
Anti-Hijab Protests: ईरान में अब इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं रहा हिजाब?
Anti-Hijab Protests: महशा अमीनी के बलिदान के दो महीने बाद आखिरकार ईरान सरकार को झुकना पड़ा। ईरान सरकार ने एक ओर जहां गश्त ए इरशाद या मोरेलिटी पुलिस को खत्म करने का ऐलान किया है, वहीं अनिवार्य हिजाब कानूनों की समीक्षा करने का आश्वासन भी दिया है। ईरान में गश्त ए इरशाद या मोरल पुलिस की स्थापना ईरान के राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने की थी जबकि अनिवार्य हिजाब कानून 1979 के ईरान की इस्लामिक क्रांति के 4 वर्ष बाद 1983 में अस्तित्व में आये थे।

ईरान सरकार द्वारा किये गये इन दो कथित फैसलों पर हालांकि अभी भी हिजाब विरोधी आंदोलनकारियों को भरोसा नहीं है। ईरान के हिजाब विरोधी आंदोलन में शामिल पत्रकार मसीह अलीनेजाद ने ट्वीट किया है कि यह लोगों में भ्रम पैदा करने के लिए किया गया है। गश्त ए इरशाद को खत्म करने वाला ऐलान एक झूठ है जिसे जानबूझकर ईरान के अटॉर्नी जनरल द्वारा फैलाया जा गया है।
अपने ट्वीट में मसीह अलीनेजाद ने यह भी लिखा है कि दो महीने से लगातार जारी आंदोलन से हताश होकर ईरान सरकार ऐसे झूठे ऐलान करवा रही है। मसीह अलीनेजाद का कहना है कि हिजाब विरोधी यह आंदोलन अब ईरान से इस्लामिक शासन को खत्म करके ही रुकेगा।
हिजाब विरोधी आंदोलनकारियों के इस तरह के रुख से इतना तो स्पष्ट है कि ईरानी अटार्नी जनरल के ऐलान के बाद भी फिलहाल हिजाब विरोधी आंदोलन रुकने वाला नहीं है। कोई भी आंदोलन सतह पर लंबा तब ही चलता है जब भीतर भारी गुस्सा बैठा रहता है। 1979 के बाद जिस तरह से इस्लाम के नाम पर ईरान ने लगातार अपने ही नागरिकों का दमन किया है, उसके कारण ईरान के नागरिकों में गहरा गुस्सा बैठा हुआ है। महशा अमीनी की मौत के बाद लंबे समय से दबा वह गुस्सा फूट पड़ा है।
फिर भी अगर ईरान सरकार को यह ऐलान करना पड़ा है कि वो मोरल पुलिस को खत्म कर रही है तथा राष्ट्रपति रईसी हिजाब के प्रावधानों की समीक्षा कर रहे हैं तो यह भी कोई छोटी बात नहीं है। किसी इस्लामिक देश में जब इस्लाम के नाम पर कोई व्यवस्था लागू कर दी जाती है तब उससे पीछे नहीं हटा जाता। पाकिस्तान जैसे देशों में तो जनता की ओर से इस्लाम से नाम पर नागरिक गुलामी की मांग की जाती है। लेकिन अन्य देशों में जो व्यवस्था इस्लाम के नाम पर लागू हो गयी, उससे पीछे हटने का मतलब होता है इस्लामिक सिद्धांतों से पीछे हट जाना।
ईरान के इस फैसले से एक नयी बहस खड़ी होगी कि क्या हिजाब इस्लाम का हिस्सा है भी या नहीं? इस्लाम के जानकार बताते हैं कि कुरान में हिजाब का उल्लेख पर्दा के अर्थ में आता है। कुछ इस्लामिक जानकार ये कहते हैं कि कुरान में 7 बार हिजाब शब्द का उल्लेख आया है लेकिन हर बार यह पर्दे के ही संदर्भ में है। हदीसों में ही हिजाब शब्द आता है लेकिन वहां यह हिजाब या पर्दा अल्लाह के लिए प्रयुक्त होता है। सही मुस्लिम में हदीस आती है कि अगर वह (अल्लाह) अपने चेहरे से हिजाब हटाता तो उसके नूर की चमक से सब कुछ नष्ट हो जाता।
स्वाभाविक है इस्लाम से दो स्रोत कुरान और हदीस दोनों ही जगह पर हिजाब शब्द का उल्लेख पर्दे के लिए आया है। इसका अर्थ कहीं से भी सिर को ढंकने या एक खास तरह से सिर पर कपड़ा बांधने से नहीं है। कुरान 24/31 में कहा गया है कि "ईमानवाली स्त्रियों से कह दो कि वो अपनी निगाहें नीची कर लें और अपने गुप्तांगों की रक्षा करें।" नजरें नीची रखने और गुप्तांगों की रक्षा का कुछ ऐसा ही निर्देश ईमानवाले पुरुषों के लिए भी कुरान 24/30 में आता है।
कुरान की जिस 24/31 आयत में ईमानवाली स्त्रियों को अपने गुप्तांगों की रक्षा करने के लिए कहा जाता है इसी आयत में यह भी कहा जाता है कि छाती पर खुमुर रख लें। अरबी में खुमुर या खिमार एक दुपट्टा जैसा कपड़ा होता है जिससे पुरुष अपना सिर ढंकते हैं। कुरान में इसी खिमार से महिलाओं की छाती ढंकने का उल्लेख आता है। यहां किसी भी प्रकार से उनके सिर ढंकने या बुर्का पहनने का उल्लेख दिखाई नहीं देता।
लेकिन इस्लाम में मुसलमानों पर जो इस्लामिक नियम कानून लागू किये जाते हैं, उनका इस्लामिक संदर्भ हमेशा कोई न कोई मौलवी या मौलाना बताता है। ऐसे में इस वर्ग के पास यह पूरा अवसर होता है कि इस्लाम के नाम पर जैसा चाहे वैसा नियम कानून मुसलमानों पर लागू कर दे। वही होता है जो अरबी का जानकार होता है और एक सामान्य मुसलमान यह मानता है कि मौलवी, मौलाना या मुफ्ती जो बता रहे हैं, वह इस्लामिक जांच पड़ताल के बाद ही बता रहे हैं। इसलिए वह सिर्फ आंख मूंदकर उनकी बात मान लेता है।
ईरान में भी यही हुआ है और दुनियाभर के गैर अरब देशों के मुसलमानों के साथ यही हो रहा है। इस्लाम में स्वाभाविक रूप से अरब संस्कृति का प्रभाव है क्योंकि इसका जन्म अरब में ही हुआ था। इसलिए अरब कल्चर को इस्लामिक सिद्धांत बताकर प्रचारित करना किसी मौलवी मौलाना के लिए बहुत आसान होता है। लेकिन मुसलमानों की ओर से ही जब इसका विरोध शुरु होता है तो ऐसे गढे गये इस्लामिक सिद्धांत रातों रात गायब भी हो जाते हैं। जैसे इस समय ईरान में हो रहा है।
दो महीने पहले तक वहां हिजाब इस्लाम का इतना अनिवार्य हिस्सा था कि इसकी जांच के लिए मजहबी पुलिस गठित कर दी गयी। लेकिन जैसे ही इसके खिलाफ आंदोलन भड़का हिजाब के नाम पर महिलाओं का सिर ढंकना इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं रह गया। अब इस्लामिक प्रशासन की ओर से ही उसमें सुधार करने के सुझाव सामने आ रहे हैं।
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