22 मार्च से शुरू होगा देहरादून का ऐतिहासिक झंडा मेला, कब और क्यों मनाया जाता है, जानिए सबकुछ
22 मार्च को झंडेजी के आरोहण के साथ झंडा मेला होगा शुरू
देहरादून, 23 फरवरी। देहरादून का ऐतिहासिक झंडा मेला इस बार पंचमी के दिन 22 मार्च को झंडेजी के आरोहण के साथ मेला शुरू होगा। झंडा मेला प्रतिवर्ष होली के 5वें दिन बाद आयोजित होता है। जो कि सिक्ख गुरू रामराय जी के जन्म दिवस से शुरू होकर 15 दिनों तक चलता है। इसी दिन गुरूराम राय जी देहरादून आए थे। जो कि 1676 में देहरादून आए थे।
जन्मदिवस
पर
लगता
है
झंडा
मेला
प्रेम,
सद्भावना
और
आस्था
का
प्रतीक
झंडा
मेला
होली
के
पांचवें
दिन
देहरादून
स्थित
श्री
दरबार
साहिब
में
झंडेजी
के
आरोहण
के
साथ
शुरू
होता
है।
इस
दौरान
देश-विदेश
से
संगतें
मत्था
टेकने
पहुंचती
हैं।
इस
मेले
में
पंजाब,
हरियाणा
और
आसपास
के
कई
इलाकों
से
संगतें
आती
हैं।
जो
कि
गुरूराम
राय
जी
के
भक्त
होते
हैं।
श्री
गुरु
राम
राय
ने
वर्ष
1676
में
दून
में
डेरा
डाला
था।
उनका
जन्म
1646
में
पंजाब
के
होशियारपुर
जिले
के
कीरतुपर
में
होली
के
पांचवें
दिन
हुआ
था।
इसलिए
दरबार
साहिब
में
हर
साल
होली
के
पांचवें
दिन
उनके
जन्मदिवस
पर
झंडा
मेला
लगता
है।
गुरु
राम
राय
ने
ही
लोक
कल्याण
के
लिए
विशाल
ध्वज
को
यहां
स्थापित
किया
था।
नया
ध्वज
दंड
लगभग
85
फीट
ऊंचा
होगा
प्राप्त
जानकारी
के
अनुसार
इस
बार
श्री
दरबार
साहिब
में
लाकर
पूजा-अर्चना
के
बाद
कृष्ण
पंचमी
यानी
22
मार्च
को
झंडे
जी
का
आरोहण
किया
जाएगा।
इस
बार
ध्वजदंड
भी
बदला
जाएगा।
मेला
प्रबंधन
समिति
को
प्रशासन
की
गाइडलाइन
का
इंतजार
है।
बीते
2
वर्षों
से
कोविड
गाइडलाइन
के
चलते
मेले
को
संक्षिप्त
किया
जा
रहा
था।
झंडा
मेले
में
हर
तीन
वर्ष
में
झंडेजी
के
ध्वजदंड
को
बदलने
की
परंपरा
रही
है।
इससे
पूर्व
वर्ष
2020
में
ध्वजदंड
बदला
गया
था।
इस
वर्ष
नया
ध्वज
दंड
लगभग
85
फीट
ऊंचा
रहेगा।
श्री
दरबार
साहिब
में
लाकर
पूजा-अर्चना
के
बाद
कृष्ण
पंचमी
यानी
22
मार्च
को
झंडे
जी
का
आरोहण
किया
जाएगा।
मेले
में
झंडेजी
पर
गिलाफ
चढ़ाने
की
भी
अनूठी
परंपरा
है।
चैत्र
पंचमी
के
दिन
झंडे
की
पूजा-अर्चना
के
बाद
पुराने
झंडेजी
को
उतारा
जाता
है
और
ध्वजदंड
में
बंधे
पुराने
गिलाफ,
दुपट्टे
आदि
हटाए
जाते
हैं।
दरबार
साहिब
के
सेवक
दही,
घी
और
गंगाजल
से
ध्वजदंड
को
स्नान
कराते
हैं।
इसके
बाद
शुरू
होती
है।
झंडेजी
को
गिलाफ
चढ़ाने
की
प्रक्रिया।
झंडेजी
पर
पहले
सादे
(मारकीन
के)
और
फिर
सनील
के
गिलाफ
चढ़ाए
जाते
हैं।
सबसे
ऊपर
दर्शनी
गिलाफ
चढ़ाया
जाता
है
और
फिर
पवित्र
जल
छिड़ककर
श्रद्धालुओं
की
ओर
से
रंगीन
रुमाल,
दुपट्टे
आदि
बांधे
जाते
हैं।
दून
में
डेरा
डाला
तो
बन
गया
देहरादून
देहरादून
को
द्रोणनगरी
भी
कहा
जाता
है।
श्री
गुरु
राम
राय
ने
अपनी
तपस्थली
बना
लिया।
गुरु
राम
राय
महाराज
सातवीं
पातशाही
(सिक्खों
के
सातवें
गुरु)
श्री
गुरु
हर
राय
के
पुत्र
थे।
औरंगजेब
गुरु
राम
राय
के
काफी
करीबी
माने
जाते
थे।
औरंगजेब
ने
ही
महाराज
को
हिंदू
पीर
की
उपाधि
दी
थी।
औरंगजेब
महाराज
से
काफी
प्रभावित
था।
छोटी
सी
उम्र
में
वैराग्य
धारण
करने
के
बाद
वह
संगतों
के
साथ
भ्रमण
पर
चल
दिए।
वह
भ्रमण
के
दौरान
ही
देहरादून
आए
थे।
जब
महाराज
जी
दून
पहुंचे
तो
खुड़बुड़ा
के
पास
उनके
घोड़े
का
पैर
जमीन
में
धंस
गया
और
उन्होंने
संगत
को
रुकने
का
आदेश
दिया।
अपने
तीर
कमान
से
महाराज
जी
ने
चारों
दिशाओं
में
तीर
चलाए
और
जहां
तक
तीर
गए
उतनी
जमीन
पर
अपनी
संगत
को
ठहरने
का
हुक्म
दिया।
देहरादून
पहुंचने
पर
औरंगजेब
ने
गढ़वाल
के
राजा
फतेह
शाह
को
उनका
पूरा
ख्याल
रखने
का
आदेश
भी
दिया।
उन्होंने
यहां
डेरा
डाला
इसलिए
दून
का
नाम
पहले
डेरादून
और
फिर
बाद
में
देहरादून
पड़
गया।
उसके
बाद
से
आज
तक
उत्तराखंड
की
राजधानी
देहरादून
के
नाम
से
ही
जानी
जाती
है।