लखनऊ के कलंत्री निवास को अटल ने बनाया था अपना ठिकाना, चुनाव लड़ने का फैसला भी हुआ था इसी घर में
लखनऊ। अनंत के सफर पर निकले राजनीति के अजेय योद्धा अटल बिहारी वाजपेयी का लखनऊ से पुराना रिश्ता है जब देश आजाद भी नहीं हुआ था तब का। लखनऊ की हर गली-हर चौराहे से वो अच्छी तरह वाकिफ थे। अटल जी ने पं. दीनदयाल उपाध्याय की सरपरस्ती में राजनीति का ककहरा लखनऊ से सीखना शुरु किया था। लखनऊ अटल की जन्मभूमि भले ही न रही हो लेकिन उनकी कर्मभूमि जरुर थी। शायद इसीलिए वो अक्सर कहते थे कि 'ये लखनऊ मेरा है और मैं इस लखनऊ का हूं।' दूसरी वजह यह भी थी कि जिस लखनऊ पर सब लोग फिदा थे, वो शहर और उस शहर के लोग अटलजी पर फिदा हो चुके थे। अटलजी जब भी किसी कार्यक्रम में शामिल होते थे तो कहते थे 'मैं लखनऊ का था, हूं और हमेशा रहूंगा'।
ऐसा कहा जाता है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति की एबीसीडी लखनऊ के अमीनाबाद की मारवाड़ी गली के मशहूर कलंत्री निवास से सीखना शुरु किया था। पं. दीनदयाल उपाध्याय की छत्रछाया में रहकर उन्होंने यहीं से राजनीति में कदम रखा था। 1950 के शुरुआती दशक में जब वो कानपुर से पढ़ाई पूरी कर यहां आए और राष्ट्रधर्म से जुड़ गए। हाइकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता दिवंगत कृष्ण गोपाल कलंत्री अटल जी के घनिष्ठ मित्रों में से एक थे।
कृष्ण गोपाल कलंत्री के बेटे राजेन्द्र कलंत्री बताते हैं कि 1950 के दशक में जब वह लखनऊ आए तो कई मित्रों के घर उनके ठिकाने बने, लेकिन शुरुआती दिनों में कलंत्री निवास उनकी पहचान बना था। सुबह से लेकर देर रात तक जनसंघ की लंबी बैठकें घर के ऊपरी हिस्से पर बने हॉल में चला करती थीं।अटलजी बीच-बीच में शंभू हलवाई को कमरे की खिड़की से आवाज लगा देते। कभी जलेबी तो कभी रबड़ी। खुद भी खाते और हम सबको भी बुला कर खिलाते थे।
राजेंन्द्र गोपाल कलंत्री आगे बताते हैं कि जब 1951-52 में लोकसभा चुनाव होने वाले थे तब घर पर एक बड़ी बैठक हुई जिसमें तय हुआ कि अटल जी लोकसभा चुनाव लड़ेंगे और उनके पिता विधायक का। पर्चा दाखिल करने के लिए घर से ही जुलूस निकला जो अमीनाबाद समेत कई इलाकों में घूमते हुए खत्म हुआ। उसके बाद चुनाव हुए लेकिन नतीजे अटल जी के पक्ष में नहीं आए। लेकिन अटल जी चुनाव हारने के बाद भी काफी समय तक अमीनाबाद में रहे।
घर
पर
हुई
बैठक
में
तय
हुआ
था
कि
अटलजी
लड़ेंगे
लोकसभा
चुनाव
राजेन्द्र
कलंत्री
कहते
हैं
कि
1951-52
में
लोकसभा
चुनावों
के
दौरान
घर
पर
एक
बड़ी
बैठक
हुई,
जो
दोपहर
से
लेकर
लगभग
रात
तक
चली।
वह
बताते
हैं
कि
उसी
में
तय
हुआ
कि
अटल
जी
लखनऊ
से
लोकसभा
का
चुनाव
लड़ेंगे
और
पिताजी
विधायकी
लड़ेंगे।
पर्चा
दाखिल
हुआ
और
जुलूस
घर
से
ही
निकला,
अमीनाबाद
समेत
कई
इलाकों
में
घूमा।
पिताजी
और
अटलजी
दोनों
ने
एक
दूसरे
के
लिए
खूब
वोट
मांगे।
नतीजा
मनमाफिक
नहीं
रहा,
लेकिन
उसके
बाद
भी
अपनी
पत्रिका
के
लिए
अमीनाबाद
में
उनका
प्रवास
लंबे
समय
तक
रहा।
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