मेयर पद के लिए दो बहुएं आमने-सामने, अपनी-अपनी पार्टियों में है दोनों की जबरदस्त पकड़
वाराणसी। निकाय चुनाव अब पूरे शबाब पर आ चुका है। राजनीतिक पार्टियां आने-अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर चुकी हैं तो वहीं एक-दूसरे को चुनावी दंगल में पटखनी देने के लिए उम्मीदवार अपने-अपने दांव और पैतरों की आजमाइश भी शुरू कर चुके हैं। कुछ ऐसा ही है प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में निकाय चुनाव के सबसे दमदार सीट महापौर की दो राजनैतिक पार्टियों का, जहां पिछड़ी जाति की महिला सीट होने पर इन पार्टियों ने दमदार ही नहीं बल्कि ऐसी दो बहूओं को मैदान में ताल ठोकने के लिए उतारा है, जिनका उनकी पार्टियों में अच्छी पकड़ है। ऐसे में परिणाम किसी के भी हक़ में हो लेकिन एक बात तो साफ है कि मुकाबला काफी रोचक होने वाला है।
कांग्रेस ने पुराने रिश्तों को दिया तव्वजों
करीब 20 साल से बनारस के मेयर सीट पर भाजपा का झण्डा बुलंद होता आ रहा है। ऐसे में इस किले को भेदने के लिए कांग्रेस ने भी पिछड़ी जाति की महिला सीट आरक्षित होने के बाद सोची समझी रणनीति के बाद अपने उम्मीदवार की घोषणा की। जी हां हम बात कर रहे है कांग्रेस उम्मीदवार शालिनी यादव की जो नगर निगम वाराणसी के लिए कांग्रेस के सिम्बल पर जनता के बीच अपना वोट मांगने जाएंगी। शालिनी यादव आधुनिक ख्यालों की महिला है और अंग्रेजी से बीए आनर्स और लखनऊ में फैशन डिजाइनर में डिप्लोमा करने के बाद इन दिनों अपने परिवार की एक संध्या कालीन न्यूज पेपर की जिम्मेदारी उठती हैं। दरसअल शालिनी कट्टर कांग्रेसी नेता स्व . श्यामलाल यादव की बहू है जिनका सीधा गांधी परिवार में पकड़ मजबूत थी। श्याम लाल जी किसी जमाने मे पार्टी के कार्यकर्ता से विधायक और फिर राज्यसभा में उपसभापति तक के मुकाम तक पहुँचे थे। हां ये बात जरूर है कि 1991 के बाद परिवार के किसी सदस्य को पार्टी ने चुनाव में नही लड़ाया और ना ही परिवार के किसी सदस्य ने इसके लिए कोई पहल की। ये जरूर है कि शालिनी के पति अरुण यादव कांग्रेस के कार्यक्रमों के माध्यम से पार्टी से जुड़े रहे।
मजबूती और कमजोरी
वर्तमान के आकड़ो को देखा जाए तो शालिनी को अपनी जाति का लाभ मिल सकता है साथ ही पुराने कांग्रेसी परिवार का होना इस चुनाव में उनके किये सबसे मजबूत पहलू है। इसी के साथ जो सबसे बड़ी कमजोरी सामने आ रही है वो ये कि शालिनी का खुद का कोई राजनैतिक एक्सपीरियंस नही है और न ही सामाजिक कार्यक्रमो में हिस्सा लेती है जो इनका कमजोर पहलू है।
बीजेपी मेयर सीट गई आरएसएस के खाते में
वहीं प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में टीम बीजेपी कोई जोखिम नही उठाना चाहती थी । इसी का परिणाम है कि पिछड़ी जाति की महिला होने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस की उम्मीदवार की घोषणा के बाद जब अपना पत्ता खोला तो वह सबको चौकानें वाला था। दरसअल पार्टी को इस बार ऐसे मेयर की जरूरत भी जो पीएम के साथ मंच साझा करे और उसके चाल चरित्र और चेहरा तीनों दमदार हों। यही वजह है इस महत्वपूर्ण सीट का फैसला आरएसएस ने किया और उम्मीदवार भी आरएसएस के अंतर्गत आने वाली दुर्गा वाहिनी की सदस्य श्रीमति मृदुला जायसवाल को महापौर पद के लिए चुना। मृदुला पार्टी से जुड़े उस परिवार की बहू है जब भाजपा जनसंघ के नाम से जानी जाती थी। जी है वाराणासी के सिम्बल पर 11वीं,12वीं और 13 वीं लोकसभा चुनाव में सासंद बन चुके स्वर्गीय शंकर प्रसाद जायसवाल की बहू है। जिन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत पार्टी के लिए पम्पलेट और हैंडबिल बांट खंबो पर झण्डे लगाए थे। स्व. शंकर प्रसाद जायसवाल सांसद बनने से पहले वाराणसी नगर निकाय चुनाव में पार्षद और विधायक भी बन चुके थे। सूत्रों की माने तो ईमानदारी की मिशाल पेश करने वाले शंकर प्रसाद जायसवाल ने अपने जीवन काल मे न तो कभी परिवार के लिए कोई पैरवी की और न ही जीते जी किसी को राजनीति में आने दिया।
मजबूती और कमजोरी
वर्तमान के आकड़ों के अनुसार मृदुला जायसवाल सामाजिक कार्यो के साथ ही साथ खुद राजनीति में एक्टिव सदस्य है यही नहीं वह आरएसएस की दुर्गावाहिनी की सदस्य भी हैं। जो इनका सबसे मजबूत और दमदार पहलू है। टिकट के बंटवारे में कई महारथियों ने अपने परिवार के लिए प्रयासरत थे जिससे भीतरी घात की संभावना कमजोर कड़ी है।
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