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पश्चिम बंगाल में तृणमूल और भाजपा के सिवा किसी और के लिए जगह नहीं

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कोलकाता, मई03: पश्चिम बंगाल की राजनीति अब दो ध्रुवीय बन चुकी हैं। प्रचंड बहुमत से जीतने वाली तृणमूल कांग्रेस एक ध्रुव पर है तो दूसरे ध्रुव पर है 77 सीटों वाली भाजपा। अगर तृणमूल ने सर्वोच्च (213 सीटें) जीत हासिल की है तो यह भी सच है कि पिछले 20 साल में पहली बार सत्ता पक्ष को इतने शक्तिशाली विपक्ष का सामना करना पड़ेगा। पिछले दो दशक में मुख्य विपक्षी दल का आंकड़ा कभी 60 से ऊपर नहीं गया। भाजपा ने इस रिकॉर्ड को तोड़ा है। तृणमूल को प्रचंड जनादेश तो मिला है लेकिन जनता ने ममता बनर्जी को हरा कर सत्ता पक्ष को संयम से काम करने की चेतावनी भी दी है। पश्चिम बंगाल में अब सिर्फ दो दलों की राजनीति चलेगी। तृममूल और भाजपा की। बाकी किसी दल के लिए कोई जगह नहीं है। पश्चिम बंगाल में 34 साल शासन करने वाला वाम मोर्चा जीरो पर लुढ़क गया तो 20 साल शासन करने वाली देश की सबसे पुरानी पार्टी, कांग्रेस खाता भी नहीं खोल सकी। 2021 के चुनाव में तृणमूल और भाजपा ने 290 सीटों पर जीत हासिल की है। इसके अलावा जिन दो सीटों पर जो जीत मिली है उनमें एक इंडियन सेक्यूलर फ्रंट के खाते में गयी है और दूसरी सीट गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के खाते में। दो सीटों पर चुनाव स्थगित हो गया था।

गुमान न कर, सत्ता तो आनी-जानी है

गुमान न कर, सत्ता तो आनी-जानी है

तृणमूल को बेशक बहुत बड़ी जीत मिली है लेकिन इसमें भविष्य की चेतावनी भी है। 3 से 77 पर पहुंचने वाली भाजपा को वह कमतर न समझे। तृणमूल माकपा की तरह वह गलती न करे जो उसने 2006 में की थी। उसने ममता बनर्जी की उभरती हुई ताकत की अनदेखी की थी। तब ममता बनर्जी की तृणमूल 30 सीटें जीत कर सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बनी थी। सीपीएम की नींद तब भी नहीं खुली जब तृणमूल ने विधानसभा के उपचुनावों में चार सीटें जीत लीं। तृणमूल कांग्रेस को पछाड़ कर आगे निकल रही थी। लेकिन वामपंथी सत्ता को स्थायी मान कर गफलत में खोये रहे। 2011 में ममता बनर्जी ने 30 से सीधे 184 की छलांग लगा कर वाममोर्चा के किले को धवस्त कर दिया। उस समय वामपंथी कहते थे कि गरीबों-मजदूरों की राजनीति करने वाले को कोई हरा नहीं सकता है। इस मुगालते में वामपंथियों का बेड़ा गर्क हो गया। इसलिए 2021 की प्रचंड जीत पर तृणणमूल को मदहोश नहीं होना चाहिए। ऐसा इस लिए क्यों कि भाजपा भी 77 से 148 की छलांग लगाने के लिए तैयार बैठी है।

कांग्रेस और वामदल अब बीते दिनों की बात

कांग्रेस और वामदल अब बीते दिनों की बात

पश्चिम बंगाल की राजनीति से कांग्रेस और वाममोर्चा का सफाया होना एक निर्णायक घटनाक्रम है। योग्यता से अधिक की कामना करना पैर पर कुल्हाड़ी मारने की तरह है। पश्चिम बंगाल में वामपंथियों का प्रभाव लगातार कम हो रहा था। सीपीएम को 2016 में केवल 26 सीटों पर जीती थी। लेकिन उसने कांग्रेस पर दवाब बना कर 2021 में अपने लिए 137 सीटें ले लीं। 137 सीटों पर लड़ने के बाद भी सीपीएम की झोली खाली रह गयी। जो पहले था उसे भी संभाल न सकी। पश्चिम बंगाल के प्रबुद्ध वोटरों की नजर में वाम दल अब अप्रासंगिक हो गये हैं। कांग्रेस को 2016 में 44 सीटें मिलीं थीं। मोलभाव में 91 सीटें ही मिलीं। उसका भी सफाया हो गया। कांग्रेस ने 2019 के लोकसभा चुनाव में दो सीटें जीती थीं। वाममोर्चा को एक भी सीट नहीं मिली थी। दो साल पहले तक पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की स्थिति कम से कम ऐसी जरूर थी कि वह आठ-दस सीटें पर जीत हासिल कर ले। लेकिन लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव के बीच ऐसा क्या हुआ कि कांग्रेस जीरो पर क्लीनबोल्ड हो गयी। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस को कमजोर चुनावी रणनीति की कीमत चुकानी पड़ी है।

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अहंकार का जवाब देना जानती है जनता

अहंकार का जवाब देना जानती है जनता

प्रचंड जीत वाली पार्टी की मुख्यमंत्री का हार जाना और भी विस्मयकारी घटना है। ममता बनर्जी को ये समझना होगा कि उनके खिलाफ भी लोगों के मन में गुस्सा है। उन लोगों के मन में गुस्सा है जिन्होंने कभी ममता बनर्जी को जमीन से आसमान पर पहुंचाया था। नंदीग्राम में ममता बनर्जी इस हार को नजरअंदाज कर जीत का जश्न नहीं मना सकती हैं। वे महाशक्तिमान नहीं हैं। अगर गलती करेंगी तो जनता उसका उत्तर जरूर देगी। यह उनका अभिमान ही था कि उन्होंने भवानीपुर सीट छोड़ कर नंदीग्राम से चुनाव लड़ने की जिद की थी। राजनीति में अहंकार और कटुता से नुकसान ही होता है। 1972 में कांग्रेस की जीत के बाद जब सिद्धार्थ शंकर राय पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने थे तब उन्होंने नक्सलबाड़ी आंदोलन को ताकत के बल पर कुचला दिया था। इसका नतीजा आज तक कांग्रेस भोग रही है। वामपंथी कैडरों के आतंकराज को भी जनता ने 2011 में उखाड़ फेंका था। इन उदाहरणों के आधार पर राजनातिक पंडितों का कहना है कि भय और आतंक की राजनीति तृणमूल के लिए भी आत्मघाती होगी।


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English summary
There is no place for anyone other than Trinamool and BJP in West Bengal
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