क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

आलोक वर्मा के इस्तीफे के बाद सरकार पर सवाल

By राजीव रंजन तिवारी
Google Oneindia News

नई दिल्ली। आखिरकार सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को नौकरी से ही इस्तीफा देना पड़ा। सीबीआई विवाद में उनकी इतनी फजीहत हो गई, जिसका अंदाजा किसी को नहीं था। खुद उन्हें भी नहीं होगा। शायद देश में एसा पहली बार हुआ कि किसी सीबीआई चीफ को इस तरह अपने पद से हाथ धोना पड़ा हो। इसे लेकर सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं। विपक्षी कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली उच्चाधिकार प्राप्त सलेक्शन कमेटी के सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को हटाने के फैसले को लेकर निशाना साधा है। पार्टी का कहना है कि सरकार राफेल विमान सौदे की जांच से डरी हुई थी। इसलिए, सरकार ने आलोक वर्मा को बीस दिन भी सीबीआई प्रमुख के पद पर नहीं रहने दिया। अब सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार सीबीआई चीफ आलोक वर्मा से डर गई थी? यदि इसका जवाब 'हां' में मिलता है तो बेशक देश की लोकतांत्रिक प्रणाली के लिए यह ठीक नहीं है।

आलोक वर्मा के इस्तीफे के बाद सरकार पर सवाल

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कहा था कि आखिर सरकार को किस बात की घबराहट है। आखिर सरकार क्यों सरकार को आलोक वर्मा को हटाकर अपने पसंद के अधिकारी को सीबीआई की जिम्मेदारी देने की जल्दी है। उन्होंने आरोप लगाया कि जल्दबाजी कर सरकार कुछ चीजों पर परदा डालना चाहती है। खुद को पाक-साफ बताने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मंशा भी अब संदेह के घेरे में है। आलोक वर्मा को हटाए जाने के बाद कांग्रेस ने केंद्रीय सर्तकता आयोग की भूमिका पर भी सवाल उठाए। वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने कहा कि इस पूरे घटनाक्रम में सीवीसी की विश्वसनीयता कम हुई है। आलोक वर्मा पर सीवीसी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सीवीसी ने अपनी रिपोर्ट पर दस बिंदु बताए हैं। इनमें से छह पूरी तरह गलत पाए गए हैं। बाकी चार बिंदुओं पर भी कोई सीधा साक्ष्य नहीं है। सलेक्शन कमेटी से न्याय की उम्मीद की जाती है, पर कमेटी न्याय करने में नाकाम रही है। आनंद शर्मा ने कहा कि कमेटी ने आलोक वर्मा पर लगे आरोपों के बारे में उनका पक्ष नहीं सुना। साथ उन्होंने कहा कि वर्मा के बारे में सीवीसी की रिपोर्ट में दम होता, तो अदालत उस पर कार्रवाई करती। इससे साफ है कि सरकार ने जल्दबाजी में फैसला किया है। समझा जा रहा है कि इसे लेकर देश में सियासत भी तेज होगी।

एक रिटायर्ड जस्टिस एके पटनायक का वक्तव्य भी सरकारर को कठघरे में खड़ा करता है। यानी कांग्रेस के जो आरोप हैं वह पुष्ट हो रहे हैं। पटनायक 11 जनवरी, 2019 को कहा कि आलोक वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई सबूत नहीं था। सीवीसी ने जो कहा वो अंतिम शब्द नहीं हो सकता। पटनायक सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज हैं और उन्हें एपेक्स कोर्ट ने सेंट्रल विजिलेंस कमिशन (सीवीसी) की निगरानी रखने के लिए कहा था, जिसमें सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को पद हटा दिया गया। बता दें कि भ्रष्टाचार के आरोपों और गुरुवार को ड्यूटी खत्म करने के आरोप में सीबीआई निदेशक के पद से वर्मा को हटाने के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली चयन समिति के बहुत-बहुत जल्दबाजी में लिए निर्णय के वो कड़े आलोचक थे। आलोक वर्मा को सुप्रीम कोर्ट द्वारा बहाल करने के दो दिन पर सीवीसी ने उनके पद से हटा दिया। सीवीसी के तीन सदस्यों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जस्टिस एके सीकरी, आलोक वर्मा के पद पर निरंतर बने रहने के खिलाफ थे। वहीं लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे अन्य दो सदस्यों के फैसले के पक्ष में नहीं गए और सीवीसी रिपोर्ट पर अपनी असहमति दर्ज कराई। जस्टिस पटनायक ने कहा कि भ्रष्टाचार को लेकर आलोक वर्मा के खिलाफ कोई सबूत नहीं था। पूरी जांच सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की शिकायत पर की गई थी। मैंने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सीवीसी की रिपोर्ट में कोई भी निष्कर्ष मेरा नहीं है। जानकारी के अनुसार, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच को दो पेज की रिपोर्ट में जस्टिस पटनायक ने कहा कि सीवीसी ने मुझे 9 नवंबर, 2018 को राकेश अस्थाना द्वारा कथित रूप से हस्ताक्षरित एक बयान भेजा। मैं स्पष्ट कर सकता हूं कि राकेश अस्थाना द्वारा साइन किया गया यह बयान मेरी उपस्थिति में नहीं बनाया गया था।

जस्टिस पटनायक ने कहा कि भले ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाई पॉवर कमेटी को फैसला करना चाहिेए। मगर फैसला बहुत जल्दबाजी में लिया गया। हम यहां एक संस्था के साथ काम कर रहे हैं। उन्हें अपना दिमाग लगाना चाहिए था। खासतौर पर सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर। क्योंकि सीवीसी जो कहता है वह अंतिम शब्द नहीं हो सकता है। गौरतलब है कि चयन समिति ने सीवीसी रिपोर्ट और "वर्मा के खिलाफ सीवीसी गई टिप्पणियों की अत्यंत गंभीर प्रकृति का मानते हुए उन्हें निदेशक पद से हटाने का हवाला दिया। हालांकि आलोक वर्मा का नाम पहले से भी विवादों में रहा है, लेकिन मौजूदा मामला पुराने विवादों से अलग है। आलोक वर्मा को डीजी तिहाड़ बनने के पहले बहुत कम ही लोग जानते थे। उनका किसी विवाद में कोई नाम नहीं आया था। लेकिन 5 अगस्त 2014 को जब वे डीजी तिहाड़ बने तो विवादों ने उनका पीछा करना शुरू कर दिया। यहां पुलिस मुख्यालय में बैठे कुछ आईपीएस उनके लिए एक स्क्रिप्ट लिख रहे थे। दरअसल उस दौर में तिहाड़ जेल में कुछ ऐसा चल रहा था जो उन्हें बार-बार एक डीजी के तौर पर सवालों के घेरे में खड़ा कर रहा था।

जानकार बताते हैं कि वर्ष 2016 में तिहाड़ जेल में लॉ ऑफीसर रहे सुनील गुप्ता ने जेल से जुड़े एक मामले में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। शायद वह मामला कुछ कैदियों के एशिया की सबसे सुरक्षित जेल से भागने का था। उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में 1979 बैच के यूटी कैडर के आईपीएस अफसर आलोक वर्मा भी आए जो उस समय डीजी तिहाड़ जेल थे। बताया गया कि पीसी वही करेंगे। वर्मा हॉट सीट पर बैठे। कैमरे तैयार थे और वर्मा बोलने ही वाले थे कि अचानक उन्होंने पीसी करने से मना कर दिया। उन्होंने अपने साथ बैठे एक आईजी रैंक के अधिकारी को प्रेसवार्ता करने की जिम्मेदारी सौंप दी। खैर प्रेसवार्ता हुई। उसके बाद जब अधिकारियों से पूछा गया कि वर्मा को अचानक क्या हुआ तो उन्होंने बताया कि वे कैमरा फ्रेंडली नहीं हैं। उनको पहली बार किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस तरह देखा गया। वह आलोक वर्मा की आखिरी प्रेस कॉन्फ्रेंस थी जो उनके बिना बोले ही खत्म हो गई। उसके बाद वे 11 महीने तक दिल्ली पुलिस कमिश्नर रहे, लेकिन कभी उन्हें मीडिया कर्मियों से मिलते या प्रेस कॉन्फ्रेंस करते नहीं देखा गया। तब पता चला कि वे कैमरा फ्रेंडली न होने के साथ-साथ मीडिया फ्रेंडली और यहां तक कि सबके लिए फ्रेंडली भी नहीं हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि आलोक वर्मा गलत नहीं हैं। उनकी बातों को मीडिया में भी ठीक से नहीं उठाया गया। मीडिया वालों ने ज्यादातर मामले में सरकार का ही पक्ष रखा यानी वर्मा के खिलाफ। जबकि कहा जा रहा है वर्मा सरकार से संबंधित कुछ जांचों को करने वाले थे, इसलिए उन पर गाज गिराने की रणनीति बनाई गई। यदि वर्मा दोषी होते सुप्रीम कोर्ट ही उनके खिलाफ कार्रवाई का आदेश दे देता। लेकिन यह नहीं हुआ। बहरहाल, आलोक वर्मा की छुट्टी से बहुत सारे सवाल खड़े हो रहे हैं। देखना है कि इन सवालों का जवाब कब मिलता है।

<strong>इसे भी पढ़ें:- छत्तीसगढ़ में भी सीबीआई की नो एन्ट्री, क्या केंद्र को है सीबीआई पर भरोसा? </strong>इसे भी पढ़ें:- छत्तीसगढ़ में भी सीबीआई की नो एन्ट्री, क्या केंद्र को है सीबीआई पर भरोसा?

Comments
English summary
CBI Vs CBI: Question on Narendra Modi government after Alok Verma resignation
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
For Daily Alerts
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X