उत्तराखंड जलप्रलय: जब मोदी सरकार के मंत्री ने मौत के बीच गुजारी थीं तीन रातें
देहरादून। अगर रात का अंधेरा है तो भोर का उजाला भी है। सुख है तो दुख भी है। लेकिन कभी-कभी जिंदगी की कश्ती दुखों के भंवर में ऐसी फंस जाती है कि किनारा नजर नहीं आता। लेकिन तभी कोई अदृश्य शक्ति भंवर में हिचकोले खाती कश्ती को पार लगा देती है। उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर फटने से आयी प्रलयंकारी बाढ़ ने 2013 के हादसे की याद दिला दी है। केन्द्र के मौजूदा स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी चौबे सात साल पहले एक साथ दो संकटों में घिर गये थे। एक तरफ केदारनाथ में वे अपने परिवार के साथ जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे थे तो दूसरी तरफ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें बहुत ही अपमानजनक परिस्थितियों में मंत्री पद से हटा दिया था। केदारनाथ में उनकी जिंदगी तो बच गयी थी लेकिन उन्होंने साढ़ू, साली, निजी सहायक, पुजारी और तीन सुरक्षाकर्मियों को खो दिया था। जब पहाड़ों के हिमखंड और हिमनद मौत का तांडव करते हैं तो वह कितना डरावना होता है, ये अश्विनी चौबे से बेहतर शायद कोई नहीं जानता।
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जब आसमान से बरसने लगी मौत
जून 2013 के दूसरे हफ्ते में जब अश्विनी चौबे केदारनाथ समेत अन्य तीर्थस्थलों की यात्रा पर पटना से रवाना हुए थे उस समय वे बिहार सरकार में मंत्री थे। उनके साथ अन्य परिजन और सुरक्षाकर्मी भी थे। 17 जून 2013 को जब उत्तराखंड में बदल फटने से प्रलयंकारी बारिश शुरू हुई उस समय अश्विनी चौबे अपने लोगों के साथ केदारनाथ मंदिर के पास ही एक धर्मशाला में ठहरे हुए थे। बादल फटने के बाद क्या हुआ था, इसकी आपबीती उन्होंने खुद सुनायी थी। ऐसा लग रहा था जैसे आसमान से समंदर बरस रहा है। पहाड़ों से नीचे उतर रही उफनती हुई जलधार विशाल गर्जना कर रही थी। केदारनाथ मंदिर में लाशें ही लाशें बिछी हुई थीं। आसपास के होटल और मकान बह गये थे और जो बचे थे उनमें मलबा भर गया था।
वो खौफनाक मंजर
अश्विनी चौबे के मुताबिक , वे अपने परिजनों के साथ दो दिनों तक लाशों के बीच दुबके रहे थे। कई लोगों ने इलाज और सुविधाओं की कमी से उनके सामने दम तोड़ दिये। न आगे जाने का कोई रास्ता था न पीछे जाने के लिए। जो जहां पड़ा ता वहीं जिंदगी की दुआ कर रहा था। न खाने के लिए कुछ सामान था न ओढ़ने के लिए कंबल। दवा पहुंचने की कोई उम्मीद न थी। मौत आसपास मंडरा रही थी। लेकिन अश्विनी चौबे और उनके परिजन हिम्मत जुटाये रहे। तीन रातों के बाद अश्विनी चौबे और उनके परिवार को रेस्क्यू ऑपरेशन में बचा लिया गया। उन्हें केदारनाथ से निकाल कर गुप्तकाशी लाया गया। लेकिन इस हादसे में अश्विनी चौबे के साथ आये छह लोगों का कुछ पता नहीं चला। इस घटना को याद कर उनकी आंख से आंसू छलक जाते हैं। उन्होंने कहा था, मैंने अपने लोगों को खोया, हजारों लोगों को पानी में बहते हुए देखा, केदारनाथ मंदिर के गर्भगृह में तीन खौफनाक रातें गुजारीं। ईश्वर का चमत्कार है कि मैं बच गया वर्ना वहां जिंदगी के लिए कोई उम्मीद न बची थी। मैं तो यही मानता हूं कि मेरा दोबारा जन्म हुआ है।
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जब छिन गयी सत्ता की कुर्सी
अश्विनी चौबे मौत के जबड़े से निकल कर 21 जून 2013 को पटना पहुंचे थे। जब वे पटना पहुंचे तब तक उनकी राजनीतिक दुनिया बदल चुकी थी। वे मंत्री से भूतपूर्व मंत्री हो गये थे। नीतीश कुमार ने 16 जून 2013 को भाजपा से नाता तोड़ लिया था। नरेन्द्र मोदी को भाजपा चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाये जाने से वे नाराज थे। इसका मतलब था कि अब नरेन्द्र मोदी भाजपा का पीएम चेहरा होंगे। नीतीश को अपनी अल्पसंख्यक राजनीति पर खतरा महसूस हुआ। 16 जून को नीतीश ने अचनाक अपनी कैबिनेट से भाजपा मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया। उन्हें इस्तीफा देने का मौका भी नहीं दिया। उस समय जदयू के 117 विधायक थे। बहुमत के लिए 122 का आंकड़ा चाहिए था। नीतीश कुमार ने चार निर्दलीय और कांग्रेस के चार विधयकों के समर्थन से बहुमत का इंतजाम कर लिया था। यानी तब नीतीश बिना भाजपा के भी सरकार चला सकते थे। अश्विनी चौबे पर दोहरी विपदा आन पड़ी। एक तरफ उन्हें केदरनाथ में अपनों को खोना पड़ा तो दूसरी तरफ बिहार में सत्ता की कुर्सी छीन गयी। जान है तो जहान है। जिंदगी बची तो उसे नये सिरे से सजाया। अश्विनी चौबे बिहार की राजनीति से केन्द्र की राजनीति में आ गये। सांसद बने। आज नरेन्द्र मोदी सरकार में मंत्री हैं। जिंदगी में खोना और पाना, किस्मत की बात है।