सूरत: 3 साल की बच्ची से दुष्कर्म के बाद हत्या के दोषी की फांसी टली, सुप्रीम कोर्ट ने डेथ वॉरंट पर रोक लगाई
सूरत. गुजरात में साढ़े 3 साल की बच्ची से दुष्कर्म कर उसे मार डालने वाले अनिल यादव की फांसी टल गई है। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी किए गए अनिल के डेथ वॉरंट पर रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने रोक इसलिए लगाई, क्योंकि ट्रायल कोर्ट ने अपील का वक्त पूरा होने से पहले ही अनिल को फांसी पर लटकाने का आदेश जारी किया था। ट्रायल कोर्ट ने उसे आगामी 29 फरवरी को फांसी पर लटकाने का आदेश दिया था, ऐसा करके ट्रायल कोर्ट ने 2015 में डेथ वॉरंट को लेकर जारी किए गए निर्देशों की अनदेखी की। यही बात सुप्रीम कोर्ट ने कही, जिसके चलते दोषी की फांसी अभी टल गई है।
बता दें कि, ट्रायल कोर्ट से डेथ वारंट जारी होने के बाद दोषी के पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, गुरुवार को इसी याचिका पर सुनवाई हुई।

ट्रायल कोर्ट के डेथ वॉरंट पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई
बता दें कि, इससे पहले गुजरात हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फांसी की सजा के फैसले को बरकरार रखा था। हाईकोर्ट के फैसले के बाद 60 दिन का वक्त गुजरने से पहले ही सेशंस कोर्ट ने डेथ वॉरंट जारी कर दिया। ऐसा होने पर, दोषी के पक्ष द्वारा मामला सुप्रीम कोर्ट में ले जाया गया। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को डेथ वॉरंट को दोषपूर्ण बताते हुए कहा- हम यह जानना चाहते हैं कि ट्रायल कोर्ट इस तरह की गलती कैसे कर सकता है। जबकि, इस बारे में 2015 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक गाइडलाइन मौजूद है।

जब तक सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल नहीं होता, फांसी नहीं होगी
सुप्रीम कोर्ट के निर्णय आने के पीछे गाइडलाइन यह है कि, जब तक दोषी को मिलने वाले सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल नहीं होता, तब तक डेथ वॉरंट जारी नहीं किया जा सकता। कानून के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी दोषी के पास राष्ट्रपति को दया याचिका भेजने का विकल्प मौजूद है। अगर दया याचिका खारिज हो जाए, तो फिर सुप्रीम में अपील की जा सकती है। पूरी प्रक्रिया के बाद ही डेथ वारंट जारी किया जा सकता है।

31 जुलाई 2019 को सुनाई गई थी दोषी को फांसी की सजा
दोषी अनिल यादव को सूरत की सेशन कोर्ट ने बलात्कार और हत्या के लिए दोषी करार देते हुए 31 जुलाई, 2019 को फांसी की सजा सुनाई थी। उसने सेशन कोर्ट के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, लेकिन उच्च न्यायालय ने भी सेशन कोर्ट के फैसले को सही मानते हुए उसकी फांसी की सजा को बरकार रखा था। इसके बाद ट्रायल कोर्ट ने उसके खिलाफ डेथ वारंट जारी कर दिया। ट्रायल कोर्ट ने डेथ वारंट जारी करते हुए कहा कि, अनिल को 29 फरवरी के दिन अहमदाबाद की साबरमती जेल में फांसी दे दी जाए।

ट्रायल कोर्ट से ऐसे सुप्रीम कोर्ट पहुंचा अनिल का केस
डेथ वारंट जारी होने के बाद अनिल के पक्ष ने जेल प्रशासन के जरिए कानूनी मदद मांगी थी। जिस पर सरकार ने उसकी पैरवी के लिए एक अधिवक्ता को नियुक्त किया। 14 फरवरी को उस अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट में अपील याचिका दायर की थी। गुरुवार को इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई, जहां अनिल की ओर से अधिवक्ता अपराजिता सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में दलीलें पेश करते हुए कहा कि अभियुक्त के पास सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 60 दिन का समय हो तब डेथ वारंट जारी नहीं किया जा सकता। अनिल के वकील की इस दलील को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने डेथ वारंट पर रोक लगा दी।

14 अक्टूबर 2018 को दिया गया था वारदात को अंजाम
अनिल यादव को साढ़े 3 साल की बच्ची से दुष्कर्म एवं हत्या करने के मामले में फांसी की सजा हुई है। संवाददाता के अनुसार, अनिल ने 14 अक्टूबर 2018 को दुष्कर्म करने के बाद बच्ची के सिर में डंडा मारकर और गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी थी। बच्ची का शव बरामद 15 अक्टूबर को हुआ था, जबकि दोषी को पांच दिन बाद पुलिस ने 19 अक्टूबर को बिहार के घनसोई गांव से गिरफ्तार किया था।

मूलत: बिहार का रहने वाला है बलात्कारी अनिल यादव
बिहार से अनिल की गिरफ्तारी के बाद जनवरी 2019 के अंतिम सप्ताह में इस केस की सुनवाई शुरू हुई थी। जिसमें पुलिस ने 23 दिन बाद 4 नवंबर को चालान पेश किया था और 108 दिन बाद आरोप तय किए गए थे। सेशन कोर्ट ने 290 दिनों में सुनवाई पूरी करते हुए उसे फांसी की सजा सुनाई थी।

दुष्कर्मी ने कहा था- मैं घबरा गया था, इसलिए उसे मारा
वारदात को लेकर अनिल ने यह कुबूला था कि, जब वह सूरत के लिंबायत में रहता था, तो उसने पड़ोस में रहने वाली उस साढ़े तीन साल की बच्ची को अगवा किया था। वह उसे अपने कमरे में ले गया था। जहां उसने बलात्कार किया। उसके बाद पोल खुलने के डर उसकी हत्या कर दी थी।
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