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अयोध्या के बाबरी मस्जिद विवाद की शक्ल लेगा काशी का ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा ?, जानिए पूरी INSIDE STORY

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लखनऊ, 9 मई 2022 : उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद ने वर्षों तक सुर्खियां बटोरी थीं। यह मामला कई वर्षों तक अदालतों में चला और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया था जिसके बाद राम मंदिर का निर्माण शुरू हुआ है। इस पुराने मामले का जिक्र यहां इसलिए करना पड़ रहा है कि वर्तमान में अयोध्या की तरह ही अब काशी में ज्ञानवापी मस्जिद के विवाद ने तूल पकड़ना शुरू कर दिया है। अब सवाल यह उठता है कि क्या काशी के ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा भी अयोध्या के बाबरी मस्जिद विवाद का शक्ल लेगा। हालांकि जानकारों का कहना है कि अयोध्या विवाद को पूजा स्थल अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया था, क्योंकि आजादी से पहले से ही अयोध्या मामला अदालत में चल रहा था। जबकि काशी विवाद अयोध्या विवाद से अलग है।

अदालत के आदेश पर शुरू हुई है सर्वेक्षण की कार्रवाई

अदालत के आदेश पर शुरू हुई है सर्वेक्षण की कार्रवाई

काशी में अदालत के आदेश पर काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी समेत कई देवी-देवताओं का सर्वे चल रहा है। इस दौरान कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है। इस सर्वे के पीछे सिविल जज सीनियर डिवीजन के समक्ष दायर वाद है, जिसमें काशी (काशी केवल 5 महिलाओं ने श्रृंगार गौरी मंदिर में दैनिक पूजा की मांग की है। मामले में न्यायाधीश रवि कुमार दिवाकर ने वीडियोग्राफी की और सर्वेक्षण का आदेश दिया गया था। इस सर्वे के तहत यह देखा जाना है कि श्रृंगार गौरी, अन्य देवी-देवताओं और देवताओं की क्या स्थिति है। मामले में 10 मई तक रिपोर्ट मांगी गई है। सुनवाई उसी दिन होनी है।

बाबरी मस्जिद विवाद और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में क्या है अंतर

बाबरी मस्जिद विवाद और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में क्या है अंतर

वहीं, मंदिर से सटे काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर भी विवाद है, जो 1991 से कोर्ट में चल रहा है। फिलहाल मामले की सुनवाई इलाहाबाद हाईकोर्ट में चल रही है। यह मामला अयोध्या राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद से थोड़ा अलग है। अयोध्या में, जिसे राम जन्मभूमि बताया गया है, बाबरी मस्जिद के पक्ष ने कहा कि वहां मंदिर नहीं बनाया गया था। वहीं, वाराणसी में मंदिर और मस्जिद दोनों का निर्माण किया गया है। यहां हिंदू पक्ष मस्जिद को हटाने की मांग कर रहा है, जबकि मुस्लिम पक्ष इसके खिलाफ है।

काशी में कैसे शुरू हुआ मंदिर-मस्जिद विवाद?

काशी में कैसे शुरू हुआ मंदिर-मस्जिद विवाद?

वर्ष 1984 में दिल्ली में देश भर के संतों का जमावड़ा हुआ और धर्म संसद की शुरुआत हुई। उसी धर्म संसद में अयोध्या, मथुरा और काशी में तीर्थों पर दावा करने की अपील की गई थी। अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद, मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद, जबकि काशी में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक विश्वनाथ मंदिर से सटी ज्ञानवापी मस्जिद को भी धर्म संसद पर आपत्ति थी। लेकिन दूसरी तरफ चुनाव के दौरान बीजेपी की तरफ से 'अयोध्या ही झांकी है, काशी-मथुरा बाकी है' के नारे की शुरुआत भी इसी कड़ी का हिस्सा माना जा रहा है। यूपी के बीजेपी नेता और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने अपने एक बयान में यह बातें कही थी। अब उस बयान को आज के संदर्भ में जोड़कर देखा जा रहा है।

मंदिर की जमीन वापस करने की मांग

मंदिर की जमीन वापस करने की मांग

वर्ष 1991 में काशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारियों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास, डॉ रामरंग शर्मा और सामाजिक कार्यकर्ता हरिहर पांडे ने इस संबंध में वाराणसी सिविल कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया है कि 2050 साल पहले राजा विक्रमादित्य द्वारा निर्मित काशी विश्वनाथ मंदिर को औरंगजेब ने वर्ष 1669 में ध्वस्त कर दिया था और वहां एक मस्जिद का निर्माण किया गया था। मंदिर की जमीन वापस करने की मांग की जा रही थी। याचिका में कहा गया था कि इस मामले में पूजा स्थल अधिनियम 1991 लागू नहीं होता है, क्योंकि मंदिर के अवशेषों पर मस्जिद का निर्माण किया गया था। उधर, ज्ञानवापी मस्जिद के संगठन अंजुन इनजानिया इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे। संस्था ने पूजा स्थल अधिनियम का हवाला देते हुए कहा कि इस विवाद में कोई फैसला नहीं लिया जा सकता है। इसके बाद हाईकोर्ट ने निचली अदालत की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।

22 साल से लंबित है यह मामला

22 साल से लंबित है यह मामला

पूजा स्थल अधिनियम के तर्क पर यह मामला करीब 22 साल से लंबित था। साल 2019 में अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी एक बार फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचे और पुरातत्व विभाग से ज्ञानवापी मस्जिद के सर्वे की मांग को लेकर याचिका दायर की।अभी यह मामला हाईकोर्ट में चल रहा है। दरअसल, यह कानून 1991 में पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में लाया गया था। यह कानून कहता है कि आजादी से पहले वे जिस रूप में धार्मिक स्थल थे, वे उसी रूप में रहेंगे, उनके साथ छेड़छाड़ या बदलाव नहीं किया जाएगा। इस कानून का पालन न करने पर एक से तीन साल की कैद और जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है।

इस विवाद को कैसे सुलझाया जा सकता है?

इस विवाद को कैसे सुलझाया जा सकता है?

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने बताया कि अयोध्या विवाद को पूजा स्थल अधिनियम के दायरे से बाहर रखा गया था। आजादी के पहले से ही कोर्ट में अयोध्या का मामला चल रहा था इसलिए उस पर यह कानून लागू नहीं हुआ। कोर्ट में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार अयोध्या मामले में फैसला सुनाया जा सका। काशी विवाद अयोध्या विवाद से अलग है। हालांकि पूजा स्थल अधिनियम भी वर्ष 1991 में आया था, जबकि काशी का विवाद भी उसी वर्ष से अदालत में शुरू हुआ था। इस आधार पर इस मामले को भी चुनौती दी जा सकती है। हिंदू दलों ने मांग की है कि ज्ञानवापी मस्जिद को हटा दिया जाए और पूरी जमीन मंदिर को लौटा दी जाए। हालांकि यह मामला इलाहाबाद कोर्ट में है और इसका फैसला न्यायिक प्रक्रिया से ही आ सकता है।

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English summary
The issue of Kashi's Gyanvapi Masjid will take the shape of Ayodhya's Babri Masjid dispute?
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