घूमने फिरने के साथ ट्रैकिंग करने की कर रहे प्लानिंग तो पहुंच जाइए उत्तराखंड की इन 5 वादियों में
तुंगनाथ, रुद्रनाथ, दयारा बुग्याल, हर की दून, फूलों की घाटी
देहरादून, 4 जून। गर्मी सताने लगी है। ऐसे में हर कोई पहाड़ की शांत और ठंडी वादियों में आना पसंद करते हैं। ऐसे में अगर ट्रैकिंग करने को मिल जाए तो फिर रोमांच से दिल खुश हो जाए। आज हम आपको बता रहे हैंं उत्तराखंड में ट्रैकिंग के लिए फेमस डेस्टिनेशन, जहां पहुंचकर आपको एडवेंचर के साथ ही प्रकृति की सुेदरता का एहसास हो जाएगा। ये सभी जगह गर्मियों में समय बिताने के लिए सबसे बेहतर विकल्प रहता है।
तुंगनाथ
चोपता रुद्रप्रयाग जिले में एक छोटा सा शहर है। चोपता को भारत में मिनी स्विट्जरलैंड के नाम से भी जाना जाता है। चोपता में आपको दुनिया का सबसे ऊंचा शिव मंदिर देखने को मिलेगा यह मंदिर तुंगनाथ के नाम से बहुत प्रसिद्ध है। चोपता सबसे ज्यादा तुंगनाथ और चंद्रशिला ट्रेक के लिए प्रसिद्ध है, इस ट्रेक के दौरान आप पंचचुली, नंदा देवी, केदारनाथ और त्रिशूल की राजसी चोटियों को देख सकते हैं। तुंगनाथ पर्वत पर स्थित है तुंगनाथ मंदिर, जो 3460 मीटर की ऊंचाई पर बना हुआ है और पंच केदारों में सबसे ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर हजारों वर्ष पुराना माना जाता है और यहां भगवान शिव की पंच केदारों में से एक के रूप में पूजा होती है। ऐसा माना जाता है की इस मंदिर का निर्माण पांडवों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किया गया था, जो कुरुक्षेत्र में हुए नरसंहार के कारण पाण्डवों से रुष्ट थे। मंदिर चोपता से 3 किलोमीटर दूर स्थित है। कहा जाता है कि पार्वती माता ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए यहां ब्याह से पहले तपस्या की थी। जनवरी-फरवरी के महीनों में आमतौर पर बर्फ की चादर ओढ़े इस स्थान की सुंदरता जुलाई-अगस्त के महीनों में देखते ही बनती है। ऋषिकेश से श्रीनगर गढ़वाल होते हुए रुद्रप्रयाग होते हुए ऊखीमठ, अगस्त्य मुनि पड़ता है। चोपता से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद देवहरिया ताल पहुंचा जा सकता है जो कि तुंगनाथ मंदिर के दक्षिण दिशा में है। इस पारदर्शी सरोवर में चौखंभा, नीलकंठ आदि हिमाच्छादित चोटियों के प्रतिबिंब स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। तुंगनाथ मन्दिर से कुछ दूरी पर ऊपर की ओर चन्द्र शिला मन्दिर है जहाँ यह रावण शिला या स्पीकिंग माउंटेन के नाम से विख्यात स्थान है। मई से नवंबर तक यहां कि यात्रा की जा सकती है। यहां पहुंचने के दो रास्ते है। पहला ऋषिकेश से गोपेश्वर होते हुए। जिसकी दूरी 212 किमी गोपेश्वर तक फिर गोपेश्वर से चोपता चालीस किलोमीटर और आगे है। दूसरा ऋषिकेश से ऊखीमठ होते हुए। जिसकी दूरी 178 किलोमीटर है और फिर ऊखीमठ से आगे चोपता चौबीस किलोमीटर है।
रुद्रनाथ
रुद्रनाथ मन्दिर चमोली जिले में स्थित भगवान शिव का एक मन्दिर है जो कि पंचकेदार में से एक है। समुद्रतल से 2290 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रुद्रनाथ मंदिर। रुद्रनाथ मंदिर में भगवान शंकर के एकानन यानि मुख की पूजा की जाती है, जबकि संपूर्ण शरीर की पूजा नेपाल की राजधानी काठमांडू के पशुपतिनाथ में की जाती है। रुद्रनाथ मंदिर के सामने से दिखाई देती नन्दा देवी और त्रिशूल की हिमाच्छादित चोटियां यहां का आकर्षण बढाती हैं। यहां पहुंचने के लिए पहले गोपेश्वर पहुंचना होता है, यहां का गोपीनाथ मंदिर और लौह त्रिशूल के दर्शन करने के बाद गोपेश्वर से करीब पांच किलोमीटर दूर है सगर गांव। बस द्वारा रुद्रनाथ यात्रा का यही अंतिम पडाव है। इसके बाद चढाई शुरू हो जाती है। सगर गांव से करीब चार किलोमीटर चढने के बाद यात्री पहुंचता है पुंग बुग्याल फिर कलचात बुग्याल और फिर चक्रघनी की आठ किलोमीटर की खडी चढाई के बाद ल्वीटी बुग्याल पहुंचता है। ल्वीटी बुग्याल के बाद करीब तीन किलोमीटर की चढाई के बाद आता है पनार बुग्याल। दस हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित पनार रुद्रनाथ यात्रा मार्ग का मध्य द्वार है जहां से रुद्रनाथ की दूरी करीब ग्यारह किलोमीटर रह जाती है। पनार के आगे पित्रधार नामक स्थान है पित्रधार में शिव, पार्वती और नारायण मंदिर हैं। रुद्रनाथ की चढाई पित्रधार में खत्म हो जाती है और यहां से हल्की उतराई शुरू हो जाती है। पनार से पित्रधार होते हुए करीब दस-ग्यारह किलोमीटर के सफर के बाद यात्री पहुंचता है पंचकेदारों में चौथे केदार रुद्रनाथ में। यहां विशाल प्राकृतिक गुफा में बने मंदिर में शिव की दुर्लभ पाषाण मूर्ति है। यहां शिवजी गर्दन टेढे किए हुए हैं। माना जाता है कि शिवजी की यह दुर्लभ मूर्ति स्वयंभू है यानी अपने आप प्रकट हुई है। मंदिर के पास वैतरणी कुंड में शक्ति के रूप में पूजी जाने वाली शेषशायी विष्णु जी की मूर्ति भी है। मंदिर के एक ओर पांच पांडव, कुंती, द्रौपदी के साथ ही छोटे-छोटे मंदिर मौजूद हैं। मंदिर में प्रवेश करने से पहले नारद कुंड है जिसमें यात्री स्नान करने के बाद मंदिर के दर्शन करने पहुंचता है। रुद्रनाथ के कपाट परंपरा के अनुसार खुलते-बंद होते हैं। शीतकाल में छह माह के लिए रुद्रनाथ की गद्दी गोपेश्वर के गोपीनाथ मंदिर में लाई जाती है जहां पर शीतकाल के दौरान रुद्रनाथ की पूजा होती है। ऋषिकेश से करीब 212 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोपेश्वर। यहां बस, टैक्सी आसानी से उपलब्ध हो जाती है। गोपेश्वर से करीब पांच किलोमीटर ऊपर सगर नामक स्थान तक आप बस की सवारी कर सकते हैं। इसके बाद करीब 22 किलोमीटर की खडी चढाई चढनी होती है। मई के महीने में जब रुद्रनाथ के कपाट खुलते हैं तभी से यहां से यात्रा शुरू हो जाती है। लेकिन प्रकृति का असली स्वरूप का आनंद अगस्त सितंबर के महीने में भी लिया जा सकता है।
हर की दून
हर
की
दून
का
अर्थ
है
ईश्वर
की
घाटी।
जो
कि
गोविंद
बल्लभ
पंत
राष्ट्रीय
उद्यान
के
केंद्र
में
3566
मीटर
की
ऊंचाई
पर
एक
पालने
के
आकार
की
घाटी
है।
बर्फ
से
ढकी
चोटियों
और
अल्पाइन
वनस्पतियों
से
घिरा,
हर-की-दून,
सबसे
खूबसूरत
ट्रेकिंग
गंतव्य
है।
मान्यता
है
कि
महाभारत
काल
में
युधिष्ठिर
अन्य
पाण्डवों
सहित
इसी
शिखर
से
स्वर्ग
को
गये
थे।
यहां
अक्टूबर
से
मार्च
तक
बर्फ
से
ढंकी
रहती
है।
हर
की
दून
ट्रेक
के
लिए,
सांकरी
के
विचित्र
गांव
तक
पहुंचना
पड़ता
है
जो
देहरादून
से
200
किमी
दूर
स्थित
है।
हर
की
दून
ट्रेक
में
6-7
दिनों
की
आवश्यकता
होगी
क्योंकि
इसमें
काफी
समय
लगता
है
और
47
किलोमीटर
की
दूरी
तय
करने
के
लिए
प्रत्येक
दिन
लगभग
5
घंटे
की
ट्रेक
की
आवश्यकता
होगी।
घाटी
तालुका
से
लगभग
25
किमी
दूर
है।
यमुनोत्री
मार्ग
पर
नौगांव
से
बांए
मुड़कर
यात्री
बस
द्वारा
पुरोला,मोरी
होते
हुए
नेटवाड़
पहुंच
कर
आगे
जीप
आदि
हल्के
वाहनों
से
सांकरी
ग्राम
तक
जा
सकते
हैं।
इससे
आगे
का
सारा
मार्ग
अत्यन्त
मनोरम
है,
किन्तु
उतना
ही
कठिन
भी
है
और
पैदल
ही
तय
करना
पड़ता
है।
सूपिन
नदी
के
किनारे-किनारे
तालुका,गन्गाड़,ओस्ला
आदि
ग्रामीण
बस्तियों
तथा
राजमा,
आलू
व
चौलाई
के
खेतों
के
पास
से
निकलते
हुए,
कलकत्ती
धार
नामक
थका
देने
वाली
चढा़ई
को
पार
करके
अन्त
मे
हर
की
दून
में
पहुंचते
हैं।
वैली ऑफ फ्लावर्स
फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान एक फूलों की घाटी का नाम है, जिसे अंग्रेजी में वैली ऑफ फ्लावर्स कहते हैं। यह फूलों की घाटी विश्व संगठन, यूनेस्को द्वारा साल 1982 में घोषित विश्व धरोहर स्थल नन्दा देवी अभयारण्य- नन्दा देवी राष्ट्रीय उद्यान का एक भाग है। इसे हिमालय क्षेत्र की पिंडर घाटी या पिंडर वैली के नाम से भी जाना जाता है। फूलों की घाटी का ये ट्रैक जून में खुल चुका है। 31 अक्टूबर से पहले यहां जाने का प्लान बना लें क्योंकि इसके बाद ये ट्रैक बंद हो जाएगा। वैली ऑफ फ्लावर्स पहुंचने के लिए देहरादून पहुंचना होगा। हवाई मार्ग से देहरादून के पास जॉली ग्रांट एयरपोर्ट और ट्रेन ऋषिकेश या हरिद्वार पहुंचा जा सकता है। इसके बाद गोविंदघाट पहुंचने के लिए यहां से टैक्सी और बसें आसानी से उपलब्ध हैं। गोविंदघाट से फूलों की घाटी तक पहुंचने के लिए आपको 16 किलोमीटर का सफर तय करना होगा।
दयारा बुग्याल
उत्तरकाशी जिले में स्थित दयारा बुग्याल सुमद्र तल से 3048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। चारों ओर बर्फ से ढके बुग्याल का रास्ता भटवाड़ी नामक स्थान से जाता है जहां से बारसू गांव पहुंचकर दयारा बुग्याल तक का पैदल सफर तय करना होता है। बारसू से 9 किलोमीटर पैदल तो चलना ही होगा। दयारा बुग्याल के सुंदर जंगल, पहाड़ और खूबसूरत रेशमी घास कहती है। यहां आप कैंप लगाकर कुछ वक्त के लिए इस जन्नत में दुनिया से कट सकते हैं। इस जगह आपको बंदरपूछ, कलानाग, श्रीखंड महादेव, श्रीखंड शिखर और गंगोली चोटी जैसे पर्वत शिखरों का खूबसूरत नजारा देखने को मिलेगा। आपको यहां आने के लिए गर्मियों तक का इंतजार करना है। यहाँ सर्दियों में बर्फ से दयारा बुग्याल की ढलानें आच्छादित हो जाती हैं। जहाँ आप स्कींग का भी आनंद ले सकते हैं। दयारा बुग्याल देहरादून से इस बुग्याल के पहले पड़ाव बारसू गांव तक आसानी से बस द्वारा पहुंच सकते हैं। गांव से दयारा बुग्याल तक की 9 किमी यात्रा का सफर तय करना होता है।