Gujarat Election 2022: गुजरात के गर्व, गौरव और गरिमा का चुनाव
Gujarat Election 2022: गांधीनगर से नई दिल्ली गए हुए नरेंद्र मोदी को भले ही आठ साल का लंबा वक्त बीत गया है, लेकिन गुजरात में इस बार के विधानसभा चुनाव की तस्वीर यह दिखा रही है कि मोदी अब स्थानीय लोगों के पहले से भी ज्यादा करीब हैं। इसीलिए, इस बार का चुनाव गुजरात के गर्व, गौरव और गरिमा से मजबूत जुड़ाव का चुनाव बनता जा रहा है।
पिछले चार महीनों में गुजरात के 27 जिलों के 126 विधानसभा क्षेत्रों के कुल 12681 लोगों से बातचीत का सार यही है कि यहां के ज्यादातर लोग नरेंद्र मोदी को चाहते हैं, उन्हें अपने सर का ताज मानते हैं और गौरव के रूप में देखते हैं। ये लगभग 13 हजार लोग हमारे और आपके जैसे टीवी देखने वाले या अखबार पढ़ने वाले लोग नहीं, बल्कि वे बेहद साधारण जिंदगी जीते हैं और मस्त रहते हैं। इसलिए यह मान ही लिया जाना चाहिए कि गुजरात में फिर से बीजेपी की सरकार आ रही है, और पहले के मुकाबले ज्यादा बहुमत से आ रही है।
बीजेपी के ताकतवर तेवर
कहने को भले ही गुजरात का चुनाव केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के जिम्मे है, लेकिन नीति नियंता तो नरेंद्र मोदी ही है। उनके लिए यह चुनाव 2024 के आम चुनाव का पूर्वाभ्यास है। बीजेपी जिस आक्रामक अंदाज में चुनाव लड़ रही है, उसमें बीजेपी की राजनीति के कम जानकार कुछ दूसरी ही तस्वीर देख रहे हैं।
गुजरात कांग्रेस के नेता अर्जुन मोढवाड़िया कहते हैं कि बीजेपी बहुत भरोसे में नहीं है, इसलिए प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, राष्ट्रीय अध्यक्ष और कई महासचिवों व केंद्रीय मंत्रियों सहित बीजेपी के सारे बड़े चेहरे गुजरात की गली गली में घूम रहे हैं। लेकिन पार्टी के मेहसाणा में प्रभारी वीरेंद्र सिंह चौहान कहते हैं कि मोढवाड़िया अपना घर संभालें, बीजेपी तो स्वाभाविक रूप से हर चुनाव इसी तरह लड़ती है। हम अपनी पूरी ताकत झोंकते हैं और छोटे से छोटा चुनाव भी करो या मरो के अंदाज में लड़ते हैं। राजस्थान में बीजेपी के नेता चौहान कहते हैं कि गुजरात प्रधानमंत्री मोदी का गृह प्रदेश है, यह सही है, लेकिन बीजेपी के लिए यह सिर्फ चुनावी प्रदेश है।
कांग्रेस की कशमकश
गुजरात में कांग्रेस को अपना बहुमत न आने का संताप सता रहा है। बीते 27 साल से कांग्रेस विपक्ष में है, लेकिन इस हालत के लिए कांग्रेस खुद ही जिम्मेदार है, यह मानने को वह कतई तैयार नहीं है। कभी वह बीजेपी की जीत को उसका सांप्रदायिक सामर्थ्य बताती है, तो कभी समाज को बांटकर जीत का जश्न मनाने वाली पार्टी। जबकि असल बात यह है कि कांग्रेस ने कभी भी बीजेपी की तरह पूरी ताकत झोंककर चुनाव जीतने की कोशिश ही नहीं की।
पिछली बार 2017 में जरूर कांग्रेस ने प्रभारी अशोक गहलोत के नेतृत्व में चुनाव लड़ा और राहुल गांधी भी मंदिर मंदिर दर्शन करते हुए कांग्रेस को 77 सीटों पर जिताकर जीत के करीब ले पहुंचे थे। लेकिन इस बार, मोदी की 8 और अमित शाह की 28 रैलियों के मुकाबले राहुल केवल 2 रैली ही कर रहे हैं।
माना कि गुजरात कांग्रेस के प्रभारी रघु शर्मा फायर ब्रांड नेता है, लेकिन राहुल गांधी की अप्रत्याशित उदासीनता, पार्टी छोड़कर जाते नेताओं की लगातार लंबी होती कतार और कांग्रेस के बेहद कमजोर संगठन के सहारे मोदी से मुकाबला करके रघु शर्मा कांग्रेस जिता देंगे, यह उम्मीद करना ही उनके साथ अन्याय होगा। फिर भी शर्मा अगर यह दावा कर रहे हैं कि गुजरात में कांग्रेस ही जीत रही है, तो उनका मन रखने के लिए यह अगर सुन लें, तो कोई पाप थोड़े ही लग जाएगा।
केजरीवाल की कोशिश
सरदार पटेल और गांधी के गुजरात में आम आदमी पार्टी और उसके नेता केजरीवाल को लोग कोई बहुत श्रेष्ठ किस्म के राजनेता के तौर पर नहीं देखते। उनको और उनकी पार्टी को लोक लुभावन वादों और साफ सुथरी बातों के जरिए जनभावनाओं का दोहन करने में गुजरात में सफलता न मिलने का कारण एक वाक्य में जानना हो तो नवसारी के हजारी पुरोहित को सुन लीजिए। पुरोहित कहते हैं - "गुजरात व्यापार का प्रदेश है और यहां की जनता किसी भी अन्य प्रदेश के मुकाबले व्यापारी व उसकी मंशा को जल्दी से जान लेती है, अतः लोग जान रहे हैं कि केजरीवाल की राजनीति केवल कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने की है, जो कि वे पहुंचा भी रहे हैं।"
वैसे, सामाजिक समीकरणों को साधने और मुफ्त के गणित पर ही अगर केजरीवाल की राजनीति चलनी है तो गुजरात उनके लिए बढ़िया प्रदेश क्यों नहीं हो सकता, इसके जवाब में अहमदाबाद के चार्टर्ड अकाउंटेंट अश्विन नागर कहते हैं कि गुजरात के लोग देने में विश्वास करते हैं, लेने में नहीं, और मुफ्त में तो बिल्कुल नहीं। हमारे यहां मुफ्त वालों को लोग जल्दी मुक्त कर देने में विश्वास करते हैं।"
गुजरात में दो दर्जन सभाओं के जरिए केजरीवाल के जलवे ने जो शुरूआत में गति पकड़ी थी, आधा चुनाव खत्म होते होते लगने लगा है कि बीजेपी के बढ़ते बवंडर में उनका वह जलवा शांत हो गया है, लेकिन वे कांग्रेस का नुकसान करने में सफल हो रहे हैं।
वैसे, गुजरात चुनाव में कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी के अलावा समाजवादी पार्टी सहित मायावती की अस्ताचल की ओर बढ़ रही बहुजन समाज पार्टी भी मैदान में है। लेकिन बीजेपी का 182 में से 150 सीटों पर जीत का दावा केवल इस एक विश्वास पर है कि गुजरात की प्रजा में मतदान करने वाला एक बहुत बड़ा वर्ग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने प्रदेश का गौरव मानता है। और अपने गौरव को कोई भी यूं ही तो नहीं गंवा देता।
अतः गुजरात का चुनावी तथ्य यही है कि बीजेपी के लिए यह 2024 के आम चुनाव का पूर्वाभ्यास है। इसमें बीजेपी हर हाल में गुजरात में फिर से अपनी सरकार बनाने की मुद्रा में सबसे आगे बढ़ती दिख रही है।
फिर भी, गुजरात के 27 जिलों के 126 विधानसभा क्षेत्रों के लगभग तेरह हजार लोगों के इस अटल विश्वास पर भी अगर किसी को भरोसा नहीं है, तो वे 8 दिसंबर तक विधानसभा चुनाव के नतीजों का इंतजार करने को स्वतंत्र है।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)