Uttarakhand: बहुचर्चित फर्जी रणबीर एनकाउंटर केस फिर से सुर्खियों में, जानें क्या था पूरा मामला
वर्ष 2009 का मामला, दून में पुलिसवालों ने ली थी युवक की जान
उत्तराखंड का बहुचर्चित फर्जी रणबीर एनकाउंटर केस एक बार फिर सुर्खियों में हैंं। फर्जी एनकाउंटर केस के दोषी 5 पुलिसकर्मियों को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई। पुलिसकर्मियों ने देहरादून में 22 साल के एमबीए छात्र का फर्जी एनकाउंटर कर उसकी जान ले ली थी।
वर्ष 2009 में हुआ था फर्जी एनकाउंटर
वर्ष 2009 गाजियाबाद के रहने वाले एमबीए के छात्र रणबीर सिंह की देहरादून में पुलिसकर्मियों ने फर्जी एनकाउंटर में जान ले ली थी। इस मामले के दोषी 5 पुलिसकर्मियों को जीडी भट्ट, अजीत सिंह, एसके जायसवाल, नितिन चौहान और नीरज कुमार को जमानत मिल गई है। सभी दोषी पांच पुलिसकर्मी अब तक 11 साल से अधिक समय जेल में बिता चुके हैं। उम्र कैद के खिलाफ उनकी अपील 2019 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित थी। इस केस में साल 2018 में हाई कोर्ट ने कुल 7 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराते हुए उम्र कैद की सजा दी थी। इनमें से राजेश बिष्ट और चंद्र मोहन को पहले ही ज़मानत मिल चुकी थी और शुक्रवार 25 नवंबर को बाकी 5 पुलिसकर्मियों को भी जमानत मिल गई। मामले में निचली अदालत ने 17 पुलिसकर्मियों को दोषी ठहराया था। लेकिन हाई कोर्ट ने 10 पुलिसकर्मियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था।
ये
था
मामला
गाज़ियाबाद
का
रहने
वाला
22
साल
का
एमबीए
छात्र
रणबीर
सिंह
3
जुलाई
2009
को
कुछ
काम
से
देहरादून
आया
था।
जहां
गलत
व्यवहार
करने
पर
उसने
पुलिसवालों
का
विरोध
किया
था।
इसके
बाद
रणबीर
को
पुलिसकर्मी
चौकी
में
ले
गए।
जिसके
बाद
जंगल
में
ले
जाकर
उसे
फर्जी
मुठभेड़
में
मार
दिया
था।
रणबीर
के
माता
पिता
ने
इसके
लिए
कानूनी
लड़ाई
लड़ी।
रणबीर
सिंह
की
पोस्टमॉर्टम
रिपोर्ट
ने
पुलिस
की
सारी
पोल
पट्टी
खोल
दी
थी।
पुलिस
का
दावा
था
कि
3
जुलाई
2009
को
तत्कालीन
राष्ट्रपति
प्रतिभा
पाटिल
देहरादून
आ
रही
थीं।
शहर
में
चेकिंग
की
जा
रही
थी।
चेकिंग
के
दौरान
सर्कुलर
रोड
में
मौजूद
तत्कालीन
आराघर
चौकी
इंचार्ज
पीडी
भट्ट
एक
मोटरसाइकिल
पर
आ
रहे
तीन
युवकों
को
रोका,
लेकिन
तीनों
युवकों
ने
चौकी
इंचार्ज
पर
हमला
कर
उनकी
पिस्टल
छीन
लिया।
पुलिस
ने
बताया
कि
घटना
से
दो
घंटे
बाद
इस
अपराध
में
शामिल
एक
युवक
को
लाडपुर
के
जंगल
में
ढेर
कर
दिया
गया,
जबकि
दो
युवक
भागने
में
सफल
हो
गए
थे।
एनकाउंटर
में
ढेर
युवक
की
पहचान
रणबीर
निवासी
बागपत
के
रूप
में
की
गई
थी।
लेकिन
जांच
में
ये
पूरा
मामला
फर्जी
निकला
और
उत्तराखंड
की
मित्र
पुलिस
पर
कभी
न
मिटने
वाला
दाग
लग
गया।