उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में पहली बार चुनावी मैदान से बाहर नजर आएंगे हरक सिंह रावत, जानिए कैसे
हरक सिंह को कांग्रेस ने नहीं दिया चुनाव में टिकट
देहरादून, 27 जनवरी। उत्तराखंड की राजनीति के बड़े चेहरों में शामिल हरक सिंह रावत 22 साल के इतिहास में उत्तराखंड में पहली बार चुनावी मैदान से बाहर नजर आएंगे। हरक सिंह रावत हाल ही में कांग्रेस का दामन थाम चुके हैं। इसके बाद हरक सिंह रावत को चौबट्टाखाल से चुनाव लड़ाने की चर्चा सोशल मीडिया में भी होती रही, लेकिन कांग्रेस ने चौबट्टाखाल से केसर सिंह नेगी को प्रत्याशी घोषित कर दिया है। ऐसे में अब हरक सिंह रावत के चुनाव न लड़ने की तस्वीर भी साफ हो गया है। माना जा रहा है कि हरक सिंह रावत अब अपनी बहू अनुकृति गुसांई के लिए लैंसडाउन सीट पर प्रचार-प्रसार का जिम्मा संभालेंगे। इसके साथ ही गढ़वाल की कई सीटों पर हरक सिंह रावत का दबदबा माना जाता है। इन सीटों पर भी हरक सिंह को प्रचार प्रसार की कमान सौंपी जा सकती है। लेकिन ये बात तय है कि वे विधानसभा चुनाव के मैदान से बाहर हैं।
3
बार
कैबिनेट
मंत्री,
एक
बार
नेता
प्रतिपक्ष
रहे
हरक
हरक
सिंह
रावत
उत्तराखंड
बनने
के
बाद
से
22
साल
से
लगातार
किसी
न
किसी
रूप
से
राजनीतिक
पारी
को
खेलते
आए
हैं।
चार
बार
की
विधानसभा
में
वे
तीन
बार
कैबिनेट
मंत्री,
तो
एक
बार
नेता
प्रतिपक्ष
के
रूप
में
वो
राजनीति
की
मुख्य
धारा
में
रहे
हैं।
हालांकि
हरक
सिंह
रावत
पहले
ही
साफ
कर
चुके
हैं
कि
वे
घर
बैठने
वाले
नेताओं
में
नहीं
है।
तो
ऐसे
में
कांग्रेस
के
लिए
हरक
सिंह
रावत
को
किस
रुप
में
इस्तेमाल
किया
जाएगा,
ये
देखना
दिलचस्प
होगा।
हरक
सिंह
रावत
के
समर्थक
उन्हें
2024
में
गढ़वाल
लोकसभा
सीट
से
दावेदार
बता
रहे
हैं।
लेकिन
2019
में
गढ़वाल
लोकसभा
सीट
से
कांग्रेस
पूर्व
मुख्यमंत्री
बीसी
खंडूरी
के
बेटे
मनीष
खंडूरी
को
चुनाव
लड़ा
चुकी
है।
1991
में
जीता
था
पहला
चुनाव
पूर्व
कैबिनेट
मंत्री
हरक
सिंह
ने
1991
में
पहली
बार
भाजपा
के
टिकट
पर
पौड़ी
सीट
से
विधानसभा
का
चुनाव
लड़ा
और
वे
चुनाव
जीते
भी।
1993
में
हरक
सिंह
पौड़ी
से
चुनाव
लड़े।
1996
में
उन्होंने
अपनी
पार्टी
जनता
मोर्चा
बनाई।
इसके
टिकट
पर
वे
पौड़ी
से
चुनाव
हार
गए।
इसके
बाद
वे
बसपा
में
शामिल
हो
गए
और
यूपी
में
खादी
ग्रामोद्योग
बोर्ड
के
अध्यक्ष
बने।
2002,
2007
में
कांग्रेस
के
टिकट
पर
लैंसडाउन
से
विधायक
बने।
2012
में
कांग्रेस
के
टिकट
पर
रुद्रप्रयाग
से
विधायक
बने।
2016
में
कांग्रेस
छोड़
भाजपा
में
शामिल
हुए।
2017
में
भाजपा
के
टिकट
पर
कोटद्वार
से
विधायक
बने।
2022
में
फिर
कांग्रेस
में
शामिल
हो
गए।
लेकिन
इस
बार
हरक
सिंह
रावत
को
कांग्रेस
ने
टिकट
नहीं
दिया,
उनके
परिवार
से
हरक
सिंह
रावत
की
बहू
अनुकृति
गुंसाई
को
टिकट
दिया
है।
कांग्रेस
हाईकमान
ने
एक
परिवार
एक
टिकट
के
फॉर्मूले
को
अपनाने
का
दावा
किया
था,
लेकिन
बुधवार
देर
रात
आई
सूची
में
पूर्व
मुख्यमंत्री
हरीश
रावत
को
लालकुंआ
और
उनकी
बेटी
अनुपमा
रावत
को
हरिद्वार
ग्रामीण
से
टिकट
देकर
पार्टी
ने
एक
परिवार
एक
टिकट
को
लागू
नहीं
किया
है।
ऐसे
में
हरक
सिंह
को
टिकट
न
देना
हरीश
रावत
का
बड़ा
चुनावी
दांव
माना
जा
रहा
है।
कांग्रेसियों
का
दावा
है
कि
हरक
सिंह
रावत
विधायक
बनने
के
बाद
सीधे
तौर
पर
मुख्यमंत्री
की
दावेदारी
कर
सकते
थे,
ऐसे
में
हरीश
रावत
ने
उन्हें
पहले
ही
चुनाव
मैदान
से
बाहर
कर
दिया।
हालांकि
उत्तराखंड
में
हमेशा
चुनाव
में
विधायक
से
सीधे
मुख्यमंत्री
त्रिवेंद्र
सिंह
रावत
ही
बनें
है।
भाजपा
हो
या
कांग्रेस
पैराशूट
नेता
को
मुख्यमंत्री
बनाने
का
इतिहास
दोनों
दलों
में
ही
लागू
रहा
है।
मुख्यमंत्री
बनने
के
बाद
उपचुनाव
में
ही
विधायक
बनाने
का
उत्तराखंड
का
इतिहास
रहा
है।