इंडिया गेट से: पांच राज्यों में भाजपा से 100 सीटें छीन लेने का ममता का हसीन सपना
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने विपक्षी एकता पर अपना रूख कुछ साफ़ किया है। उन की योजना वाली विपक्षी एकता में फिलहाल कांग्रेस शामिल नहीं है। शायद वह कांग्रेस कम्युनिस्ट रहित सीमित विपक्षी एकता की हिमायती है। इस एकता का मकसद सिर्फ भाजपा की सीटें घटाना है, 2024 में सरकार बनाना नहीं है। ममता ने कहा है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, अखिलेश यादव और बाकी दूसरे नेता 2024 का लोकसभा चुनाव उनके साथ मिलकर लड़ेंगे।
इस ऐलान के वक्त ममता ने कांग्रेस या उससे जुड़े किसी भी नेता का नाम नहीं लिया, ऐसे में यह माना जाना चाहिए कि ममता और कांग्रेस के रिश्ते बिगड़ गए हैं। मैंने अपने पिछले एक लेख में यही कहा था कि ममता बनर्जी, केजरीवाल और केसीआर ऐसी विपक्षी एकता नहीं चाहते, जिस की अगुवाई कांग्रेस करे। ममता के इस बयान से पुष्टि हो गई है कि वह कांग्रेस और कम्युनिस्टों को विपक्षी एकता में शामिल नहीं करना चाहती, वह क्षेत्रीय दलों का तीसरा मोर्चा बनाना चाहती हैं। या बिना कोई मोर्चा बनाए आपसी समझ से मिल कर चुनाव लड़ना चाहती हैं। वह कुछ इस तरह चाहती हैं कि अखिलेश यादव, नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव बंगाल में यूपी बिहार के वोटरों को ममता के पक्ष में प्रभावित करें और वह उनके राज्यों में उनके पक्ष में बंगाली वोटों को प्रभावित करेंगीं। इसी तरह झारखंड मुक्ति मोर्चे और तृणमूल कांग्रेस में एक दूसरे के राज्य में मदद हो।
तब राजीव गांधी ने जीती थीं 400 सीटें
ममता बनर्जी ने नरेंद्र मोदी के लिए कहा है कि वह 300 सीटों पर गर्व कर रहे हैं, लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि राजीव गांधी ने भी 400 सीटें जीती थी। ममता और नीतिश कुमार बार कह रहे हैं कि भाजपा को 50 से 100 सीटों तक का नुक्सान करने की स्थिति में हैं। ममता बनर्जी ने पांच राज्यों में भाजपा को सौ सीटों का नुक्सान पहुँचाने की बात कही है। हालांकि उन्होंने वे पांच राज्य तो नहीं बताए, लेकिन शायद वह बंगाल, बिहार, झारखंड के साथ यूपी और दिल्ली को जोड़ रही हैं। साफ़ तौर पर उन्होंने जिन तीन राज्यों का नाम लिया है वे बंगाल, बिहार और झारखंड हैं, इन तीनों राज्यों की कुल 96 लोकसभा सीटें है और भाजपा इनमें से 47 जीती थीं। जिनमें बिहार की 40 में से 17, बंगाल की 42 में से 18 और झारखंड की 14 में से 11 सीटें हैं।
बिहार, बंगाल, झारखंड में भाजपा मजबूत
दावे करना अलग बात है, लेकिन उन दावों को हकीकत में बदलना अलग बात है। इन तीनों ही राज्यों में भाजपा अभी भी मजबूत स्थिति में है, अगर सीटें बढ़ेंगी नहीं, तो घटेंगी भी नहीं। 2014 में जब बिहार में भाजपा अकेले चुनाव लड़ी थी, तो उसे 21 सीटें मिलीं थीं, लेकिन 2019 में नीतीश कुमार के साथ मिलकर लड़ी तो 17 जीती, इसलिए भाजपा बिहार में अपनी स्थिति सुधारेगी नहीं, तो मौजूदा स्थिति बरकरार रखेगी। लगभग यही स्थिति बंगाल और झारखंड में रहेगी, ममता ने जोर लगा कर एक दो सीटें घटा भी दीं, उस से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। अगर ममता यूपी और दिल्ली से ज्यादा उम्मींद लगाए बैठी हैं, तो वह भी गलत फहमी में है, पिछले ग्यारह साल से दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है, इस बीच दो बार लोकसभा के चुनाव हो चुके, लेकिन दोनों ही बार भाजपा लोकसभा की सभी सात सीटें जीती। दिल्ली की जनता विधानसभा और लोकसभा को अलग अलग नजरिए से तौलती है, यह बात शायद ममता को समझ नहीं आ रही।
यूपी में भाजपा की स्थिति
जहां तक यूपी का सवाल है तो अभी हाल ही में रामपुर और आजमगढ़ की लोकसभा सीटों पर उप चुनाव हुए हैं। दोनों सीटें सपा की थीं, आजम खां और अखिलेश यादव ने विधानसभा में जीतने के बाद इन सीटों से इस्तीफा दिया था। आजमगढ़ यादव और दलित बहुल है और रामपुर मुस्लिम बहुल। दोनों सीटों पर भाजपा ने बाजी मारी है। आजमगढ़ तो मुलायम परिवार की परम्परागत अपनी सीट है, 2014 में नरेंद्र मोदी की लहर के बावजूद मुलायम सिंह यादव और 2019 में सपा प्रमुख अखिलेश यादव इस सीट से चुनाव जीते थे। उप चुनाव में भाजपा ने मुलायम सिंह के भतीजे धर्मेन्द्र यादव को हराया है। तो ममता बनर्जी को अखिलेश यादव से ज्यादा उम्मींद नहीं पालनी चाहिए।
यूपी, बिहार, बंगाल, झारखंड और दिल्ली की कुल 181 लोकसभा सीटें हैं, 2019 में भाजपा 116 सीटें जीतीं थीं। ममता, नीतीश, तेजस्वी, हेमंत सोरेन, केजरीवाल और अखिलेश यादव अगर ये समझते हैं कि वे इन पांच राज्यों में भाजपा को 100 सीटों का नुकसान पहुंचा सकते हैं, तो यह खामख्याली है। क्या वे यह कहना चाहते हैं कि इन पाँचों राज्यों में भाजपा को 116 सीटों से 16 सीटों पर ले आएँगे। यूपी में भाजपा पिछली बार 62 सीटें जीतीं थी, आजमगढ़ और रामपुर जीतने के बाद भाजपा की यूपी में 64 सीटे हैं, जबकि दो सीटें उसके सहयोगी अपना दल ने भी जीतीं थी। बसपा के खाते मे सिर्फ 10 और सपा के खाते में पांच सीटें आईं थीं, जो अब घट कर तीन रह गई हैं। बाकी बची एक सीट पर सोनिया गांधी जीती थी।
भाजपा की आगे की रणनीति
2022 के विधानसभा चुनाव नतीजे भी बताते हैं कि यूपी में सपा और बसपा दोनों कमजोर हुई हैं, इसलिए अब भाजपा ने अपने सहयोगी अपना दल के साथ 75 से 80 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 80 में से 73 सीटें जीतीं थी। अपना लक्ष्य तय करने के लिए भाजपा ने सभी 80 लोकसभा सीटों के उन 22000 बूथों की पहचान की है, जहां भाजपा कमजोर है। इन बूथों पर यादव, जाटव और मुस्लिम वोटर ज्यादा हैं। भाजपा ने अभी से यादवों, जाटवों के साथ साथ पसमांदा मुसलमानों को साधने की कोशिशें शुरू कर दी हैं।
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