Dussehra 2022: विजयदशमी को खुलेगा 700 साल पुराने मठ का दरवाजा, यहां तालाब में विसर्जित किये जाते थे कंकाल
विजयदशमी यानि दशहरा के पर्व के मौके पर कई मठ मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन होगा। हम आपको छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक मंदिर की जानकारी दे रहे हैं,जहां दशहरे के दिन हजार वर्ष से पुराने शस्त्रों की विशेष पूजा होती है
रायपुर,04 अक्टूबर। विजयदशमी यानि दशहरा के पर्व के मौके पर देशभर में उत्सव का माहौल देखा जायेगा। कई मठ मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन होगा। हम आपको छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के एक मंदिर की जानकारी दे रहे हैं,जहां दशहरे के दिन हजार वर्ष से पुराने शस्त्रों की विशेष पूजा होती है, जहां किसी जमाने में हजारो नागा साधुओं का डेरा हुआ करता था,जहां विजयदशमी यानि दशहरे के दिन होने वाली विशेष पूजन और दर्शन के लिए छत्तीसगढ़ के कोने कोने से लोग पहुंचते हैं। कंकाली मंदिर नाम के इस देवीस्थान की जितना धार्मिक महत्व है,उतना ही पौराणिक महत्त्व है। पूरे रायपुर शहर की आस्था इस मंदिर में गहरी आस्था है।
700 साल पुराना है कंकाली मठ
राजधानी रायपुर के ब्राम्हणपारा में कंकाली तालाब है. इस मंदिर के किनारे स्थित है करीब 700 साल पुराना कंकाली मठ। आज भले ही यह स्थान रायपुर शहर के अंदर मौजूद हो,लेकिन किसी ज़माने में घने जंगल में श्मशान के बीच नागा साधुओं ने इस मठ का निर्माण किया था। बताया जाता है कि साधु इस समय वहां काली माता की साधना करते थे। शमशान के बीच कंकालों की उपस्थिति होती थी,वहीं साधु माता काली की पूजा करते थे,इसलिए इस मठ का नाम कंकाली मठ पड़ा।
दशहरे के दिन खुलता शस्रागार
जब काली माता की प्रतिमा को पुराने स्थान से हटाकर नए स्थान पर ले जाया गया,तब पुराने मठ में नागा साधुओं के अस्त्र शस्त्र रख दिए गए। हर साल दहशरे के दिन कंकाली मठ को खोला जाता है और शस्त्रों की पूजा करके भक्तों के दर्शन के लिए रख दिया जाता है।अगले दिन पूजा करके फिर मठ को सालभर के लिए बंद कर दिया जाता है।
इसलिए पड़ा कंकाली नाम
कंकाली मठ के महंत हरभूषण गिरी का कहना हैं कि मौजूदा समय में कंकाली मंदिर में जो देवी मूर्ति है, वह पूर्व में पुराने मठ में स्थापित थी। नागा साधु श्मशान के मध्य तांत्रिक विधि से पूजन किया करते थे। दक्षिण भारत से यात्रा करते हुए नागा साधुओं ने इस स्थान पर डेरा डाला था। नागा साधुओं ने ही कंकाली मठ स्थापित किया था। श्मशान में दाह संस्कार करने के बाद अस्थियों को तालाब में विसर्जित किया जाता था। इसी वजह से मठ का नाम कंकाली तालाब और कंकाली मठ हो गया।
मठ में है साधुओं की समाधि
सन्यासी परम्परा में मृत्यु के बाद साधुओं को समाधि दी जाती है। कंकाली मठ में नागा साधुओं समाधियां बनाई गई हैं । बताया जाता है कि कंकाली मठ की 13वीं शताब्दी में स्थापना की गई थी। 17वीं शताब्दी तक इस स्थान पर सैकड़ों की संख्या में नागा साधु निवास करते थे। आगे चलकर मठ के प्रथम महंत कृपालु गिरी बने,इसके बाद आने वाले महंतों में भभूता गिरी, शंकर गिरी महंत गद्दी पर बैठे।यह तीनो सन्यासी निहंग संन्यासी थे।
मिली जानकारी के मुताबिक महंत शंकर गिरी ने निहंग प्रथा को खत्म करवाके शिष्य सोमार गिरी की शादी करवाई,लेकिन औलाद नहीं हुई तो अपने शिष्य शंभू गिरी को महंत बनवाया । शंभू गिरी के प्रपौत्र रामेश्वर गिरी के वंशज महंत हरभूषण गिरी मौजूदा समय में कंकाली मठ के महंत और सर्वराकार हैं।