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चंद्रशेखर को काउंटर करने के लिए BSP का प्लान, विधानसभा चुनाव में 50 फीसदी युवाओं को देगी टिकट

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लखनऊ, 25 सितंबर: उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर बसपा की मुखिया मायावती अपनी रणनीति में अब बदलाव करने जा रही हैं। बसपा के सूत्रों की माने तो विधानसभा के टिकट बंटवारे के समय अब यूपी में करीब 50 प्रतिशत सीटों पर युवा प्रत्याशियों को मौका देने जा रही है। दरअसल आजाद समाज पाटी्र के नेता चंद्रशेखर की तरफ युवाओं के झुकाव को देखते हुए बसपा ने यह प्लान बनाया है। इसके सहारे वह चंद्रशेखर को काउंटर करना चाहती है। टिकट देते समय हालांकि इस बात का पूरा ध्यान रखा जाएगा कि जिन लोगों को टिकट दिया जाएगा उन्होंने बूथ लेवल पर संगठन के लिए क्या काम किया है।

मायावती

दरअसल बसपा का गठन 1984 में हुआ था। उस समय, रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई), जिसकी स्थापना बी.आर. अम्बेडकर ने दलितों की राजनीतिक आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करने का दावा किया।आजाद ने एएसपी के गठन के तुरंत बाद ही ट्वीट कर कहा था कि, 'साहब कांशीराम तेरा मिशन अधूरा, आजाद समाज पार्टी करेगा पूरा! (पार्टी कांशीराम के अधूरे सपनों को पूरा करेगी)"।

राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो पहले बसपा कार्यकर्ता कभी इसी तरह के नारे लगाते थे कि, "बाबा तेरा मिशन अधूरा, हम सब मिलकर करेंगे पूरा"। चंद्रशेखर के इस रुख के बाद बसपा अंदरखाने परेशान है और वह इसे काउंटर करने के लिए अलग रणनीति पर काम कर रही है। इसीलिए उन्होंने पहले प्रबुद्ध सम्मेलन शुरू कराए और उसमें भी जयश्रीराम और जय परशुराम के नारे लगते देखे गए। यह बसपा की छटपटाहट की है जिसे अब सोचने को मजबूर कर रही है।

बसपा मे अब युवाओं को आगे लाने का समय
बसपा के प्रदेश पदाधिकारी ने बताया कि,

''बसपा के भीतर अब यह सहमति बन गइ है कि पुराने नेताओं की जगह पर अब नए लोगों को सामने लाने का समय आ चुका है। चंद्रेशखर को लेकर युवाओं के बीच बढते प्रभाव को देखते हुए इस बार बहनजी 50 प्रतिशत सीटों पर युवाओं को मौका दे सकती हैं। दूसरा अहम पहलू यह भी है कि बसपा की मुखिया 70 साल के उपर की हो चुकी हैं और वह खुद चाहती हैं कि संगठन के भीतर अब युवाओ को मौका दिया जाए।''

बीएसपी के लिए एएसपी क्यों बनी चुनौती
बसपा के गठन के पीछे तर्क यह था कि आरपीआई अंबेडकर के सपनों को पूरा नहीं कर सकती और उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए एक नई पार्टी की जरूरत है। आजाद समाज पार्टी या एएसपी भी इसी तरह के तर्क का इस्तेमाल कर रही है। बसपा अब कांशीराम के सपनों को पूरा करने की स्थिति में नहीं है और इसलिए एक नए राजनीतिक दल की आवश्यकता है।

ऐसा लगता है कि चंद्रशेखर आजाद उस राजनीतिक शून्यता को भरना चाहते हैं जो बसपा प्रमुख मायावती पैदा कर रही हैं या पैदा कर सकती हैं। वर्षों से, बसपा अपने वैचारिक उत्साह और वोट शेयर को खो रही है। यह अपने शुरुआती दिनों की आक्रामक बहुजन राजनीति से दूर हो गई है। और इसके साथ ही पार्टी का नारा भी बहुजन हिताय से बदलकर सर्वजन हिताय हो गया है।

मायावती

क्या चुनाव में एएसपी से बीजेपी को होगा फायदा ?
एएसपी के गठन को लेकर कुद राजनीतिक विश्लेषकों का यह मानना है कि यह भाजपा विरोधी वोटों को और खंडित करेगा और अंततः भाजपा को लाभान्वित करेगा। हालांकि इस दावे में उतना दम नहीं है क्योंकि उत्तर प्रदेश में 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी, बसपा और अजीत सिंह की राष्ट्रीय लोक दल ने महागठबंधन बनाया था, लेकिन भाजपा की बाजीगरी को रोकने में नाकाम रही। यह तर्क भी बेमानी है। यदि बसपा अपना समर्थन आधार नहीं बना पाती है, तो दलित वोट बैंक पर कब्जा करने की हड़बड़ी होगी और दलित-नेतृत्व वाली पार्टी की अनुपस्थिति में, उसके मतदाताओं का एक वर्ग भाजपा की ओर बढ़ जाएगा।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रहे अमरेंद्र उपाध्याय कहते हैं कि,

''बसपा के आगमन से पहले, दलितों को कांग्रेस पार्टी का वोट बैंक माना जाता था। अगर दलित फिर से कांग्रेस को वोट देना शुरू कर दें या बीजेपी को वोट देना शुरू कर दें तो क्या यह बसपा के लिए समस्या नहीं बन जाएगी? वैसे भी, बसपा अब ज्यादातर यूपी में केंद्रित है और अन्य राज्यों में, दलित पहले से ही अन्य राजनीतिक दलों को वोट देते हैं। बसपा के हल्के होने से जो राजनीतिक शून्यता पैदा हो रही है उसको चंद्रशेखर ने भांप लिया है। समय रहते यदि बसपा ने अपनी रणनीति और सोच में बदलाव नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं कि यूपी में भी बसपा का चंक वोट बैंक उससे अलग हो जाएगा।''

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English summary
BSP's plan to counter Chandrashekhar, will give tickets to 50 percent youth in the assembly elections,
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