VVPAT पर सुप्रीम कोर्ट ने मान ली होती विपक्ष की मांग, तो क्या करता चुनाव आयोग?
नई दिल्ली। इस आशय की खबरें आ रही हैं कि लोकसभा चुनाव के परिणामों की घोषणा में चार से छह घंटे देरी हो सकती है। यह भी कहा जा रहा है कि इस देरी की वजह से परिणाम 24 मई को भी आ सकता है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण वीवीपैट पर्चियों के मिलान को बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि इस काम में अतिरिक्त समय लगेगा। इन खबरों को यदि सर्वोच्च अदालत के उस हालिया फैसले की रोशनी में भी देखा जा सकता है जिसमें 50 प्रतिशत वीवीपैट के मिलान की विपक्ष की मांग खारिज कर दी गई थी। अगर इसे अस्वीकार न किया गया होता और सुप्रीम कोर्ट ने विपक्ष की मांग मान ली होती, तो लगता है तय कार्यक्रम (23 मई को परिणाम की घोषणा) से कई दिन बाद परिणाम घोषित हो पाते। यही कारण है कि परिणामों में देरी की संभावना को लेकर चुनाव आयोग पर सवाल खड़े किए जाने लगे हैं। पहले भी चुनाव आयोग विभिन्न मुद्दों पर सवालों के घेरे में रहा है। मतदान के लिए कई चरण बनाने को लेकर भी चुनाव आयोग की आलोचना की गई थी।
विपक्ष की 21 पार्टियों की ओर से दायर की गई थी याचिका
हालांकि इसके पीछे के आयोग के तर्क वाजिब कहे जा सकते हैं, लेकिन चुनावों के दौरान यह भी देखने को मिल रहा है कि बूथ कब्जा से लेकर हिंसा तक और मतदाताओं में असुरक्षा की भावना तक बढ़ती जा रही है। ईवीएम मशीनों को लेकर भी अनेकानेक शिकायतें आ रही हैं। इसके अलावा चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन के मामलों को लेकर भी चुनाव आयोग सवालों के घेरे में रहा है। इसमें सत्ता पक्ष के शीर्षस्थ नेताओं को क्लीनचिट और विपक्ष के खिलाफ कार्रवाई शामिल है। अब जबकि मतदान के केवल दो चरण ही बाकी रह गए हैं, यह कहा जाना कि परिणामों की घोषणा में देरी हो सकती है, एक बार फिर लोगों के बीच शक की गुंजाइश छोड़ दे रहा है कि कहीं इसके पीछे कोई अन्य रणनीति तो नहीं है। निश्चित रूप से वीवीपैट पर्चियों का मिलान एक अलग कार्य है जिसमें समय भी लगेगा ही, लेकिन क्या इसकी जानकारी पहले चुनाव आयोग को नहीं थी।
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पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायत विपक्ष की ओर से लगातार की जा रही है। जब यह मांग चुनाव आयोग द्वारा नहीं मानी गई, तब विपक्ष की ओर से वीवीपैट पर्चियों के मिलान की मांग की जाने लगी। इसे भी चुनाव आयोग द्वारा अस्वीकार किया जाता रहा। इसके बाद विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। तब विपक्ष की 21 पार्टियों की ओर से याचिका दायर मांग की गई थी कि हर चुनाव क्षेत्र की किसी एक विधानसभा सीट की 50 प्रतिशत ईवीएम का मिलान वीवीपैट से किया जाए। इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बीते आठ अप्रैल को अपना सुनाते हुए कहा था कि किसी पांच मतदान केंद्र के ईवीएम और वीवीपैट का मिलान किया जाए। इस आशय का आदेश सर्वोच्च अदालत ने चुनाव आयोग को दिया था। इससे विपक्ष संतुष्ट नहीं हुआ था और पुनर्विचार याचिका दायर कर 50 फीसदी पर्चियों के मिलान की मांग की थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट यह कहते हुए तैयार नहीं हुआ कि वह अपने फैसले की पुनर्समीक्षा नहीं करेगा। माना जा सकता है कि इस फैसले से चुनाव आयोग को बड़ी राहत मिली होगी। अगर कहीं विपक्ष की मांग मान ली गई होती, तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि आयोग को इन पर्चियों के मिलान में कितना अतिरिक्त समय लगता और तब चुनाव परिणाम कब घोषित किए जाते।
इस फैसले से चुनाव आयोग को बड़ी राहत
ईवीएम और वीवीपैट का पूरा मामला चुनाव में धांधली से जुड़ा हुआ है। ईवीएम में गड़बड़ी की शिकायतें लंबे समय से की जा रही हैं लेकिन बीत पांच सालों में इससे संबंधित शिकायतों की एक तरह से बाढ़ आ गई। विपक्ष में खास तरह का अविश्वास ईवीएम को लेकर बढ़ता जा रहा है। इसी वजह से कुछ समय पहले ईवीएम की जगह बैलट पेपर से चुनाव कराने की मांग भी जोर पकड़ने लगी थी। हालांकि विपक्ष के किसी भी सवाल को चुनाव आयोग लगातार खारिज करता रहा है। आयोग का दृढ़ मानना रहा है कि ईवीएम में किसी तरह की गड़बड़ी नहीं की जा सकती। बैलट पेपर से मतदान के बारे में भी उसका तर्क रहा है कि एक बार आगे बढ़ जाने के बाद पीछे लौटना उचित नहीं होगा। इसके अलावा, चुनाव आयोग का बहुत सारे मामलों में यह तर्क रहता है कि उसकी अपनी सीमाएं हैं जिसके भीतर ही वह काम कर सकता है। चुनाव आचार संहिता की शिकायतों पर उसका कहना था कि वह कोई कार्रवाई नहीं कर सकता। यह अलग बात है कि सांकेतिक ही सही, आयोग की ओर से विपक्षी नेताओं पर बहुत कार्रवाई की गई। इसकी तुलना में सत्ताधारी पार्टी के शीर्षस्थ नेताओं को क्लीनचिट ही ज्यादा दी गई। वीवीपैट के बारे में भी आयोग का यही तर्क है कि उसके पास इतने संसाधन नहीं हैं कि ज्यादा वीवीपैट का सत्यापन कर सकें।
ईवीएम को लेकर शिकायतें भी कम नहीं हो रही
इतनी लंबी चुनाव प्रक्रिया को लेकर चुनाव आयोग पर सवाल उठाए ही जाते रहे हैं। कहा जाता रहा है कि ऐसा सत्ताधारी पार्टी को लाभ पहुंचाने के लिए किया जाता है। आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतों के निपटारे को लेकर भी आयोग पर अंगुलियां उठती रही हैं। अब तो विपक्ष की ओर से यहां तक कहा जाने लगा है कि चुनाव आयोग को ‘क्लीनचिट आयोग' नाम दे दिया जाना चाहिए। ईवीएम को लेकर शिकायतें भी कम नहीं हो रही हैं। अब वीवीपैट की विपक्ष की मांग भी अस्वीकार कर दी गई है। मतलब एक तरह से विपक्ष के लिए बहुत सीमित विकल्प बचे हैं। इस सबके बावजूद आखिर चुनाव परिणामों की घोषणा में देरी की बात क्यों उठाई जा रही है। यह तो पहले ही तय था कि इतनी पर्चियों का मिलान किया ही जाना है। तब क्या आयोग ने पहले से इसकी व्यवस्था नहीं बनाई थी। यह कोई अचानक का फैसला नहीं है। अगर सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी पर्चियों के मिलान का आदेश दे दिया होता, तब जरूर यह आकस्मिक होता। ऐसे में यह सवाल बाकी ही रह जाता है कि आखिर क्यों आयोग की ओर से परिणामों की घोषणा में देरी की बात की जा रही है। क्या यह ज्यादा अच्छी स्थिति नहीं होगी कि विपक्ष को यह कहने का मौका न मिले कि पर्चियों के मिलान के बहाने परिणामों में गड़बड़ी की गई। उम्मीद की जा सकती है कि चुनाव आयोग इसका मौका किसी को नहीं देगा।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)
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