गरीब बच्चों के लिए BHU के छात्रों ने अपनी जेब खर्च से बनवाई लाइब्रेरी, देखिए तस्वीरें
इन छात्रों ने न सिर्फ किताबे इकट्ठी की बल्कि अपने रोज के समय में से दो से तीन घंटें इन बच्चों को भी देते है और उन्हें पढ़ाते हैं। 6 साल से लेकर कक्षा 12 तक के बच्चों यहां आ सकते हैं।
वाराणसी। आज के इस आधुनिक युग में ऐसा कम ही देखने को मिलता है जब किताबों से संघर्ष कर रहें युवा अपने करियर के साथ-साथ उन लोगों के बारे में सोचते हों जो गरीबी के चलते किताबों के नजदीक नहीं पहुंच पाते। लेकिन धर्म व सर्व विद्या की राजधानी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुछ छात्रों ने शिक्षा की अलख जगाना शुरू किया है और वो भी वहां जिसे हम मलिन बस्ती के नाम से जानते हैं। ऐसी अलख जिससे इन बस्ती के बच्चों को वो महंगी किताबे नसीब हो रहीं हैं जो सिर्फ बड़े कॉन्वेंट स्कूल के बच्चों को मिलती हैं।
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कैसे मुहैया कराते हैं किताब?
ये बीड़ा उठाया है भारत रत्न महामना मालवीय के द्वारा स्थापित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों में पढ़ने वाले पच्चीस छात्रों के समूह ने । जिन्होंने मलिन बस्तियों के गरीब बच्चे जो किताबों की कमी और सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए न सिर्फ किताबे इकट्ठी की बल्कि अपने रोज के समय में से दो से तीन घंटें इन बच्चों को भी देते है और उन्हें पढ़ाते हैं। यही नहीं इन्होंने बकायदा एक लाइब्रेरी खोली है। जिसमे 6 साल से लेकर कक्षा 12 तक के बच्चों के लिए किताबें उपलब्ध कराई जा रही हैं। यही नहीं इस लाइब्रेरी में बच्चों को बैठ के पढ़ने की भी व्यवस्था की गई है। जिससे बच्चे यहां आकर किताबों को पढ़ सकें।
संस्थाओं
ने
भी
की
मदद
इन छात्रों के गुट के इस नेक काम में मदद के लिए लीड और हेल्पिंग इंडिया नाम की दो संस्थाए भी आगे आई हैं जो स्थानीय स्तर पर जगह मुहैया कराने से लेकर पुराने छात्रों से किताबे डोनेशन के रूप में काम कर रही हैं। जहां मलिन बस्तियों के बच्चे आकर अपनी जरूरत की किताबे लेकर पढ़ाई कर सकते हैं।
क्या कहते हैं लाइब्रेरी को शुरू करने वाले छात्र?
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के इन छात्रों ने गरीब बच्चों के लिए ये मुहिम शुरू की है। इन छात्रों में अजय का कहना है की हमने ये मुहिम स्लम एरिया के बच्चों के लिए शुरू की है ताकि गरीब बच्चे उन किताबों नजदीक आ पाए तो उनकी किस्मत के चलते उनसे दूर है। तो वहीं साथ दे रहें अमित ने बताया की हम इसके आलावा पांच और लाइब्रेरी खोलेंगे और वो भी स्लम एरिया में ही होंगी।
खुश हैं यहां आने वाले बच्चे
वहीं सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पढ़ने वाले छोटे-छोटे बच्चे अपने पास किताबे देखकर बहुत ही खुश दिखे। उनकी आंखों की चमक बता रही थी कि अब वो भी अपने सारे सपने कर सकते हैं।
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