अमर्यादित टिप्पणियों या व्यवहार को। उसके पास आपकी गलतियों और मनमानियों के खिलाफ विरोध का एक ही तरीका है, आपकी फिल्मों का बॉयकॉट। छपाक, लक्ष्मी बंब, लाल सिंह चड्ढा, रक्षा बंधन जैसी फिल्मों की नाकामयाबी इस बात का प्रमाण है कि अब आप अपनी लार्जर दैन लाइफ इमेज की आड़ में दर्शकों को और बेवकूफ नहीं बना सकते।

प्रचारनीति का हिस्सा होता है विवादों को आमंत्रण

जहॉं तक सिनेमा में सियासत और समाज में नकारात्मकता का सवाल है, तो बीते एक दशक की ऐसी तमाम घटनाओं पर नजर डालें। खुद ही समझ आ जाता है कि इसकी शुरुआत कहॉ से होती है। 'बदनाम हुए हैं तो क्या नाम नहीं होगा...' की तर्ज पर आप खुद ऐसे दृश्य या गीत फिल्माते हैं, जिनके बारे में आप जानते हैं कि इन पर विवाद हो सकता है। बल्कि आप चाहते हैं कि विवाद हो और आपको मुफ्त का प्रचार मिले। इसके लिए विरोध और विवादों को आप खुद ही आमंत्रित करते हैं और कई बार तो प्रायोजित भी।

बहुत पुरानी बात है, अपने जमाने के ग्रेट शोमैन माने जाने वाले फिल्मकार, राज कपूर की सत्यम, शिवम, सुंदरम प्रदर्शित ही हुई थी। एक साधु उनके पास जाकर उन्हें खरी-खोटी सुनाने लगा कि इसमें नग्नता दिखाकर उन्होंने धर्म और संस्कृति का अपमान किया है। राजकपूर ने उसे प्यार से समझाया कि वह पहले फिल्म देख ले, उसके बाद अपनी राय दे। उन्होंने उसे अपने पास से फिल्म का टिकट लेकर भी दिया। उसके जाने के बाद वह अपने सहायक से बोले कि टिकट के पैसे को फिल्म की पब्लिसिटी के खर्च में लिख देना।

मौजूदा दौर में, विवादों को न्यौता देने के मामले में संजय लीला भंसाली सबसे आगे हैं। रामलीला, जो बाद में "गोलियों की रासलीला राम-लीला" के नाम से रिलीज हुई, से उन्हें विवादों का फायदा उठाने का रास्ता मिल गया। पद्मावत की शूटिंग के पहले दिन ही सेट पर पड़े थप्पड़ को उन्होंने खूब भुनाया।

अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर उनके पक्ष में खेमेबंदी करने वालों में से किसी ने उनसे यह नहीं पूछा कि थप्पड़ मारने और विरोध करने वालों को शूटिंग से पहले ही कैसे पता चल गया कि किस बात का विरोध करना है। बाद में इस फार्मूले को उन्होंने बाजीराव मस्तानी, गंगूबाई काठियावाड़ी जैसी फिल्मों में भी आजमाया और सफल रहे।

फिल्मकारों को दिखानी होगी संजीदगी

लेकिन अब यह आइडिया बैक फायर करने लगा है। जैसे, तनिष्क ज्वैलरी के विज्ञापनों और आदिपुरुष के टीजर को मिली तीखी प्रतिक्रियाओं ने उन्हें वापस लौटने और अपने सुर बदलने के लिए मजबूर कर दिया। इससे पता चलता है कि अभिव्यक्ति की आजादी या रचनात्मक स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी कहने या करने का जमाना लद चुका है। अब प्रशंसक अपने फिल्मी नायकों से रील और रीयल लाइफ, दोनों में जिम्मेदार व्यवहार की अपेक्षा करते हैं। अगर फिल्मी नायक इन अपेक्षाओं को पूरा करने के प्रति गम्भीरता नहीं दिखाते तो जनता इनको सही जगह दिखा देती है।

यह भी पढ़ें: 'पठान' के गाने 'बेशर्म रंग' को मुकेश खन्ना ने कहा 'अश्लील', बोले शाहरुख खान के कर्मों का हिसाब होगा

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English summary
Pathaan Film Controversy shahrukh khan of besharam rang
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