Sonia Gandhi Birthday: किचन गार्डन में सब्जियां उगाने से लेकर सत्ता संचालन का सफर
सोनिया गांधी का आज 76वां जन्मदिन है। उम्र के इस ढलान पर वो राजनीतिक तीर कमान रख चुकी हैं। अब उनकी राजनीतिक सक्रियता परिवार और 10 जनपथ की गतिविधियों तक सिमट गयी है।
Sonia Gandhi Birthday: इस बार हिमाचल प्रदेश और गुजरात विधानसभा चुनावों से सोनिया गांधी पूरी तरह गायब रहीं, ऐसा लगा मानो समय का चक्र फिर से घूम गया हो। सहमी सी, शांत रहने वाली सोनिया गांधी का वो 'बहू' वाला दौर अब बस लोगों की यादों और परिवार को करीब से जानने वाले लेखकों की किताबों में ही रह गया है।
लेकिन सोनिया गांधी के जीवन के ऐसे अनेकों किस्से हैं जिन्हें आज की पीढ़ी जानना चाहेगी। इन कहानियों के जरिए ही उस दौर की सोनिया गांधी को जानना बेहद दिलचस्प हो सकता है। इन कहानियों के जरिए ही समझ में आता है कि एक दौर में किचन गार्डन में सब्जियां उगाने और घर का खाना बनाने तक सिमटी रहने वाली सोनिया गांधी ने कैसे पार्टी और सत्ता संचालन का काम संभाल लिया। एक साधारण घरेलू महिला के रूप में अपना जीवन शुरु करने वाली सोनिया गांधी कांग्रेस की सबसे लंबे कार्यकाल वाली अध्यक्ष कैसे बन गयीं।
मेनका के कुत्ते Vs सोनिया के कुत्ते
इस दौर में हेमंत विश्व सरमा के चलते राहुल गांधी का कुत्ता पिद्दी जरूर चर्चा में रहा है, लेकिन सोनिया गांधी के 'बहू काल' में मेनका गांधी के कुत्ते उन्हें खौफ में रखते थे। मेनका और संजय के पास तीन कुत्ते थे, दो आइरिश वोल्फ हाउंड और एक बुल मैस्टिफ ब्रूनो। ब्रूनो बेहद खतरनाक था और इसे घर में केवल मेनका या संजय ही संभाल सकते थे। घर में आने वाला हर मेहमान इससे आतंकित रहता था। जबकि सोनिया के पास अपने जैसे ही सहमे रहने वाले लेकिन प्यारे छोटे से दो डॉगी थे। एक थी छोटी सी डाशहण्ड रेशमा और दूसरा लम्बे वालों वाला प्यारा सा अफगान हाउंड। जब भी कुत्तों की लड़ाई होती थी, तो सोनिया दहशत में आ जाती थीं क्योंकि उनके डॉगी लड़ने के लिए बने ही नहीं थे। जबकि मेनका बेफिक्र मुस्कराती घूमती थीं।
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जब 1977 की हार के बाद पूरा परिवार मोहम्मद युनूस के आधिकारिक आवास 12, वेलिंगटन रोड में शिफ्ट हुआ तो मुश्किलें और भी बढ़ गईं क्योंकि कुत्तों के लिए एक ही छोटा सा रूम था। ऐसे में दोनों बहुओं के बीच रिश्ते और भी खराब हो गये। सोनिया के सख्त होने के पीछे मेनका से बढ़ती तल्खियां भी थीं। वरना सोनिया तो शुरूआत में इतनी आम महिला की तरह थीं कि छोटी छोटी बातों पर रो दिया करती थीं। ऐसे ही एक घटना का उल्लेख पुपुल जयकर ने 'इंदिरा गांधी ए बायोग्राफी' में किया है। वो लिखती हैं कि जब वहां पहुंची तो कोई भी कार बाहर पार्क नहीं थी। इंदिरा के सेक्रेटरी का चेहरा उतरा हुआ था। इंदिरा गांधी खुद अपने कमरे में अकेले शांत बैठी थीं। मुझे देखते ही बोलीं कि, 'पुपल, आई हैव लॉस्ट'। पूछा तो बताया कि संजय अमेठी में है, सोनिया मिलीं तो काफी रो रही थीं, राजीव एकदम खामोश थे।
जब सोनिया ने संभाली सब्जी उगाने और किचन की कमान
रशीद अहमद किदवई अपनी किताब, 'सोनिया ए बायोग्राफी' में दिलचस्प जानकारी देते हैं कि इंदिरा गांधी सत्ता जाने के बाद किसी पर भरोसा नहीं करती थीं। सो, जब उनके कुक की एक्सीडेंट में मौत हो गई तो उन्होंने दूसरा कुक नहीं रखा। उन्हें डर था कि कहीं खाने में जहर ना मिला दे। सो, किचन की कमान सोनिया के हाथों में आ गई। इतना ही नहीं बंगले के पीछे की जगह में सोनिया ने सब्जियां उगाना भी शुरू कर दिया। अक्सर खान मार्केट में वो घर की जरुरत के छोटे छोटे सामान, सब्जियां, फल आदि भी खरीदते दिख जाती थीं। संजय गांधी ने तो उनको 'मॉडल बहू' तक कह डाला था। संजय की मौत के बाद तो इंदिरा गांधी सोनिया के काफी करीब आ गई थीं, उन्हीं से अपनी साड़ियां पसंद करवाती थीं।
बच्चन परिवार से मिलने के लिए कभी बंगले में बना लिया था गुप्त रास्ता
1966 में जब इंदिरा गांधी नेहरू की एक्जीबीशन के लिए लंदन गईं, तो राजीव ने सोनिया के बारे में पहली बार बताया, अगले दिन वो सोनिया से मिलीं। उन्हें सोनिया पसंद आई। इतवार के दिन 25 फरवरी 1968 को शादी हुई, तब इंदिरा पीएम थीं और 1 सफदरजंग रोड आवास में रहती थीं। शादी की दावत हैदराबाद हाउस में हुई, जमीन पर बैठकर खाने वाले कश्मीरी शाकाहारी खाने के साथ। अगले दिन रिसेप्शन भी हैदराबाद हाउस में रखा गया था। हालांकि सोनिया गांधी की मेंहदी हरिवंश राय बच्चन के घर पर हुई।
शादी के लिए सोनिया को दिल्ली बुलाने का फैसला तो कर लिया गया था लेकिन अब दिक्कत हो गई कि सोनिया को रखा कहां जाए। भारत में शादी से पहले लड़की लड़के के घर में आकर नहीं रहती थी। तब इंदिरा गांधी को बच्चन परिवार की याद आई। सोनिया उनके घर में दो महीने रहीं। इतने दिनों में अमिताभ की मां तेजी बच्चन ने उन्हें साड़ी पहनना और कुछ भारतीय रीति रिवाजों के बारे में बताया। हरिवंश राय बच्चन ने उन दिनों के बारे में अपनी आत्मकथा 'दशद्वार से सोपान तक' में लिखा है, ''हमारे आत्मीयतापूर्ण व्यवहार से सोनिया इतनी प्रभावित हुईं कि उसने तेजी से धर्म की मां और अमित (अमिताभ) और बंटी (अजिताभ) से धर्म के भाई का रिश्ता जोड़ लिया था''। राजीव की शादी में भाग लेने के लिए अमिताभ कोलकाता से आए थे और अजिताभ मद्रास से।
दोनों परिवारों के रिश्ते इतने बेहतर थे कि एक बार जब एयर इंडिया ने एक नई फ्लाइट शुरू की न्यूयॉर्क और लंदन के लिए तो कुछ जाने माने लोगों को पहली ही फ्लाइट में फ्री में जाने का मौका मिला। इस फ्लाइट में तेजी बच्चन चली गईं। न्यूयॉर्क, लंदन होते हुए जब वो रोम आईं, तो सोनिया गांधी के परिवार ने तेजी की बड़ी आवभगत की, पूरा रोम उन्हें घुमाया।
अरसे तक इंदिरा गांधी का परिवार और बच्चन परिवार एक दूसरे से लगे बंगलों में ही रहते थे। सोनिया गांधी ने तो दोनों बंगलों के बीच आने जाने के लिए एक रास्ता भी बना लिया था, जिसको लेकर बाद में गुप्तचर एजेंसियों ने ऐतराज भी किया था। इतने शानदार रिश्ते होने के बावजूद बोफोर्स केस में अमिताभ बच्चन का नाम आने पर ऐसे रिश्ते बिगड़े कि ना तो प्रियंका की शादी पर बच्चन परिवार था और ना अभिषेक की शादी में गांधी परिवार। उसके बाद अमिताभ बच्चन का बयान भी आया, 'वो राजा हैं, और हम रंक'।
राजनीति में आने से पहले ही लगे दो दाग- मारुति में हिस्सा और नागरिकता विवाद
मारुति कम्पनी के साथ संजय गांधी ने कई कम्पनियां खड़ी की। एक कंपनी तो सरकारी ठेके दिलाने के लिए 20 फीसदी तक कमीशन लेती थी। कुलदीप नय्यर और रशीद अहमद किदवई दोनों ने मारुति टेक्निकल सर्विसेज में सोनिया गांधी की हिस्सेदारी के बारे में लिखा है कि कैसे ना केवल उस कंपनी में सोनिया डायरेक्टर थीं, बल्कि नेट प्रॉफिट में 1 फीसदी कमीशन के साथ 2500 रुपए महीने की सैलरी भी लेती थीं। किदवई लिखते हैं, "जनता पार्टी सरकार में बने जांच आयोग ने एसी गुप्ता की अगुवाई में इसकी जांच की और लिखा कि एक विदेशी नागरिक होने के नाते उन्हें किसी भी भारतीय कम्पनी में शेयर लेने का अधिकार नहीं है"। किदवई आगे लिखते हैं, "जब राजीव गांधी पीएम बने तो इस आरोप पर उन्होंने साफ इनकार कर दिया कि सोनिया ने कोई सेलरी या शेयर मारुति से लिए हैं"।
दूसरा दाग नागरिकता मामले से जुड़ा है। सोनिया की राजीव गांधी से शादी 1968 में हुई थी लेकिन 1983 तक भी उन्होंने भारत की नागरिकता नहीं ली थी। उनके पास इटली का ही पासपोर्ट था। बिना नागरिकता के भी सोनिया का नाम 1980 की मतदाता सूची में था, और मतदाता सूची में उनका पता 1, सफदरजंग रोड दर्ज था। वोटर नंबर था 388। मीडिया में हंगामा हुआ तो 1982 में मतदाता सूची से उनका नाम निकाल दिया गया। फरवरी, 1983 के म्युनिसिपेलिटी चुनावों में फिर उनका नाम मतदाता सूची में शामिल हुआ, तब उनका वोटर नंबर था- 236।
इस तरह पांच साल तक भारत में रहने के बाद कोई भी विदेशी नागरिक भारतीय नागरिकता पाने के लिए पात्र हो जाता है, यानी सोनिया चाहती तो 1973 में ये हो जाता लेकिन सोनिया गांधी ने भारत की नागरिकता 30 अप्रैल 1983 को ली और आधिकारिक रूप से भारत की नागरिक बन गयीं।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)