उत्तराखंड के चारों धामों में कौन हैं, हकहकूधारी और पूजा, पाठ के अधिकारी, जानिए सबकुछ
गंगोत्री, यमुनोत्री में बद्रीनाथ और केदारनाथ से अलग व्यवस्थाएं
देहरादून, 3 दिसंबर। उत्तराखंड के चार धाम गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को राज्य सरकार ने अधिग्रहण करने के लिए देवस्थानम बोर्ड बनाया। जिसे हाल ही में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भंग कर दिया है। देवस्थानम बोर्ड से पहले बद्रीनाथ और केेदारनाथ में बद्री केदार मंदिर समिति जिसे बीकेटीसी कहा जाता हैा सारी व्यवस्थाएं देखते आ रही हैा जबकि गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिर में अपनी-अपनी समितियां पूर्वजों के समय से व्यवस्थाएं देखती आ रही हैं। देवस्थानम बोर्ड के विरोध पीछे की वजह चारों धामों के तीर्थ पुरोहितों के हकहकूक छीनने का दावा किया जा रहा था। हालांकि गंगोत्री, यमुनोत्री में बद्रीनाथ और केदारनाथ से अलग व्यवस्थाएं हैं। ऐसे में ये जानना जरुरी है कि चारों धाम में वर्तमान में क्या स्थिति है, और इन धामों में किसको पूजा अर्चना के अधिकार प्राप्त है।
बद्रीनाथ और केदारनाथ में हैं हकहकूकधारी
उत्तराखंड में चारधाम विश्व प्रसिद्ध हैं। गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ हैं। चारों धामों में पूजा पाठ और अर्चना की व्यवस्थाएं अलग हैं। साथ ही केदारनाथ को छोड़कर किसी भी धाम में बाहरी व्यक्तियों को गर्भ गृह में जाने की अनुमति नहीं है। सबसे पहले बात बद्रीनाथ की। बद्रीनाथ में केरल के नंबूदरी ब्राह्मण परिवार के रावल को भगवान का मुख्य पूजा अर्चक माना गया है। जो कि 6 माह बदरी विशाल की पूजा करते हैं। इनके सहायक के रुप में डिमरी समुदाय के लोग होते हैं। बद्रीनाथ के तीर्थ पुरोहित नरेश आनंद नौटियाल ने बताया कि बदरीनाथ में गर्भ गृह में रावल, डिमरी समुदाय को ही जाने का अधिकार है। भगवान के मंंदिर के अंदर धड़िया वृत्तिदार पांडुकेश्वर के लोग रहते हैं, जो कि पूजा पाठ में सहायक की भूमिका निभाते हुए आ रहे हैं। मंदिर के बाहर लक्ष्मी मंदिर, भगवान के भोग के निर्माता, कामधेनु, चरणामृत, हवन कुंड, गरुड़ में डिमरी समुदाय के अर्चक होते हैं। घंटाकरण और कुबेर में पांडुकेश्वर बामणी के अर्चक वृत्तिदार होते हैं। भगवान के अभिषेक के लिए माल्य पंचायत के श्रृंगारी टंकड़ी गांव के वृत्तिदार तप्त कुंड में देवप्रयाग के पंडा समाज इसके अलावा बद्रीनाथ में नौटियाल, सती, कोठियाल और हटवाल जाति के ब्राह्रमण मंदिर परिसर में ब्रह्रम कपाल नामक तीर्थ में पित्र कार्य करवाते हैं। बद्रीनाथ धाम में हजारों परिवारों की रोजी रोटी जुड़ी है। स्थानीय पुरोहितों का दावा है कि ये अधिकार राजव्यवस्थाओं के समय से आदि शंकराचार्य की परंपराओं का निवृहन करते हुए बनाए गए हैं। केदारनाथ में रावल लिंगायत समुदाय जो कि दक्षिण भारत से आते हैं, मुख्य रावल हैं। इनके अलावा स्थानीय हकहकूकों में केदार सभा के अंर्तगत शुक्ला, तिवारी, कोठियाल, पोस्ती, सेमवाल जुगडाण, बगवाडी, अवस्थी, वाजपेई, कपरवाण, तंगवाण त्रिवेदी आदि समुदाय के कई परिवार हैं। जो कि भोग बनाना, पूजा आदि का सामान, पूजा पाठ आदि करते हैं।
गंगोत्री
में
सेमवाल
और
यमुनोत्री
में
उनियाल
करते
हैं
पूजा
लेकिन
गंगोत्री
और
यमुनोत्री
मंदिर
की
व्यवस्था
बद्रीनाथ
और
केदारनाथ
से
अलग
है।
यमुनोत्री
मंदिर
में
खरसाली
के
उनियाल
ब्राह्रमण
और
गंगोत्री
मंदिर
में
मुखबा
के
सेमवाल
ब्राह्रमण
अनादिकाल
से
पूजा-अर्चना
करते
आ
रहे
हैं।
गंगोत्री
मंदिर
समिति
के
पूर्व
सचिव
पंडित
रविंद्र
सेमवाल
ने
बताया
कि
उनके
पूर्वज
अनादिकाल
से
धामों
में
अपनी-अपनी
पूजा
अर्चना
कर
रहे
हैं।
जिसके
बाद
पीढ़ी
दर
पीढ़ी
स्थानीय
पुरोहित
पूर्वजों
की
बनाई
व्यवस्था
के
अनुसार
ही
पूजा
पाठ
करते
आ
रहे
हैं।
उनके
पूर्वजों
को
हकहकूक
नहीं
अधिकार
प्राप्त
हैं।