देवस्थानम बोर्ड: पुरोहितो को क्यों नहीं भाया भाजपा सरकार का ये फैसला, जानिए अंदर की पूरी कहानी
देवस्थानम को लेकर पुरोहितों को मनाने में भाजपा हुई फेल
देहरादून, 2 दिसंबर। देवस्थानम बोर्ड को राज्य सरकार ने भंग तो कर दिया लेकिन अब पंडा समाज में नई व्यवस्था को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है। सरकार ने फिलहाल पुरानी व्यवस्था बहाल करने की बात की है। हालांकि जब तक सरकार इस पर कोई आदेश जारी नहीं कर लेती, तब तक कुछ भी कहना जल्दबाजी हो सकता है। ऐसे में सरकार का चारधाम और मंदिरों के लिए क्या रोडमैप है। इसको लेकर भी पुरोहित समाज आशंकित नजर आ रहे हैं। राज्य सरकार ने भले ही देवस्थानम बोर्ड को भंग कर दिया हो लेकिन तीर्थ पुरोहितों की मांग है कि सरकार को पुरानी व्यवस्था के तहत बद्री केदार मंदिर कमेटी बीकेटीसी को फिर से एक्टिव करना चाहिए। यहां पर ये जानना भी जरुरी है कि आखिर सरकार देवस्थानम बोर्ड की स्थापना क्यों की थी, और इसके पीछे सरकार की मंशा क्या थी।
वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड को बताया था आधार
2017
में
भाजपा
की
सरकार
आने
के
बाद
त्रिवेंद्र
सरकार
ने
वैष्णो
देवी
श्राइन
बोर्ड
की
तर्ज
पर
देवस्थानम
बोर्ड
की
स्थापना
की
थी।
सरकार
का
दावा
था
कि
इसमें
51
मंदिर
और
भी
हैं,
जिनमें
रखरखाव
की
समस्या
है।
दावा
किया
गया
कि
देश
में
तमाम
जगहों
पर
ट्रस्ट
और
बोर्ड
हैं।
वहां
गठन
के
बाद
बड़ा
परिवर्तन
आया
है,
उसके
अध्ययन
की
जरूरत
है।
आज
वह
ट्रस्ट
और
बोर्ड
विश्वविद्यालय,
मेडिकल
कॉलेज
संचालित
कर
रहे
हैं।
तमाम
छोटे-बड़े
मंदिरों
का
रखरखाव
हुआ।
भविष्य
की
योजनाएं
बनीं।
इसका
लाभ
तीर्थयात्रियों
को
भी
हुआ
है
और
संबंधित
ट्रस्ट
को
भी।
त्रिवेंद्र
सिंह
रावत
ने
बतौर
सीएम
जागेश्वर
ट्रस्ट
का
उदाहरण
देते
हुए
वह
इसे
पिछले
20
साल
का
सबसे
सुधारात्मक
कदम
मानते
थे।
बोर्ड
के
जरिए
सरकार
चारों
धाम
में
अवस्थापना
विकास
का
दावा
करती
आ
रही
थी।
देवस्थानम
बोर्ड
के
गठन
की
शुरुआत
2017
में
भाजपा
की
सरकार
आने
के
बाद
शुरू
हुई।
त्रिवेद्र
सिंह
रावत
ने
चारों
धाम
यमुनोत्री,
गंगोत्री,
बद्रीनाथ
और
केदारनाथ
के
साथ
राज्य
में
बने
53
मंदिरों
के
बेहतर
संचालन
के
लिए
देवस्थानम
बोर्ड
बनाया।
जिसे
2019
में
मंजूरी
मिली।
इसके
बाद
विधानसभा
"उत्तराखंड
चार
धाम
देवस्थानम
मैनेजमेंट
बिल"
पेश
किया
गया।
जनवरी
2020
में
इस
बिल
को
राजभवन
से
मंजूरी
मिली
और
इस
तरह
ये
एक्ट
तैयार
हुआ.
इसी
एक्ट
के
तहत
15
जनवरी
2020
को
'चार
धाम
देवस्थानम
बोर्ड'
बना।
पुरोहितों को अपने अधिकारों पर अतिक्रमण का शक
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने आंकड़े पेश करते हुए कहा कि त्रिवेंद्रम मंदिर की सालाना आय 950 करोड़, तिरुपति बालाजी की 1140 करोड़, तमिलनाडु में रामेश्वर मंदिर की 350 करोड़, साईं बाबा शिरडी मंदिर की 500 करोड़, सिद्ध विनायक मंदिर मुंबई की 400 करोड़, वैष्णो देवी मंदिर की 400 करोड़ है। जबकि बदरी, केदार मंदिर की सालाना आय 15 करोड़ और गंगोत्री व यमुनोत्री मंदिर की छह करोड़ है। देश के बड़े मंदिरों व धामों के आज मेडिकल कॉलेज चल रहे हैं। इनसे गरीबों और जरूरतमंदों को किसी न किसी रूप में मदद मिल रही है। उन्होंने कहा कि चारधाम में देश-दुनिया के हिंदू दान देना चाहते हैं। आने वाले 5 से 10 साल में देवस्थानम बोर्ड के परिणाम सामने आएंगे। लेकिन पुरोहितों को तब बोर्ड पर शक हुआ जब उनके हकहकूकों पर अतिक्रमण होना शुरू हुआ। पुरोहितों ने अपने पाठ पूजा वाले स्थलों पर निर्माण कार्य और कपाट खुलने और बंद होने की प्रक्रिया में अपने अधिकारों के हनन का बोर्ड पर आरोप लगाना शुरू किया। बोर्ड बनने के बाद कई ऐसे बदलाव हुए जिससे आर्थिक नियंत्रण उत्तराखंड सरकार के पास चला गया। इसके अलावा चार धाम और मंदिरों में आने वाला चढ़ावा सरकार के नियंत्रण में चला गया। इसके साथ ही पुरोहितों की नाराजगी त्रिवेंद्र सिंह रावत की हठधर्मिता भी थी। त्रिवेंद्र बोर्ड के माध्यम से स्थानीय तीर्थ पुरोहितों को होने वाले फायदे को गिनाने में सफल नहीं हो पाए।
क्या थी पहले मंदिरों की व्यवस्था
संयुक्त
उत्तर
प्रदेश
में
वर्ष
1939
में
बदरीनाथ-केदारनाथ
मंदिर
समिति
अधिनियम
लाया
गया
था।
इसके
तहत
गठित
बदरी-केदार
मंदिर
समिति
जिसे
बीकेटीसी
कहा
जाता
था,
तब
से
बदरीनाथ
व
केदारनाथ
की
व्यवस्थाएं
देखती
आ
रही
थी।
इनमें
बदरीनाथ
से
जुड़े
29
और
केदारनाथ
से
जुड़े
14
मंदिर
भी
शामिल
थे।
इस
तरह
कुल
45
मंदिरों
का
जिम्मा
बीकेटीसी
के
पास
था
इसमें
एक
आईएएस
रैंक
के
अधिकारी
को
सीईओ
की
जिम्मेदारी
सौंपी
गई
थी।
गंगोत्री
मंदिर
समिति
और
यमुनोत्री
मंदिर
समिति
अपने
स्तर
से
काम
काज
देख
रही
थी।
वर्ष
2017
में
भाजपा
सरकार
उत्तराखंड
चारधाम
देवस्थानम
प्रबंधन
अधिनियम
अस्तित्व
में
आया
और
फिर
चारधाम
देवस्थानम
प्रबंधन
बोर्ड
गठित
प्रक्रिया
गया।
उत्तराखंड
चारधाम
देवस्थानम
प्रबंधन
बोर्ड
के
दायरे
में
शामिल
51
मंदिरों
को
शामिल
किया
गया।
बोर्ड
के
दायरे
में
चारधाम
बदरीनाथ,
केदारनाथ
व
उनसे
जुड़े
मंदिरों
के
साथ
ही
गंगोत्री
व
यमुनोत्री,
रघुनाथ
मंदिर
(देवप्रयाग),
चंद्रबदनी,
मुखेम
नागराजा
मंदिर
(टिहरी)
और
राजराजेश्वरी
मंदिर
(श्रीनगर)
को
लाया
गया।