घनश्याम सिंह लोधी: रामपुर में सपा के धुरंधर को धूल चटाने वाले भाजपा उम्मीदवार को जानिए
लखनऊ, 26 जून: उत्तर प्रदेश में 23 जून को लोकसभा की दो सीटों रामपुर और आजमगढ़ में उपचुनाव हुए थे। दोनों समाजवादी पार्टी की गढ़ मानी जाती हैं। रामपुर मुस्लिम बहुल सीट है तो आजमगढ़ में हाल में हुए विधानसभा चुनाव में मुस्लिम-यादव समीकरण के चलते समाजवादी पार्टी ने सभी 10 सीटें जीती थीं। लेकिन,लोकसभा उपचुनाव में बाजी पूरी तरह से पलट चुकी है। रामपुर में तो बीजेपी ने कमाल ही कर दिया है। उसके उम्मीदवार घनश्याम सिंह लोधी को करीब 52 फीसदी वोट जाते दिख रहे हैं। यह परिणाम चौंकाने वाला है, क्योंकि यह सपा के दिग्गज आजम खान का चुनाव क्षेत्र है, जिन्होंने कई महीनों बाद जेल से रिहाई होने पर खूब सहानुभूति वटोरने की कोशिश की है। यहां सपा ने उनके ही खास को टिकट दिया था। आइए जानते हैं कि कौन हैं घनश्याम सिंह लोधी, जिनकी वजह से भाजपा के कमल ने यह कमाल किया है।

रामपुर में घनश्याम लोधी ने लहराया भगवा
उत्तर प्रदेश लोकसभा उपचुनाव में रामपुर सीट से भाजपा की जीत बहुत ही अप्रत्याशित है। यह सीट समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आजम खान के इस्तीफे की वजह से खाली हुई है, जिन्होंने मार्च में हुए विधानसभा चुनाव में शहरी सीट से जीत दर्ज की थी। इस सीट पर बीजेपी प्रत्याशी घनश्याम सिंह लोधी ने आजम खान के बेहद करीब सपा उम्मीदवार आसिम रजा को हराया है। रामपुर में सपा की हार वास्तव में आजम खान और उनकी मुस्लिम परस्त राजनीति की हार है। 23 जून को हुए लोकसभा उपचुनाव में रामपुर में सिर्फ 39 फीसदी वोट पड़े थे। पिछले कई चुनावों में रामपुर को आजम खान ने अपना गढ़ बना लिया था। यहां से उनकी चाहत के बिना किसी दूसरे उम्मीदवार का जीतना लगभग नामुमकिन लगता था। लेकिन, भाजपा प्रत्याशी घनश्याम सिंह लोधी ने रामपुर से जुड़े सारे चुनावी मिथकों को तोड़कर यूपी की राजनीति को नया मोड़ दे दिया है।

सपा की वजह से दो-दो बार एमएलसी रहे हैं लोधी
घनश्याम सिंह लोधी पहले रामपुर शहर से एमएलए और सपा नेता आजम खान के करीबी रह चुके हैं। उन्हें समाजवादी पार्टी की वजह से दो-दो बार विधान परिषद का सदस्य (एमएलसी) बनने का मौका मिल चुका है। उनपर आजम का आशीर्वाद था, इसी वजह से अखिलेश यादव ने 2016 में उन्हें एमएलसी का चुनाव लड़ने का मौका दिया। लेकिन, पहली बार उन्हें एमएलसी बनने का मौका तब मिला था, जब 2004 में वे रामपुर-बरेली सीट से पूर्व सीएम कल्याण सिंह की राष्ट्रीय क्रांति पार्टी के टिकट से चुने गए थे। तब भी सपा ने भी उनका समर्थन किया था।

बीजेपी से ही शुरू हुई थी राजनीति
मजे की बात ये है कि घनश्याम लोधी ने आज रामपुर में जिस भाजपा का डंका बजाया है, उनकी राजनीति भी उसी बीजेपी से शुरू हुई थी। भाजपा के बाद वह कल्याण सिंह के साथ चले गए थे। उन्होंने फिर मायावती की बसपा में भी हाथी की सवारी करके देख लिया। तब जाकर उनकी सपा में बात बनी थी। यूपी में फरवरी-मार्च में हुए विधानसभा चुनाव से पहले ही उन्होंने घर वापसी की थी और फिर से भाजपा का कमल थाम लिया था।

बसपा में भी रह चुके हैं घनश्याम लोधी
घनश्याम सिंह लोधी 2009 में बसपा के टिकट पर रामपुर सीट से लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं, लेकिन तब वह जीत से दो पायदान नीचे रह गए थे। इस चुनाव में सपा ने अभिनेत्री जयाप्रदा को उतारा था और वह चुनाव जीती थीं। उस जमाने में पार्टी पर अमर सिंह का दबदबा हुआ करता था। इस चुनाव में बीजेपी ने अपने दिग्गज और मौजूदा केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को भी उतारा था, लेकिन वह लोधी से भी पीछे रह गए थे। इसी के बाद लोधी ने समाज पार्टी की साइकिल पकड़ ली थी।
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पिछड़ों की उपेक्षा का आरोप लगाकर छोड़ी थी सपा
सपा में आने के बाद से घनश्याम लोधी ने रामपुर में पार्टी के लिए खूब मेहनत की। 2012 के विधानसभा चुनाव से 2019 के लोकसभा चुनाव तक उन्होंने सपा के लिए बहुत ज्यादा काम किया। यही वह वक्त था, जब उन्हें आजम खान का भी आशीर्वाद प्राप्त हुआ। लेकिन, 2022 में विधासभा चुनाव से पहले उनकी बीजेपी में घर वापसी हुई। यह वह समय था, जब भाजपा के खिलाफ स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान ने अपने इस्तीफों से माहौल बना दिया था। इसी समय घनश्याम लोधी ने समाजवादी पार्टी पर पिछड़ों, दलितों, शोषितों, वंचितों और किसानों की उपेक्षा का आरोप लगाकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। 23 जून, 2022 को हुए लोकसभा उपचुनाव में सपा पर लोधी का वही दलित और पिछड़ों वाला आरोप काम कर गया और समाजवादी पार्टी का आजम और मुस्लिम कार्ड टांय-टायं फिस्स कर गया।