Lok Sabha Elections 2019 : चुनाव आयोग की सलाह का कितना पालन करेंगी पार्टियां?
नई दिल्ली। अब तो आम चुनाव का ऐलान हो चुका है लेकिन लोकसभा चुनाव की घोषणा के पहले ही आयोग की ओर से राजनीतिक दलों को जारी की गई सेना और सैन्य अभियान की तस्वीरों का उपयोग न करने की सलाह को इसलिए महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए कि इसमें बहुत खास हिदायत दी गई है। इसके अलावा यह भी समझने की बात है कि चुनाव आयोग अपनी जिम्मेदारियों के निर्वहन को लेकर न केवल गंभीर लग रहा है बल्कि सक्रिय भी है। ऐसे में यह उम्मीद की जा सकती है कि चुनाव की घोषणा के बाद आचार संहिता के पालन को लेकर भी आयोग निश्चित रूप से संजीदा रहेगा और इसका उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई भी की जा सकती है। राजनीतिक दलों को भी सजग होना चाहिए कि क्योंकि वे आसानी से वह सब कुछ नहीं कर सकेंगी जो करना चाहेंगी क्योंकि उनके ऊपर चुनाव आयोग की नजर रहेगी।
चुनाव आयोग की हालिया सलाह चुनावी लाभ के लिए सेना और सैन्य अभियानों की तस्वीरों का उपयोग करने से बचने की है। दरअसल, चुनाव आयोग ने ऐसे कुछ पोस्टरों में वायु सेना के विंग कमांडर अभिनंदन की तस्वीरों का उपोयग किए जाने का खुद ही संज्ञान लिया और फिर यह सलाह जारी की। यहां यह भी ध्यान में रखने की जरूरत है कि इस सलाह में आयोग ने 2013 को जारी किए गए एक परामर्श का भी हवाला दिया है। माना जाता है कि इस परामर्श के पीछे इस आशय की शिकायतें थीं जिसमें ऐसे किसी भी प्रयास के प्रति सचेत रहने की जरूरत बताई गई थी। इसे बहुत जरूरी कदम कहा जा सकता है क्योंकि हाल-फिलहाल यह देखने में आ रहा है कि सेना और सैन्य अभियान की तस्वीरों का राजनीतिक दलों की ओर से किया जा रहा है। राजनीतिक हलकों में भी इसको लेकर चर्चाएं चल रही हैं कि इस चुनाव में सैन्य अभियान का उपयोग किया जा सकता है जिससे बचा जाना चाहिए।
इस तथ्य से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि ऐसा किया नही जा रहा है। यह देखने में आ रहा है कि एक दल विशेष सैन्य अभियान को चुनावी मुद्दा बनाने में लगा हुआ है। कई नेता इस आशय के सार्वजनिक बयान भी दे चुके हैं कि सैन्य अभियान से जिस तरह का माहौल बना है उसे वोट में तब्दील करने की जरूरत है। किसी ने कहा कि अब माहौल ऐसा बन चुका है कि एक राज्य की सारी सीटें जीती जा सकती हैं। यह तो कुछ उदाहरण हैं। इसके अलावा वाहनों से लेकर अनेक सार्वजनिक स्थलों पर ऐसे चित्रों का उपयोग देखा जा सकता है। इनके माध्यम से संभवतः यह संदेश देने की कोशिशें की जा रही हैं जैसे सैन्य कार्रवाई किसी खास दल की कोई कार्रवाई हो। एक तरह से यह तय भी माना जा रहा है कि एक दल विशेष सैन्य अभियान को अपना मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने में लगा हुआ है।
तमाम विपक्षी राजनीतिक दलों द्वारा अपने-अपने तरीके से इस आशय की शिकायतें भी की जा रही हैं। स्वाभाविक है कि इन हालात में चुनाव आयोग को संज्ञान लेना ही था और उसने उचित ही ऐसा किया।चुनाव आयोग संवैधानिक संस्था है जिस पर आम लोगों का विश्वास है। लोग यह मानकर चलते हैं कि चुनाव आयोग ऐसा कुछ भी होने देगा जिससे कोई चुनाव को प्रभावित कर सके और अतिरिक्त लाभ ले सके। इसीलिए आयोग की ओर से वक्त जरूरत के हिसाब में सलाह और निर्देश जारी किए जाते रहते हैं। आचार संहिता लागू होने के बाद तो बहुत से अतिरिक्त अधिकार आयोग के पास आ जाते हैं जिनका उपयोग आचार संहिता उल्लंघन करने वालों पर किया जा सकता है। हमारा देश एक लोकतांत्रिक देश है जिसमें सभी दल नैतिक रूप से बाध्य होते हैं कि वे चुनावी आचार संहिता का पालन करें। लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि चुनावी लाभ के लिए यही दल कई बार नैतिकता को भूल जाते हैं और उन कदमों का सहारा लेने लगते हैं जिसे आचार संहिता का उल्लंघन कहा जा सकता है। गलत तरीके अपनाकर चुनाव जीतने को लोकतंत्र को कमजोर करने का जरिया कहा जा सकता है। लेकिन हाल के कुछ चुनावों में इस आशय की शिकायतें बढ़ती ही जा रही हैं। बूथ कब्जे से लेकर हिंसा और धन बल के दुरुपयोग आदि की शिकायतें पहले भी आती थी।
तमाम शिकायतों को चुनाव आयोग की ओर से काफी हद तक खत्म भी किया गया है। लेकिन अभी भी उसके कुछ लक्षण जब-तब सामने आते रहते हैं। इसके अलावा नई-नई समस्याएं खड़ी होती और बढ़ती रहती हैं। सेना और सैन्य अभियान का उपयोग उन्हीं में से एक है जिससे चुनाव आयोग को निपटना पड़ रहा है। यह कितना अच्छा होगा कि राजनीतिक दल चुनाव आयोग की सलाह को ध्यान में रखें और ऐसा कुछ भी करने से बचें जिससे आयोग को कड़े कदम उठाने को बाध्य होना पड़े। लोकतंत्र के हित में भी यही कहा जा सकता हैं। वैसे भी चुनाव में जीत-हार मतदाताओं के हाथों में होती है और उन्हें उनके सवालों को हल करके ज्यादा अच्छी तरह अपने पक्ष में किया जा सकता है। येन-केन प्रकारेण और गलत तरीकों से कोई दल जीत भले ही हासिल कर ले, वह न तो लोगों के हित कुछ कर सकते हैं और न ही देश और लोकतंत्र के हित में। ऐसे में यह हमारे राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी बनती है कि वे इस तरह के किसी भी गलत तरीके को अपनाने से बचें और चुनाव को निष्पक्ष तरीके से संपन्न होने दें।
(इस लेख में व्यक्त विचार, लेखक के निजी विचार हैं. आलेख में दी गई किसी भी सूचना की तथ्यात्मकता, सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं।)
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