विवादों के बावजूद Justice Chandrachud ही बनेंगे चीफ जस्टिस
जस्टिस चन्द्रचूड को चीफ जस्टिस बनाए जाने का विभिन्न संगठन सोशल मीडिया पर विरोध कर रहे थे। विरोध का कारण सबरीमाला सहित उन की कुछ ऐसी जजमेंट थीं, जो करोड़ों लोगों की आस्थाओं के खिलाफ दी गईं थी। हालांकि यह विरोध सोशल मीडिया तक ही ज्यादा सीमित रहा।
इस बीच दो बड़ी घटनाएं और हुई, जिन्होंने चीफ जस्टिस की नियुक्ति को सार्वजनिक बहस का विषय बना दिया। पहली घटना 30 सितंबर की है, जब चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित ने सुप्रीमकोर्ट के चार जजों की नियुक्ति के लिए कोलिजियम की बैठक बुलाई थी। कोलिजियम में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, एसके कौल, एस अब्दुल नजीर और केएम जोसेफ सदस्य हैं।
जस्टिस चन्द्रचूड उस दिन रात दस बजे तक केसों की सुनवाई करते रहे, जबकि कोलिजियम की बैठक ज्यादा महत्वपूर्ण थी। इससे संदेश यह गया कि वह इसलिए कोलिजियम की बैठक में नहीं गए, क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि मौजूदा कोलिजियम की इस बैठक में सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश भेजी जाए।
चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित की यह अंतिम बैठक थी, क्योंकि 8 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं और रिटायमेंट के आख़िरी महीने में वह कोलिजियम की बैठक नहीं कर सकते थे। अगले दिन जब चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रविशंकर झा, पटना हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजय करोल, मणिपुर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पीवी संजय कुमार और वरिष्ठ अधिवक्ता केवी विश्वनाथन के नामों पर कोलिजियम के सदस्यों से लिखित सहमति माँगी तो सब से पहले जस्टिस चन्द्रचूड ने और फिर कोलिजियम के एक अन्य सदस्य एस अब्दुल नजीर ने इस प्रक्रिया का विरोध किया।
इससे यह भी सन्देश गया कि जस्टिस चन्द्रचूड जानबूझकर देरी कर रहे थे, क्योंकि पहले तो वह बैठक में नहीं गए और बाद में प्रकिया का सवाल उठा कर विरोध किया, जबकि वह जानते थे कि चीफ जस्टिस के कार्यकाल की कोलिजियम की वह अंतिम बैठक थी। अगर वह खुद विरोध नहीं करते तो उनकी मंशा पर सवाल नहीं उठता।
इस बीच दूसरी घटना यह हुई थी कि सुप्रीम कोर्ट-हाई कोर्ट लिटिगेशन एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष आर के पठान ने 5 अक्टूबर, 2022 को महामहिम राष्ट्रपति, सीवीसी और प्रधानमंत्री को जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के खिलाफ एक चिठ्ठी भेज दी।
इस चिठ्ठी में जस्टिस चन्द्रचूड पर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के आरोप लगाए थे। चिठ्ठी में उन आरोपों की सीबीआई और सीवीसी से जांच कराने और जस्टिस चन्द्रचूड पर अवमानना का केस चलाने की भी मांग की गई है।
शिकायत बहुत गंभीर है जिसमें कहा गया है कि जस्टिस चंद्रचूड़ ने 29 नवम्बर, 2021 को एक ऐसे केस की सुनवाई की, जिससे मुम्बई की अदालत में वकालत कर रहे उनके बेटे अभिनव चंद्रचूड के एक मुव्वकील (client) को फायदा हुआ।
आरोप यह है कि अपने बेटे अभिनव चंद्रचूड़ के क्लाईंट को फायदा पहुंचाने के लिए जस्टिस चन्द्रचूड ने सुप्रीम कोर्ट के सभी नियमों को ताक पर रख कर आदेश भी पारित कर दिए। इस मामले में फैसला देने से पहले न किसी अन्य पक्ष को सुना और न ही सरकार को नोटिस दिया। एक तरफा आदेश दे दिया।
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आरोप यह है कि अभिनव चंद्रचूड़ के क्लाईंट अवैध तरीके से वसूली करने वाले लोग थे और इस आदेश से उन्होंने करोड़ों के वारे न्यारे किए। परंपरा यह है किसी भी कोर्ट का कोई भी जज हो, अगर वह किसी पक्ष से कभी भी किसी मामले में सम्बंधित रहा है, चाहे 10 साल पहले उस पक्ष का वकील रहा हो, वह जज बनने के बाद उस पक्ष के मुकदमे के सुनवाई से खुद को अलग कर लेता है।
इसका एक सर्वोत्तम उदाहरण अयोध्या केस की सुनवाई का है, एक शिकायत आई कि जस्टिस उदय उमेश ललित एक मामले में कल्याण सिंह के वकील रहे हैं, इस लिए उदय उमेश ललित को अयोध्या केस की सुनवाई नहीं करनी चाहिए। हालांकि न तो कल्याण सिंह अयोध्या केस के पक्षकार थे, न उदय उमेश अयोध्या से जुड़े केस में कल्याण सिंह के वकील थे, इस के बावजूद उदय उमेश ललित ने अयोध्या केस की बैंच से अपना नाम वापस ले लिया था। मगर जस्टिस चंद्रचूड़ ने उस केस की सुनवाई की, जिसमें उनका पुत्र अभिनव एक पक्ष की तरफ से खड़ा था। एक गंभीर सवाल यह भी उठता है कि उस केस में किसने जस्टिस चंद्रचूड़ को बेंच की अध्यक्षता करने के लिए नामित किया था।
पांच अक्टूबर को लिखी गई चिठ्ठी के बाद मौजूदा चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित ने 7 अक्टूबर को सुप्रीमकोर्ट के तीन रजिस्ट्रार को हटा कर उनके मूल कैडर में भेज दिया। इनमें से एक को तो चीफ जस्टिस रमन्ना ने स्थाई तौर पर नियुक्त कर दिया था। तो क्या किसी रजिस्ट्रार ने जानबूझ कर वह केस जस्टिस चन्द्रचूड को भेजा था।
चारों तरफ से जस्टिस चंद्रचूड़ के खिलाफ आवाज़ उठने लगी, तो बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया उनके बचाव में आई और जस्टिस चंद्रचूड़ की तरफ से सफाई दी। जिसमें कहा गया कि जस्टिस चंद्रचूड़ को पता नहीं था कि शिकायत वाले मामले में उनका पुत्र वकील था। लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ ने खुद यह सफाई नहीं दी थी।
बार काउंसिल ने चंद्रचूड़ का बचाव करते हुए उनके खिलाफ पत्र लिखने वाले रशीद खान पठान के आरोपों को "न्यायपालिका के कामकाज और न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप बताया ।" इस पर बार काउंसिल पर भी सवाल उठ रहे थे कि जस्टिस चंद्रचूड़ का बचाव वह क्यों कर रही है।
जब यह मामला तूल पकड़ गया तो यह सवाल उठ रहा था कि मौजूदा चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित कोलिजियम के किसी अन्य जस्टिस के नाम की सिफारिश कर सकते हैं क्या। वैसे वह किसी और का नाम भेज सकते थे, क्योंकि अगर सीनियर मोस्ट को ही चीफ जस्टिस बनाया जाना बाध्यकारी होता, तो सरकार को चीफ जस्टिस से पूछने की जरूरत क्यों पडती।
आठ अक्टूबर को विधि मंत्रालय ने चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित को चिठ्ठी लिख कर उनके उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश माँगी थी। वह कोलिजियम के किसी भी सदस्य के नाम की सिफारिश कर सकते थे, लेकिन अगर बाकी के तीन सदस्य विरोध पर उतर आते तो विचित्र स्थिति पैदा हो जाती।
1973 में जब इंदिरा गांधी सरकार ने तीन जजों की वरिष्ठता को दरकिनार कर जस्टिस रे को चीफ जस्टिस बना दिया था, तो उनसे वरिष्ठ तीनों जजों जस्टिस जयशंकर मणिलाल शेलात, ए एन ग्रोवर और केएस हेगड़े ने इस्तीफा दे दिया था।
फिर 1977 में भी इंदिरा गांधी ने एच.आर.खन्ना की वरिष्ठता को दरकिनार कर जस्टिस बेग को चीफ जस्टिस बना दिया था। इस पर जस्टिस खन्ना ने इस्तीफा दे दिया था।
अब अगर ऐसा ही होता, तो मोदी सरकार पर न्यायपालिका की स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप का आरोप लग सकता था। मोदी खुद भी नहीं चाहते थे कि जस्टिस चन्द्रचूड की जगह पर किसी अन्य के नाम की सिफारिश की जाए। इसलिए चीफ जस्टिस ने बिना कोई समय गवाए जस्टिस चन्द्रचूड के नाम की सिफारिश कर दी है। अब सरकार जाने, सरकार का काम जाने।
डी.वाई. चंद्रचूड़ जस्टिस चीफ जस्टिस बनते ही पहले ऐसे चीफ जस्टिस बन जाएंगे, जिनके पिता वाई वी चन्द्रचूड भी 1978 से 1985 तक रिकॉर्ड सात साल चार महीनों तक भारत के चीफ जस्टिस रहे थे। डी.वाई. चन्द्रचूड भी अपनी रिटायरमेंट तक दो साल तक चीफ जस्टिस बने रहेंगे।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)