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उत्तर प्रदेश में सुभासपा-निषाद पार्टी जैसे दलों की क्या है विचारधारा, कैसे करते हैं अपने समुदाय की गोलबंदी?

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लखनऊ, 11 नवंबर। उत्तर प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में 80 और 90 का दशक समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे क्षेत्रीय दलों के उत्थान की गवाही देता है। इसी दौरान राम मंदिर आंदोलन की लहर पर सवार होकर भाजपा 1991 में प्रदेश की सत्ता तक पहुंची थी। यह मंडल कमीशन का भी दौर था जिसमें पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए लागू किए गए आरक्षण का हिंदीभाषी प्रदेशों की राजनीति पर व्यापक असर हुआ था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के कुछ महीने पहले मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई थी। मुलायम ने ओबीसी और मुसलमानों को अपने पक्ष में किया था। अगड़ों के खिलाफ पिछड़ों को राजनीतिक रूप से संगठित कर सत्ता के जरिए उनको मजबूत करने की यह विचारधारा सांप्रदायिक विचारधारा पर भारी पड़ गई। इसके बाद 2017 के विधानसभा चुनाव तक भाजपा की सीटें कम होती चली गईं। उधर बसपा ने सामाजिक न्याय की ही विचारधारा पर दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को अपने पक्ष में संगठित किया। भाजपा और कांग्रेस के पतन के साथ सपा और बसपा उभरती चली गई। मुलायम और मायावती उत्तर प्रदेश के दो क्षेत्रीय क्षत्रप बन गए। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश में सत्ता की राजनीति सांप्रदायिक मुद्दों से हटकर जातिगत आधारों पर टिक गई। पिछड़ों, अति पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को सामाजिक व आर्थिक न्याय दिलाने की विचारधारा को लेकर आगे बढ़ी सपा और बसपा जब सत्ता में आई तो इनके शासन में भी सभी संतुष्ट नहीं हो पाए। कभी कांशीराम के साथ बसपा में रहे कुर्मी समाज के सोनेलाल पटेल ने अपना दल बना लिया। सोनलाल पटेल कुर्मियों के क्षत्रप बन गए। अब उनकी बेटी अनुप्रिया पटेल अपना दल (एस) पार्टी को लीड कर रही हैं। वहीं बसपा से ही अलग होकर संजय निषाद ने निषाद पार्टी बनाई। ओम प्रकाश राजभर भी पूर्व बसपा नेता हैं। मायावती से विवाद के बाद उन्होंने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी बनाई। उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में सुभासपा, निषाद पार्टी, अपना दल (एस) जैसी पार्टियां अहम हो गई हैं। पिछड़ों, अतिपिछड़ों में भी जो अलग-अलग जातियां है, वो संगठित हो रही हैं और हर जाति के अपने नेता उभर रहे हैं।

वोट के जरिए सामाजिक न्याय पाने की विचारधारा

वोट के जरिए सामाजिक न्याय पाने की विचारधारा

सुभासपा, निषाद पार्टी जैसे छोटे दल अपने-अपने समुदाय को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल करने की बात कहते हैं। उनको संगठित कर वोट बैंक के जरिए सत्ता तक पहुंचने का रास्ता दिखाते हैं। फिर सत्ता पाकर आरक्षण समेत अन्य मांगों को मनवाने के लिए पूरी ताकत लगाने को कहते हैं। देखा जाय तो इन दलों की विचारधारा पर मंडल कमीशन और सपा-बसपा जैसे क्षेत्रीय दलों की विचारधारा का प्रभाव है। वैसे भी ये पार्टियां उन्हीं क्षेत्रीय दलों से निकली हैं और वहीं की विचारधारा के जरिए अपने समुदाय को राजनीति में वोट की ताकत को समझाते हैं। सुभासपा की मांग है कि राजभरों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाय। यही मांग निषाद पार्टी की भी है। वह भी निषादों को अनुसूचित जाति में शामिल कर आरक्षण की मांग कर रही है। अपना दल (एस) कुर्मियों के वोट बैंक के जरिए केंद्र सरकार तक में हिस्सेदार है। इस तरह से इन छोटी पार्टियों की ताकत और अहमियत उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुत बढ़ी है। कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश से ही होकर केंद्र की सत्ता तक का रास्ता जाता है। इस लिहाज से ये छोटी पार्टियां अब केंद्र की राजनीति के लिए भी अहम हो चुकी हैं।

'सत्ता का कब्जा बन जाओ, तुम पर सरकार खड़ी हो'

'सत्ता का कब्जा बन जाओ, तुम पर सरकार खड़ी हो'

निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद खुद को पॉलिटिकल गॉडफादर ऑफ फिशरमैन कहते हैं। हाल में वे कुशीनगर में अपने समर्थकों को वे राजनीति की ताकत समझा रहे थे। उन्होंने कहा कि राजनीतिक ताकत ही ईश्वर की ताकत है। इस ताकत की पूजा करो। सेना बनाओ, संगठित होकर सत्ता पर कब्जा करो। जैसे दरवाजा चार कब्जों पर खड़ा होता है, तुम भी सत्ता का कब्जा बन जाओ। तुम्हारे बिना सत्ता खड़ी नहीं हो सकेगी तब तुम्हारी मांगे मानी जाएगी, तब तुम ताकतवर बनोगे। इसी तरह की बातें सुभासपा के ओम प्रकाश राजभर भी अपनी जनसभाओं में कहते हैं। अखिलेश यादव की मौजूदगी में गठबंधन का ऐलान करते हुए ओम प्रकाश राजभर ने समर्थकों से वोट की ताकत से भाजपा को सत्ता से खदेड़ने की बात कही। ओम प्रकाश राजभर और संजय निषाद दोनों ही दावा करते हैं कि जिधर उनका समुदाय जाएगा, उसकी सरकार बन जाएगी। 2017 में सुभासपा, अपना दल (एस) जैसी छोटी पार्टियों का सहयोग लेकर ही भाजपा सत्ता तक पहुंची थी। अखिलेश यादव ने जनसभा में कहा कि ओम प्रकाश राजभर ने सत्ता तक पहुंचने के लिए भाजपा का दरवाजा बंद कर दिया है। भाजपा ने सपा और बसपा शासनकाल में असंतुष्ट समुदायों को अपने साथ लेकर चलने की राजनीति यूपी में की और सफल रही। लेकिन इससे सुभासपा और निषाद पार्टी जैसे दलों का मनोबल बहुत बढ़ गया है। ये पार्टियां बड़ी पार्टियों की सहयोगी बनकर उनको आंखें भी दिखाती रहती हैं।

'जब तक पावर नहीं, तब तक पैसा नहीं'

'जब तक पावर नहीं, तब तक पैसा नहीं'

संजय निषाद समर्थकों से कहते हैं कि दारू, मुर्गा का लालच देकर हमें गुमराह किया गया, बैकफुट पर धकेला गया। इसलिए पावर में आना होगा। पावर में आने के बाद ही पैसा आएगा। आलू की तरह सबकी थाली की सब्जी मत बनो। आलू नहीं, चालू बन जाओ, तुम्हारी सरकार बनेगी। संजय निषाद ने हाल में राम को श्रृंगी ऋषि का बेटा बता दिया। कहा कि राम और निषादराज बाल सखा थे। राम दशरथ के बेटे नहीं थे। राम श्रृंगी ऋषि के वंशज थे। इस तरीके से संजय निषाद ने राम को निषादों का वंशज बताया। यूपी की राजनीति में अब भगवान राम इतने अहम हो गए हैं कि संजय निषाद ने भी राम को अपने समुदाय का बताया। सहयोगी निषाद पार्टी के अध्यक्ष ने भगवान राम पर यह बयान दिया लेकिन भाजपा चुप रही। वहीं जब संजय निषाद ने आरक्षण न मिलने पर आंदोलन का ऐलान किया तो भाजपा ने उनको मनाया। ये छोटी पार्टियां अब अपनी विचारधारा का विस्तार भी कर रही हैं। ओम प्रकाश राजभर अब राजभर समुदाय के अलावा पिछड़े, अतिपिछड़े, दलित और अल्पसंख्यकों को जाति से ऊपर उठकर संगठित होने की बात कहते हैं।

इन पार्टियों के अपने ऐतिहासिक नायक हैं

इन पार्टियों के अपने ऐतिहासिक नायक हैं

राजभर समाज के लोग राजा सुहेलदेव को अपना नायक बताते हैं। हलांकि राजा सुहेलदेव राजभर थे, पासी थे या राजपूत थे, उनके इतिहास पर विवाद है। लेकिन राजभर समाज के ऐतिहासिक नायक राजा सुहेलदेव को सुभासपा जैसी पार्टियों ने शोहरत दिलाई है। राजा सुहेलदेव राजभर समुदाय के लिए ऐसे प्रतीक बन गए हैं कि इस समुदाय को रिझाने के लिए बहराइच में 16 फरवरी 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुहेलदेव स्मारक की आधारशिला रखी। निषाद पार्टी निषादराज को अपना नायक मानती है। वही निषादराज जिन्होंने भगवान राम, लक्ष्मण और सीता को वनवास के लिए जाते समय गंगा पार कराया था। अब संजय निषाद भगवान राम को निषादराज का बालसखा बताते हैं। निषाद श्रृंगी ऋषि को भगवान राम का पिता बताने से भी संजय निषाद नहीं चूके। इन ऐतिहासिक नायकों को आधार बनाकर भी ये छोटी पार्टियां अपने समर्थकों को संगठित रखने का काम करती है।

किंगमेकर बनने की कोशिश में रहती हैं ये पार्टियां

किंगमेकर बनने की कोशिश में रहती हैं ये पार्टियां

2014 के बाद लोकसभा और विधानसभा चुनाव के अनुभवों के बाद ये छोटी पार्टियां खुद को किंगमेकर की भूमिका में देखती हैं। इसलिए ये पाला बदलने में भी माहिर हैं। निषाद पार्टी ने सपा के साथ मिलकर भाजपा से गोरखपुर जैसी अहम संसदीय सीट छीनी थी। इसके बाद भाजपा ने निषाद पार्टी को अपने साथ मिला लिया। इसी तरह, ओम प्रकाश राजभर ने 2014 का लोकसभा चुनाव और 2017 का यूपी विधानसभा चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था। यूपी में सुभासपा ने चार सीट पर जीत हासिल की थी और ओम प्रकाश राजभर मंत्री बन गए थे। लेकिन अपनी मांगों को लेकर लगातार दबाव बनाने वाले ओम प्रकाश राजभर और भाजपा का साथ ज्यादा नहीं चला। अब ओम प्रकाश राजभर सपा के साथ मिलकर 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। अपनी इसी किंगमेकर की छवि को संजय निषाद और ओम प्रकाश राजभर समर्थकों के बीच प्रचारित करते हैं। इसके जरिए समुदाय को और ज्यादा संगठित होने का मैसेज देते हैं।

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English summary
How small parties like SBSP and Nishad Party influence its community voters
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