यूपी के इस शहर में भी है रामेश्वरम, बालू से शिवलिंग बना होती है पूजा
कानपुर में सावन के महीने में भगवान शिव को पूजने की एक अनोखी प्रथा है। यहां भक्त दोपहर से गंगा नदी के किनारे बालू से शिवलिंग बनाते है और फिर रात में उस शिवलिंग को गंगा मां अपने साथ बहा ले जाती है।
कानपुर। सावन मास में यूं तो देश में कई शिव मन्दिर श्रद्धा के केन्द्र बने हुए हैं लेकिन इन दिनों कानपुर में गंगातट पर बालू से बने शिवलिंग भक्ति का अनूठा नजारा प्रस्तुत कर रहे हैं। भक्तगण यहां पिछले 90 सालों से आकर बालू से शिवलिंग बनाते हैं। कई घंटों तक उनकी पूजा अर्चना का दौर चलता है और जब सूर्य पश्चिम दिशा में ढलता है, तो भक्तगण शिवलिंग को मां गंगा के किनारे छोड़कर लौट आते है और रात में मां गंगा शिवलिंग को अपने बहाव के साथ समेट ले जाती है। चूंकि बालू से बने शिवलिंग नित प्रतिदिन बनाये जाते हैं, इसलिये भगवान शिव के इस रूप को नित्येश्वर कहा जाता है।
गंगा मां अचानक आईं शिवलिंग के पास
कानपुर के सरसैय्या घाट में गंगा के दुसरे किनारे पर कटरी क्षेत्र में पिछले 90 सालो से शिव भक्त बालू से शिवलिंग बनाते है, फूलों से उनका श्रृंगार किया जाता है। इसके बाद नित्य शिवलिंग की प्राणप्रतिष्ठा और पूजा अर्चना की जाती है जिससे उनका नाम नित्येश्वर कहा जाने लगा। प्राण प्रतिष्ठा के बाद शिव आरती होती है और अंधेरा होने पर शिव भक्त वापस लौटने लगते है। सोमवार को यहां एक अदभुत नजारा देखने को मिला जब शिव भक्तों द्वारा शिवलिंग बनकर पूजा अर्चना चल रही थी तब गंगा करीब 50 कदम दूरी पर बह रही थी लेकिन पूजा अर्चना के समय गंगा की एक धार अचानक कटकर शिवलिंग के अर्घे के पास तक आकर रुक गई। सालो से पूजा अर्चना कर रहे एक भक्त ने बताया कि कई सालों बाद ऐसा चमत्कार देखने को मिला नहीं तो सभी सुनते आए है कि गंगा अंधेरे में यहां तक आकर अपने बहाव के साथ शिवलिंग को भी अपने में समेट कर ले जाती है फिर चाहे उनका बहाव शिवलिंग से कितनी भी दूरी पर क्यों न हो।
हर कष्ट सहकर आते है भक्त
नित्येश्वर महादेव तक पहुंचने के लिए और दर्शन पूजन करने के लिए या तो मां गंगा में तैरकर जाना पड़ता है या नाव के जरिए। लेकिन भगवान भोलेनाथ के भक्त हर कष्ट को सहकर नीत्येश्वर महादेव का दर्शन करने पहुंचते है। चाहे कोई भी मौसम हो। पिछले 90 सालो से ये सिलसिला लगातार नित प्रतिदिन चलता आ रहा है। करीब पच्चीस सालो से नीत्येश्वर महादेव का पूजन करने वाले राकेश शर्मा ने बताया कि हम दिन भर काम करते है और शाम को रोजाना नित्येश्वर महादेव के दर्शन करने पहुंचता हूं। इसमें रोचक बात ये सामने आती है कि गंगा चाहे जितनी दूरी पर भी क्यों न हो रोज सुबह तक गंगा अपने बहाव के साथ नित्येश्वर शिवलिंग को बहा ले जाती है और सुबह तक कोई भी अवशेष वहां पर बाकी नहीं छूटता।
रामेश्वरम की तर्ज पर शुरू हुई थी पूजा
नित्येश्वर महादेव का दर्शन करने आये संजय ने बताया की करीब बीस सालो से हम यहां दर्शन करने आ रहे है। संजय ने बताया की बालू से शिवलिंग बनाकर पूजन अर्चन करने की परम्परा गुरु राम गोपाल शुक्ला ने शुरू की थी। गुरु जी रोज गंगा नहाने आते थे तब उनके मन में भावना उठी और रामेश्वरम की तर्ज पर शिवलिंग बनाकर पूजन करने लगे। गुरु की शुरू की गयी परम्परा अभी तक निरंतर जारी है। शिवलिंग बनाकर पूजन करने में अभी तक कोई बाधा नहीं पड़ी।
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भगवान राम ने ऐसे ही बनाया था शिवलिंग
गुरु राम गोपाल शुक्ला के सबसे करीबी रहे दया शंकर ने बताया की भगवान् राम ने लंका पर विजय पाने के लिए रामेश्वरम की स्थापना की थी ,बालू का शिवलिंग बनाकर पूजन किया था । हम लोग भी उसी तरह नित्य ही बालू का शिवलिंग बनाकर श्रृंगार करके भगवान् शंकर की आराधना करते है । दया शंकर का कहना है की अगर गंगा जी पूरी तरह से भर जाती है तो जहां भी जगह मिलती है वंहा नित्येश्वर महादेव को बनाकर पूजन करते है । अगर शिवलिंग बनाने के लिए कोई जगह नहीं मिलती है तो नाव में बालू की शिवलिंग बनाकर पूजन किया जाता है यह परम्परा कभी टूटती नहीं है।