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विधानसभा चुनाव में खल रही इन दिग्गज नेताओं की कमी, जानिए क्या थी इनकी खासियत

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लखनऊ, 2 फ़रवरी: उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव अपने चरम पर है लेकिन पिछले कई दशकों से इन चुनावों की धूरी रहे कई दिग्गज नेता अब इस दुनिया में नहीं है। लेकिन जब जब यूपी में चुनाव होगा इन नामचीन हस्तियों को जरूर याद किया जाएगा। यूपी के दिवंगत पूर्व मुख्‍यमंत्री कल्‍याण सिंह , राष्ट्रीय लोकदल के संस्थापक चौधरी अजित सिंह, बीजेपी के नेता लालजी टंडन, समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल पूर्व मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा और अमर सिंह जैसे नेताओं का बोलबाला रहता था। यूपी की सियासत इन्हीं के इर्द गिर्द घूमा करती थी लेकिन आज जब ये दुनिया में नहीं है लेकिन हम बताएंगे उनकी खासिएयत क्या थी।

कल्याण सिंह ने गैर यादव ओबीसी को एकजुट किया

कल्याण सिंह ने गैर यादव ओबीसी को एकजुट किया

भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व का चेहरा माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का निधन 21 अगस्त 2021 को हो गया था। उन्होंने राज्‍य में अपनी पार्टी के लिए गैर यादव पिछड़ी जातियों को एकजुट किया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उनकी मजबूत पकड़ और स्‍वीकार्यता रही और 2017 में अलीगढ़ जिले की उनकी परंपरागत अतरौली सीट से उनके पौत्र संदीप सिंह ने जीत सुनिश्चित की और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार में मंत्री बने। ये सभी दिग्गज चुनावी लड़ाई में अपनी पार्टी और उम्मीदवारों के पक्ष में मतदाताओं के बीच लहर पैदा करने के लिए जाने जाते थे और इनके बयानों और राजनीतिक प्रभावों के भी हमेशा निहितार्थ निकाले जाते रहे हैं और इनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी इनकी हर गतिविधि पर बारीक नजर रखते थे।

कल्याण सिंह का जाना बीजेपी के लिए एक बड़ी क्षति

कल्याण सिंह का जाना बीजेपी के लिए एक बड़ी क्षति

कल्‍याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह एटा से बीजेपी के सांसद हैं। कल्याण सिंह के निधन को भाजपा के लिए एक बड़ी क्षति बतायी जा रही है। राष्‍ट्रीय लोकदल के लिए यह पहला चुनाव होगा जब इसके अध्यक्ष जयंत चौधरी अपने पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री अजीत सिंह (छह मई, 2021 को निधन) की अनुपस्थिति में अपनी पार्टी का नेतृत्व करेंगे। हालांकि, चौधरी अजित सिंह ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में हार का स्वाद चखा, लेकिन जाट वोट बैंक और पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर उनकी पकड़ को राजनीति में याद किया जाता है।

 लालजी टंडन के बेटे लड़ रहे चुनाव

लालजी टंडन के बेटे लड़ रहे चुनाव

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी और लखनऊ में भाजपा का एक प्रमुख चेहरा माने जाने वाले बिहार और मध्य प्रदेश के पूर्व राज्यपाल और उप्र सरकार के पूर्व मंत्री लालजी टंडन की भी कमी महसूस की जायेगी. टंडन का 21 जुलाई, 2020 को निधन हो गया था. लालजी टंडन के जीवित रहते उनके पुत्र आशुतोष टंडन राजनीति में सक्रिय हुए और 2017 में योगी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में मंत्री भी बने, लेकिन इस बार पिता की अनुपस्थिति में उन्हें चुनाव लड़ना है। लालजी टंडन लखनऊ में कई सीटों पर अपनी पकड़ के लिए जाने जाते थे और अटल बिहारी वाजपेयी के उत्तराधिकारी के रूप में उन्होंने लखनऊ लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भी किया।

अमर सिंह और बेनी बाबू थे मुलायम के करीबी

अमर सिंह और बेनी बाबू थे मुलायम के करीबी

समाजवादी पार्टी के प्रमुख नेता रहे पूर्व सांसद अमर सिंह का एक अगस्त, 2020 को निधन हो गया, जबकि 27 मार्च, 2020 में मुलायम सिंह यादव के करीबी विश्वासपात्र बेनी प्रसाद वर्मा का निधन हो गया। अति पिछड़ी कुर्मी बिरादरी के सबसे मजबूत नेता माने जाने वाले बेनी वर्मा और अपने चुटीले बयानों और चुनावी प्रबंधन से राजनीति में हलचल पैदा करने वाले अमर सिंह भी इस बार चुनावी परिदृश्य में नहीं दिखेंगे। समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य बेनी प्रसाद वर्मा ने 2009 में सपा छोड़ दी, 2016 में फिर से उसमें शामिल हुए और उन्हें सपा ने राज्यसभा भेजा।

 पश्चिम में था अजीत सिंह का प्रभाव

पश्चिम में था अजीत सिंह का प्रभाव

एक दशक से भी अधिक समय पहले, अजीत सिंह की पार्टी को उनके पिता और पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह की विरासत के कारण यूपी के जाटों में सबसे बड़ा समर्थन था। चरण सिंह की मृत्यु के बाद यह फीका पड़ गया और अजीत सिंह ने 2014 के राष्ट्रीय चुनाव में एक नया निचला स्तर देखा, जब उनकी पार्टी ने यूपी में एक भी संसदीय सीट नहीं जीती। लेकिन इस क्षेत्र में अजीत सिंह का प्रभाव बना हुआ है और उत्तर प्रदेश के चुनावों में नजदीकी मुकाबले में किसी भी पार्टी के लिए उनका समर्थन संतुलन बिगाड़ सकता है। एक नेता ने कहा कि "सपा के समर्थन से रालोद सीटें जीत सकता है। लेकिन, एक पकड़ है। अगर अजीत सिंह के बेटे जयंत कुछ सीटें जीतते हैं तो इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वह सपा के साथ रहेंगे।"

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English summary
The lack of these veteran leaders in the assembly elections
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