MCD Election Results: दिल्ली में भाजपा की रणनीति फिर फेल क्यों हुई?
दिल्ली विधानसभा से भाजपा 24 साल से सत्ता से बाहर है। अब 15 साल सत्ता में रहने के बाद एमसीडी में भी सत्ता खो दी है। कचरा, पार्किंग, और सफाई कर्मचारियों को स्थाई नौकरी आम आदमी पार्टी के प्रमुख चुनावी मुद्दे थे।
दिल्ली, पंजाब सरकारों के बाद 15276 करोड़ के बजट वाली दिल्ली नगर निगम पर भी आम आदमी पार्टी का कब्जा हो गया है। जिस BJP का पूरे देश में सिक्का चलता है, उसी BJP को देश की राजधानी दिल्ली में एक बार फिर आम आदमी पार्टी से शिकस्त मिली है।
दिल्ली विधानसभा से भाजपा 24 साल से सत्ता से बाहर है। अब 15 साल सत्ता में रहने के बाद एमसीडी में भी सत्ता खो दी है। कचरा, पार्किंग, अतिक्रमण, भ्रष्टाचार और सफाई कर्मचारियों को स्थाई नौकरी आम आदमी पार्टी के प्रमुख चुनावी मुद्दे थे। जिस तरह 2003 में मध्यप्रदेश में दिग्विजय सरकार बिजली, पानी, सड़क पर हार गई थी, और तब से बहुमत को तरस रही है, वैसे ही 15 साल से एमसीडी पर काबिज रही भाजपा इन्हीं पांच मुद्दों पर चुनाव हार गई।
2015 में दिल्ली विधानसभा में स्पष्ट बहुमत के बावजूद 2017 में आम आदमी पार्टी दिल्ली की तीनों नगर निगमों में हार गई थी। 2020 के विधानसभा चुनावों में केजरीवाल से तीसरी बार हार के बाद केंद्र की भाजपा सरकार कुछ नई खिचड़ी पका रही थी। उसी रणनीति के अंतर्गत तीनों नगर निगमों का विलय कर के एक नगर निगम बनाई गई थी।
भाजपा यह मान कर चल रही थी कि 2017 की तरह वह नगर निगम का चुनाव जीत जाएगी और दिल्ली के मेयर को मुख्यमंत्री के बराबर दर्जा दे कर केजरीवाल का कद छोटा किया जा सकेगा। लेकिन अब भाजपा को पछतावा हो रहा होगा कि अगर वह तीनों नगर निगमों का विलय नहीं करती, तो कम से पूर्वी दिल्ली की नगर निगम पर उसका कब्जा होता।
भाजपा ने नगर निगम के चुनाव भी ऐसे समय पर करवाए, जब केजरीवाल गुजरात विधानसभा में व्यस्त थे। लेकिन केजरीवाल ने मनीष सिसोदिया, राघव चड्ढा, संजय सिंह, आतिशी मर्लेना और सौरभ भारद्वाज के कंधों पर एमसीडी का जिम्मा सौंप कर खुद को गुजरात में बनाए रखा।
केजरीवाल भले ही गुजरात में बुरी तरह हार रहे हैं, लेकिन गुजरात की बदौलत आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करवाने में कामयाब हो रहे हैं। जिसे वह आने वाले समय में राजनीतिक तौर पर भुनाएंगे कि प्रधानमंत्री मोदी के राज्य ने आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाया है। दिल्ली नगर निगम के चुनावों में मनीष सिसोदिया, राघव चड्ढा, संजय सिंह, आतिशी मर्लेना और सौरभ भारद्वाज आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व के तौर पर उभरे हैं, जिन्हें केजरीवाल विभिन्न राज्यों का प्रभारी बना कर अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करेंगे।
दिल्ली नगर निगम के चुनाव नतीजे भाजपा के चार सांसदों मीनाक्षी लेखी, प्रवेश वर्मा, हंस राज हंस और रमेश विधूड़ी के लिए खतरे की घंटी है। लोकसभा चुनाव में इन सभी के टिकट कट सकते हैं, क्योंकि इन सभी के निर्वाचन क्षेत्रों में आम आदमी पार्टी भाजपा पर भारी पड़ी। मीनाक्षी लेखी के संसदीय क्षेत्र की 25 में से भाजपा सिर्फ 5 सीटें जीतीं।
केन्द्रीय मंत्रिमंडल से डाक्टर हर्षवर्धन को हटा कर उन्हें मंत्री बनाया गया था, जबकि हर्षवर्धन अपनी लोकसभा सीट पर प्रभाव बनाए रखने में कामयाब रहे। प्रवेश वर्मा की लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली 38 सीटों में से भाजपा सिर्फ 13 वार्ड जीती, हंस राज हंस के 43 वार्डों में से भाजपा सिर्फ 14 वार्ड जीती। इसी तरह रमेश विधूड़ी के निर्वाचन क्षेत्र के 37 वार्डों में से भाजपा सिर्फ 13 वार्ड जीती है। जबकि गौतम गंभीर का रिपोर्ट कार्ड सबसे बेहतर रहा, जिनके निर्वाचन क्षेत्र की 36 में से 22 सीटें भाजपा जीती। हर्षवर्धन 30 में से 16 और मनोज तिवारी भी 41 में से 21 सीटें जितवाने में कामयाब रहे।
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इन चुनावों ने यह भी साबित किया कि डाक्टर हर्षवर्धन और मनोज तिवारी बेहतर प्रदेश अध्यक्ष साबित होते। 2017 के नगर निगम चुनावों और 2019 के लोकसभा चुनावों के समय मनोज तिवारी प्रदेश भाजपा अध्यक्ष थे। 2020 में उन्हीं के अध्यक्षीय कार्यकाल में भाजपा विधानसभा चुनाव हार गई तो उन्हें अध्यक्ष पद से मुक्त कर दिया गया था।
तिवारी की जगह पर आदेश गुप्ता को अध्यक्ष बनाया जाना तीस साल पुरानी राजनीति पर लौटना था, जब दिल्ली में बनिया या पंजाबी ही प्रदेश भाजपा अध्यक्ष हुआ करते थे। जबकि पिछले तीस सालों में दिल्ली का जातीय संतुलन पूरी तरह बदल चुका है, दिल्ली में पूर्वांचलियों का बोलबाला है। भाजपा बार बार चेहरा बदल कर भी खुद को कमजोर करती रही है। नगर निगम में भाजपा की हार का एक बड़ा कारण पिछली नगर निगमों का भ्रष्टाचार तो है ही, कोई बड़ा चेहरा नहीं होना भी एक कारण रहा।
इस बार के चुनाव में भाजपा दिल्ली के उन इलाकों में भी पीछे रही, जहां उनकी अच्छी पकड़ मानी जाती थी। पश्चिमी दिल्ली के कई वार्ड जहां सिख मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं, वहां भी भाजपा पिछड़ी। हालांकि नगर निगम चुनावों में पिछली बार से भाजपा का वोट शेयर आंशिक रूप से बढ़ा है। विधानसभा चुनावों के मुकाबले भी उस का वोट आधा प्रतिशत बढा है।
आम आदमी पार्टी का वोट पिछले एमसीडी चुनावों में 25.08 प्रतिशत से बढ़ कर 42.05 हुआ है। यह रिकार्ड वृद्धि है, लेकिन विधानसभा चुनावों से तुलना करें, तो आम आदमी पार्टी का वोट घटा है। विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को 53.8 प्रतिशत वोट मिला था, यानि उस का 11 प्रतिशत वोट घटा है। कांग्रेस को पिछली बार एमसीडी चुनाव में 21 प्रतिशत, विधानसभा चुनाव में 4 प्रतिशत और अब एमसीडी चुनाव में 12 प्रतिशत वोट हासिल हुए। अन्य उम्मीदवार 15 से 7.18 पर आ गए , यानी कांग्रेस और अन्य के 17 प्रतिशत वोट आम आदमी पार्टी को चले गए।
भाजपा में अगर चार सांसदों मीनाक्षी लेखी, प्रवेश वर्मा, रमेश विधूड़ी और हंस राज हंस की राजनीतिक स्थिति खराब हुई है, तो आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं को भी अपने विधानसभा क्षेत्रों में शर्मसार होना पड़ा है। उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चा चल रही है, लेकिन उनके विधानसभा क्षेत्र की 4 सीटों में से तीन आम आदमी पार्टी हार गई।
इसी
तरह
जेल
में
बंद
मंत्री
सत्येंद्र
जैन
के
विधानसभा
क्षेत्र
के
तीनों
वार्डों
में
आम
आदमी
पार्टी
के
उम्मीदवार
भाजपा
से
हार
गए।
जिस
आतिशी
मर्लेना
का
नाम
मेयर
पद
के
लिए
चल
रहा
है,
उनके
विधानसभा
क्षेत्र
कालकाजी
के
भी
तीनों
वार्डों
में
भाजपा
जीत
गई।
आम
आदमी
पार्टी
के
विधायक
अमानतुल्लाह
के
वार्ड
जाकिर
नगर
से
भी
कांग्रेस
जीत
गई।
एमसीडी
में
बहुमत
पाने
के
बावजूद
आम
आदमी
पार्टी
के
लिए
चिंता
की
बात
यह
है
कि
उसे
मुस्लिम
आबादी
वाले
इलाकों
में
हार
मिली
है।
दिल्ली
वक्फ
बोर्ड
के
अध्यक्ष
और
विधायक
अमानतुल्लाह
खान
के
विधानसभा
क्षेत्र
ओखला
में
AAP
पांच
में
से
एक
वार्ड
ही
जीत
पाई।
बाकी
चार
में
से
दो-दो
वार्डों
में
भाजपा
और
कांग्रेस
जीती।
इसी
इलाके
में
शाहीन
बाग
आता
है,
जहां
नागरिकता
संशोधन
क़ानून
के
खिलाफ
आंदोलन
चला
था।
दिल्ली दंगों के आरोपी पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन के वार्ड नेहरू विहार में आम आदमी पार्टी तीसरे नंबर पर रही। दंगों के बाद ताहिर को पार्टी से निकाल दिया गया था। फरवरी 2020 में नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ आंदोलन में भडके दंगों में 53 लोगों की मौत हो गई थी। हिंसा का सबसे ज्यादा असर शिव विहार, मुस्तफाबाद, सीलमपुर, भजनपुरा, विजय पार्क, यमुना विहार और मौजपुर में था, यहां आम आदमी पार्टी बुरी तरह हारी है।
इसी तरह सीलमपुर में निर्दलीय उम्मीदवार हज्जन शकीला ने जीत दर्ज की है। इस सीट पर आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार ने नाम वापस लेकर शकीला को समर्थन दिया था। दिल्ली में भाजपा की पसमांदा मुस्लिम राजनीति भी बुरी तरह पीटी। भाजपा ने चार पसमांदा उम्मीदवारों मुस्तफाबाद से शबनम मलिक, चांदनी महल से इरफान मलिक, कुरैशी नगर वेस्ट से शमीन रजा कुरैशी और चौहान बांगर से सबा गाजी को टिकट दिया था, चारों बुरी तरह हारे।
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)