इंडिया गेट से: भाजपा के बनाये तीन राष्ट्रपति मुस्लिम, दलित और आदिवासी
द्रौपदी मुर्मू देश की पंद्रहवीं और पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति चुन ली गई हैं। मौजूदा राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है। इसके बाद अगले दिन 25 जुलाई को द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण करेंगी।
द्रोपदी मुर्मू की जीत से यह स्पष्ट हो गया है कि अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी ने वह कर दिखाया है, जो जवाहर लाल नेहरू नहीं कर पाए थे। वाजपेयी ने अपनी पसंद के डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नाम पर अधिकांश पार्टियों में सहमति करवा ली थी। नरेंद्र मोदी ने बहुमत न होते हुए भी अपनी मर्जी के रामनाथ कोविंद और द्रोपदी मूर्मू को राष्ट्रपति बनवा लिया। जबकि सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री रहे जवाहर लाल नेहरू भी अपनी पसंद के नेताओं को राष्ट्रपति नहीं बनवा पाए थे।
राष्ट्रपति चुनाव से जुड़ी तीन ऐतिहासिक घटनाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं। पहली घटना है जब जवाहरलाल नेहरू सी. राजगोपालाचारी को देश का पहला राष्ट्रपति बनवाना चाहते थे। लेकिन वह ऐसा नहीं कर पाए, क्योंकि कांग्रेस नेताओं ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को पहला राष्ट्रपति बनाना तय किया। डॉ राजेन्द्र प्रसाद को उनके हिंदूवादी विचारों के कारण जवाहरलाल नेहरू पसंद नहीं करते थे।
बाद में हुआ भी वही जिसका नेहरु को डर था। डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने 1950 में नेहरू की सलाह के खिलाफ जाकर सोमनाथ मंदिर का उद्घाटन किया। नेहरू के पास उस समय सूचना प्रसारण मंत्रालय भी था। उन्होंने आल इंडिया रेडियो और पी.आई.बी. से डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का सोमनाथ मन्दिर के उद्घाटन के समय दिया गया भाषण प्रसारित करवाने पर रोक लगा दी थी।
डॉ राजेन्द्र प्रसाद और नेहरू के बीच दूसरा विवाद हिन्दू कोड बिल के समय हुआ जब डा. राजेन्द्र प्रसाद चाहते थे कि इस विधेयक पर जनता में व्यापक चर्चा हो। उन्होंने बिल पर दस्तखत नहीं किए थे, इस पर नेहरू ने अटार्नी जनरल सीतलवाड से राष्ट्रपति के अधिकारों पर नोट मंगवाया था। जिस में सीतलवाड़ ने लिख दिया था कि राष्ट्रपति सरकार को भंग कर सकते हैं। डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने चुनावों में कांग्रेस को जीत के बाद ही हिन्दू कोड बिल पर दस्तखत किए थे।
डॉ.राजेन्द्र प्रसाद से नेहरू का तीसरा विवाद तब हुआ जब डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने 1952 में काशी प्रवास के दौरान कुछ विद्वान पंडितों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए उनके पाँव धोए थे। 1957 में नेहरू तब के उपराष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन को राष्ट्रपति बनवाना चाहते थे, उन्होंने राधाकृष्णन को वायदा भी कर दिया था, लेकिन कांग्रेस में फिर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को दोबारा राष्ट्रपति बनवाने की सहमति थी। जवाहरलाल नेहरू ने दक्षिण के चार मुख्यमंत्रियों को बुलाकर कहा कि क्योंकि प्रधानमंत्री उत्तर भारत से है इसलिए वे दक्षिण से राष्ट्रपति बनवाने की मांग करें। लेकिन चारों मुख्यमंत्री भी उनके जाल में नहीं फंसे। इसलिए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद दोबारा भी राष्ट्रपति बन गए। राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें 99.3 प्रतिशत वोट मिले।
अपने समय के मशहूर पत्रकार दुर्गादास ने अपनी किताब "इंडिया फ्रॉम कर्जन टू नेहरू एण्ड आफ्टर" में लिखा है कि जब उन्होंने गोबिन्द वल्लभ पंत से यह जानने का प्रयास किया कि नेहरू इस हद तक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के खिलाफ क्यों हैं तो पंत ने उन्हें बताया कि उनके दिमाग में किसी ने बिठा दिया है कि डॉ राजेन्द्र प्रसाद जनसंघ और आरएसएस से मिल कर उनका तख्ता पलट देंगे।
नेहरु की राजेन्द्र प्रसाद से नफरत कभी गयी नहीं और डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने रिटायरमेंट के बाद अपना बाकी का जीवन पटना के सदाकत आश्रम में तकलीफ में बिताया। वहीं उनका देहांत हुआ। जवाहर लाल नेहरू उनके दाह संस्कार में शामिल नहीं हुए। पत्रकार दुर्गादास के अनुसार नेहरू ने राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन को भी दाह संस्कार में जाने से रोका था, लेकिन उन्होंने नेहरू की सलाह नहीं मानी।
तीसरा दिलचस्प किस्सा 1969 का है। जब इंदिरा गांधी ने अपनी ही पार्टी कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार नीलम संजीवा रेड्डी के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार वी.वी. गिरी को खड़ा करके कांग्रेसी सांसदों और विधायकों से आत्मा की आवाज पर वोट देने की अपील की थी। नीलम संजीवा रेड्डी को 48.7 प्रतिशत और वी.वी.गिरी को 50.2 प्रतिशत वोट मिले। इतिहास में सबसे कम मार्जिन से वी.वी. गिरी ही राष्ट्रपति बने हैं। हालांकि 1977 में उन्हीं इंदिरा गांधी ने इस बार जनता पार्टी के उम्मीदवार बने नीलम संजीवा रेड्डी का समर्थन किया और वह निर्विरोध चुने गए। वैसे भी 1977 में करारी हार के बाद इंदिरा गांधी के पास अपने उम्मीदवार को लड़ाने के लिए पर्याप्त सांसद ही नहीं थे।
जहां तक जातीय समीकरण और सामाजिक न्याय की बात है तो कांग्रेस के राज में के. आर. नारायणन को छोड़ कर हिन्दू अपर कास्ट या मुस्लिम ही राष्ट्रपति बने। के.आर. नारायणन को दलित बताया गया था, हालांकि वह धर्म परिवर्तन करके ईसाई बन चुके थे। इसलिए वास्तव में रामनाथ कोविंद भारत के पहले दलित राष्ट्रपति बने।
अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का राष्ट्रपति बनवाने का श्रेय भाजपा और नरेंद्र मोदी को ही जाता है। पहले जनसंघ और बाद में भाजपा को ब्राह्मण बनियों की पार्टी कहा जाता रहा, लेकिन भाजपा को तीन राष्ट्रपति बनवाने का मौक़ा मिला। इन में से पहला मुस्लिम, दूसरा दलित और अब तीसरा आदिवासी है। जाहिर है राष्ट्रपति चयन को लेकर जो काम नेहरु और कांग्रेस कभी नहीं कर पाये वह काम भाजपा और नरेन्द्र मोदी ने कर दिखाया।
एक और बात। द्रोपदी मूर्मू को मिले वोट संसद में दो-तिहाई से ज्यादा है। इससे यह तय हो गया है कि नरेंद्र मोदी सरकार अगर राष्ट्रपति पद के चुनाव में मिला समर्थन बनाए रखती है, तो वह संविधान संशोधन बिलों को भी पास करवाने की स्थिति में आ गई है। यह भाजपा सरकार के लिए टर्निंग प्वाईंट है, जब वह भाजपा के एजेंडे के बाकी लक्ष्यों को भी पूरा कर सकती है।
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(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति Oneindia उत्तरदायी नहीं है।)