तो पश्चिम में ध्रुवीकरण का खेल खेलने के लिए 'पाकिस्तान' और 'कैराना' की दिलाई जा रही याद ?
लखनऊ, 25 जनवरी: उत्तर प्रदेश में चुनावी माहौल गरम है। समावादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव कुछ दिनों पहले मोहम्मद अली जिन्ना को लेकर दिए अपने बयान पर विपक्ष के निशाने पर आ गए थे। ठीक उसी तरह चुनाव से ऐन पहले अपने एक इंटरव्यू में कहा है कि जिसमें उन्होंने पाकिस्तान को भारत का असली दुश्मन नहीं बताया है। अब बीजेपी ने इस बयान को लेकर अखिलेश पर हल्ला बोल दिया है। लेकिन क्या अखिलेश पाकिस्तान समर्थित बयान जानबूझकर दे रहे हैं या उनसे गलतियां हो रही हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश शायद मुस्लिम-यादव चुनावी फैक्टर बनाने के चक्कर में इस तरह के विवादास्पद बयान दे रहें। एक तरफ जहां अमित शाह कैराना पर फोकस कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर अखिलेश का पाकिस्तान को लेकरे दिया गया बयान पश्चिम में दोनों पार्टियों की ओर से ध्रुवीकरण का खेल खेलने की ही तैयारी की जा रही है।
बीजेपी ने सोमवार को सपा प्रमुख अखिलेश यादव पर एक साक्षात्कार में उनकी टिप्पणी के लिए तीखा हमला किया, जिसमें कहा गया था कि पाकिस्तान भारत का "असली दुश्मन नहीं" है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि अखिलेश को अपनी टिप्पणी के लिए खेद व्यक्त करना चाहिए और माफी मांगनी चाहिए। मुस्लिम लीग के नेता और पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की सरदार वल्लभ भाई पटेल से तुलना करने की उनकी टिप्पणी के लिए सपा प्रमुख पर तंज कसते हुए पात्रा ने कहा, "जो जिन्ना से करे प्यार, वो पाकिस्तान से कैसे करे इनकार।"
दरअसल एक समाचार पत्र को दिए इंटरव्यू में अखिलेश ने पाकिस्तान को भारत का 'राजनीतिक दुश्मन' करार दिया था क्योंकि इसे वोट की राजनीति के लिए भाजपा द्वारा 'लक्षित' किया गया था। उन्होंने कहा था, 'हमारा असली दुश्मन चीन है और पाकिस्तान हमारा राजनीतिक दुश्मन है। हांलांकि सपा ने पहले चुनाव आयोग से समाचार चैनलों पर प्रसारित होने वाले जनमत सर्वेक्षणों को रोकने के लिए कहा था, यह दावा करते हुए कि यह आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है और "मतदाताओं को गुमराह कर सकता है" और "चुनाव को प्रभावित कर सकता है"।
पात्रा ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को मैदान में उतारने के लिए अखिलेश पर निशाना साधा था। उन्होंने कहा, 'याकूब मेनन को फांसी पर लटका दिया गया, नहीं तो दंगाइयों नाहिद हसन की तरह ही अखिलेश उन्हें देशभक्त घोषित कर अपनी पार्टी का उम्मीदवार बना लेते।' दरअसल सपा-रालोद गठबंधन ने कैराना से हसन को अपना उम्मीदवार घोषित किया था। बाद में उन्हें गैंगस्टर अधिनियम और असामाजिक गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत गिरफ्तार किया गया था। हसन कैराना से सपा के मौजूदा विधायक हैं और उन्होंने भाजपा की मृगांका सिंह को हराकर जीत हासिल की थी।
पांच साल पहले तक, उत्तर प्रदेश में एक मजबूत त्रिकोणीय लड़ाई हुआ करती थी, जिसमें कांग्रेस खुद को चौथी ताकत के रूप में होने का दावा करती थी। इस साल मामला अलग है। 37 वर्षों के बाद, यूपी में दो प्रमुख दलों - सत्तारूढ़ भाजपा और चुनौती देने वाली सपा के बीच सीधा आमना-सामना होने की संभावना है। 1985 तक, यह कांग्रेस बनाम जनता दल का कोई न कोई रूप हुआ करता था। 1989 से भाजपा के सत्ता में आने और यूपी में बहुकोणीय मुकाबले की शुरुआत हुई।
इस साल मायावती काफी कमजोर ताकत के तौर पर नजर आ रही हैं। उनका स्वास्थ्य स्पष्ट रूप से ठीक नहीं चल रहा है, और भ्रष्टाचार के मामले उस भेद्यता को बढ़ाते हैं। दलित भाजपा को यादवों और मुसलमानों के खिलाफ अपने बचाव के रूप में देखते हैं, जो हर बार सपा के सत्ता में आने पर मैदान पर हावी होते हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम की एंट्री कोई छाप छोड़ती है या नहीं। वाइल्डकार्ड ओवैसी को वोट देने के बजाय मुसलमान अखिलेश के पीछे एकजुट होने का विकल्प चुन सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक और काशी विद्यापीठ में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर रहे कुमार सर्वेश कहते हैं,
''सबसे अधिक संभावना है कि मुस्लिम वोट अखिलेश यादव की सपा के पीछे मजबूत होगा, जबकि वोट का एक बहुत छोटा हिस्सा प्रियंका गांधी वाड्रा के नेतृत्व वाली कांग्रेस को मिल सकता है। यह बहुत आश्चर्यजनक नहीं होगा यदि युवा मुस्लिम महिलाओं का एक हिस्सा चुपचाप भाजपा को वोट देता है। तत्काल ट्रिपल तालक को गैरकानूनी घोषित करने और कानून और व्यवस्था में भारी सुधार के बाद बीजेपी भी इस समुदाय का कुछ वोट हासिल कर सकती है।''
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