उत्तराखंड में सत्ता की चाबी पाने के लिए मिथक पर सियासी दलों की नजर, जानिए क्या है खास
उत्तराखंड हिंदी समाचार
देहरादून, 11 जनवरी। उत्तराखंड में पांचवी विधानसभा के लिए 14 फरवरी को मतदान होना है। जिसके परिणाम 10 मार्च को आएंगे। 2022 का चुनाव कई मायने में खास होने जा रहा है। एक तरफ कोविड का खतरा दूसरी तरफ हर सियासी दल की हर मोर्चे पर परीक्षा होनी तय है। खासकर प्रचार-प्रसार के तरीके और डिजिटल माध्यमों का उपयोग इस बार चुनाव में सत्ता दिलाने में खासा मददगार साबित हो सकता है। लेकिन इन सब में सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या इस बार 21 सालों का रिकॉर्ड टूट पाएगा। जो कि चुनाव से जुड़े मिथक हैं। एक नजर उत्तराखंड के साथ जुड़े मिथक पर।
भाजपा
ने
बनाया
नया
रिकॉर्ड
उत्तराखंड
में
2017
से
2022
तक
भाजपा
की
प्रचंड
बहुमत
की
सरकार
रही।
लेकिन
इन
5
सालों
में
भी
भाजपा
ने
एक
इतिहास
बदलने
में
कामयाब
नहीं
हो
पाई।
2002
से
2007
तक
कांग्रेस
की
सरकार
में
एनडी
तिवारी
ही
एक
मात्र
ऐसे
मुख्यमंत्री
रहे,
जो
कि
पूरी
5
साल
की
सरकार
चला
पाए।
इसके
बाद
हर
बार
मुख्यमंत्री
बनने
के
रिकॉर्ड
बनते
गए।
2007
से
2012
तक
भाजपा
ने
दो
चेहरे
तीन
बार
बदले।
2012
से
2017
में
कांग्रेस
ने
दो
मुख्यमंत्री
दिए
और
इस
बार
2017
से
2022
तक
भाजपा
ने
सभी
रिकॉर्ड
तोड़
डाले
और
5
साल
में
तीन
मुख्यमंत्री
के
चेहरे
दे
दिए।
ये
भी
एक
रिकॉर्ड
कायम
हुआ।
लेकिन
क्या
भाजपा
के
मुख्यमंत्री
चुनाव
जीत
पाएंगे।
ये
बड़ा
सवाल
है।
मुख्यमंत्री
रहते
चुनाव
लड़ने
वाले
अब
तक
चुनाव
नहीं
जीत
पाए।
पुष्कर
सिंह
धामी
पर
इस
बार
ये
मिथक
तोड़ने
का
दवाब
होगा।
शिक्षा
मंत्री
नहीं
आए
दोबारा
जीतकर
अब
तक
जिस
भी
विधायक
को
शिक्षा
मंत्री
बनाया
गया
वो
फिर
जीत
दर्ज
नहीं
कर
पाए।
सबसे
पहले
2000
में
भाजपा
सरकार
में
तीरथ
सिंह
रावत
शिक्षा
मंत्री
बने
थे।
लेकिन
2002
के
चुनाव
में
विधानसभा
चुनाव
हार
गए
थे।
इसके
बाद
वर्ष
2002
में
तिवारी
सरकार
में
नरेंद्र
सिंह
भंडारी
शिक्षा
मंत्री
बने।
वे
2007
में
चुनाव
हार
गए
थे।
2007
में
भाजपा
के
गोविंद
सिंह
बिष्ट
और
खजान
दास
शिक्षा
मंत्री
रहे।
दोनों
ही
2012
में
विधानसभा
चुनाव
हार
गए।
वर्ष
2012
में
कांग्रेस
के
मंत्री
प्रसाद
नैथानी
को
शिक्षा
मंत्री
बने
वे
भी
2017
का
चुनाव
हार
गए।
2017
से
अब
तक
अरविंद
पांडेय
शिक्षा
मंत्री
रहे
हैं
अब
सबकी
निगाहें
उन
पर
ही
टिकी
हैं।
वे
इस
मिथक
को
तोड़
पाते
हैं
या
मिथक
बरकरार
रहता
है।
गंगोत्री,चम्पावत
के
पास
सत्ता
की
चाबी,
रानीखेत
के
पास
विपक्ष
उत्तरकाशी
जिले
के
गंगोत्री
विधानसभा
सीट
और
चम्वापत
सीट
को
लेकर
भी
एक
खास
मिथक
जुड़ा
हुआ
है।
2002
और
2012
में
कांग्रेस
के
विधायक
ने
जीत
दर्ज
की।
तो
सरकार
कांग्रेस
की
बनी।
2007
और
2017
में
भाजपा
का
विधायक
चुना
तो
सरकार
भाजपा
ने
बनाई।
इसी
तरह
2002
और
2012
में
चम्पावत
विधानसभा
सीट
पर
कांग्रेस
ने
परचम
लहराया
और
सरकार
कांग्रेस
की
बनी।
जबकि
2007
और
2017
में
भाजपा
ने
कब्जा
किया
और
सत्ता
में
भाजपा
को
मौका
मिला।
इस
तरह
ये
सीटें
जीतकर
सत्ता
मिलने
का
मिथक
बनता
रहा
है।
इसी
तरह
रानीखेत
सीट
के
साथ
एक
खास
बात
जुड़ी
है।
यहां
से
जिस
पार्टी
का
विधायक
चुना
जाता
है,
उन्हें
विपक्ष
में
बैठना
पड़ता
है।
2002
और
2012
में
इस
सीट
पर
भाजपा
जीती
तो
सरकार
कांग्रेस
की
बनी।
जबकि
2007
और
2017
में
कांग्रेस
जीती
तो
सरकार
भाजपा
ने
बनाई।
ऐसे
में
इन
तीनों
सीटों
पर
सियासी
दलों
की
खास
नजर
रहने
वाली
है।