Taxila:भगवान बुद्ध के दांत के अवशेष जहां 'संरक्षित' हैं, उस देश से क्यों विलुप्त हो रहे हैं बौद्ध ? जानिए
तक्षशिला, 11 अक्टूबर: बौद्ध धर्म के अनुयायियों का मानना है कि भगवान बुद्ध से जुड़े कुछ अवशेष तक्षशिला में संरक्षित हैं। लेकिन, उनकी चिंता ये है कि पाकिस्तान से बौद्ध धर्म के अनुयायी ही विलुप्त होते जा रहे हैं। इसकी वजह वह यह बता रहे हैं कि वहां न तो उनके लिए पूजा स्थल बचे हैं और न ही उन्हें धार्मिक अनुष्ठान की जानकारी देने वाले बौद्ध भिक्षु रह गए हैं। ऊपर से पाकिस्तान सरकार से उनके धर्म को किसी तरह का संरक्षण भी नहीं मिल रहा है। आलम ये है कि अब वहां गिनती के बौद्ध परिवार ही बच गए हैं।

पाकिस्तान से विलुप्त हो रहे हैं बौद्ध
पाकिस्तानी अखबार डॉन की एक रिपोर्ट के मुताबिक वहां बौद्ध धर्म के बचे-खुचे अनुयायी भी विलुप्त होने की कगार पर खड़े हैं। पाकिस्तान के सिंध प्रांत के नौशहरो फिरोज से बौद्ध धर्म के अनुयायियों की पांच सदस्यीय एक टीम इन दिनों गांधार प्रदर्शनी देखने तक्षशिला आई हुई है, जिसने कहा है कि उन्हें वहां उनके धर्म के पालन में तो (कथित तौर पर) दिक्कत नहीं हो रही है, लेकिन कुछ खास वजहों से उनका धर्म विलुप्त होता जा रहा है। गांधार प्रदर्शनी 'जड़ें या मार्ग: पाकिस्तान के बौद्ध और जैन इतिहास की खोज' की थीम पर आधारित है।

'तक्षशिला में भगवान बुद्ध के दांत के अवशेष संरक्षित हैं'
बौद्ध धर्म के अनुयायियों की इस टीम ने कहा है कि 'तक्षशिला उनके धर्म का सबसे पवित्र स्थान है, क्योंकि भगवान बुद्ध की राख को वहां समाधि दी गई है और उनके दांत के अवशेष वहां पर संरक्षित हैं। इस टीम के प्रमुख लाला मुनीर ने कहा है, 'हम यहां आकर खुश हैं और प्रदर्शनी के आयोजकों को धन्यवाद देते हैं। हालांकि, हम यहां पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता (कथित तौर पर) का आनंद लेते हैं और हमारे धार्मिक अनुष्ठानों पर कोई रोक नहीं है, लेकिन पाकिस्तान में (हमारा ) धर्म अलग कारणों से विलुप्त होने के कगार पर है।'

पाकिस्तान से बौद्ध धर्म के विलुप्त होने के क्या कारण हैं ?
उन्होंने कहा कि वहां बौद्धों की सही संख्या की जानकारी तो नहीं है और सिंध के विभिन्न ग्रामीण जिलों में जैसे कि घोटकी, संघार, खैरपुर, नवाबशाह और नौहशहरो फिरोज में बौद्ध धर्म के पालन करने वाले करीब 650 परिवार रहते हैं। लेकिन, उनके धार्मिक अनुष्ठानों के लिए कोई मंदिर या स्तूप नहीं हैं। यही नहीं न तो उन्हें धर्म की शिक्षा देने वाला कोई है और ना ही सरकार से ही संरक्षण मिल पा रहा है। उन्होंने कहा है कि 'हम अपने घरों में ही (धार्मिक) अनुष्ठान, कार्यक्रम और त्योहार आयोजित करते हैं।'

'पाकिस्तान में बौद्ध धर्म के अंतिम जीवित अनुयायी'
एक और बौद्ध जुमान ने कहा कि वे सिंधी भाषा में उपलब्ध कहानियों, पुराने रीति-रिवाजों और सीमित पुस्तकों के आधार पर ही अपने अनुष्ठानों का पालन करते हैं। क्योंकि, आने वाली पीढ़ी को धार्मिक शिक्षाओं और प्रथाओं को सिखाने के लिए कोई भिक्षु नहीं है। यहां बौद्ध धर्म विलुप्त होने का सामना कर रहा है, क्योंकि हम अंतिम जीवित अनुयायी रह गए हैं। उन्होंने कहा है कि सरकार को उनके लिए मंदिर स्थापित करवाने चाहिए और बौद्ध देश से उन्हें शिक्षा देने के लिए भिक्षु बुलाने चाहिए। उनका कहना है कि ज्यादातर बौद्ध कभी भी तक्षशिला और खैबर पख्तूनख्वा स्थित बाकी बौद्ध स्थल विशेष रूप से तख्तबाई कभी नहीं जा पाए हैं, क्यों कि वे आर्थिक रूप से इसके लिए सक्षम नहीं हैं।

तक्षशिला से बौद्ध धर्म का रहा है प्राचीन रिश्ता
उधर 18 साल का वितरांत राज पहली बार तक्षशिला की प्राचीन भूमि की तीर्थयात्रा करके बहुत खुश हुआ है। उसने कहा है, 'मैं पहली बार तक्षशिला आया हूं और पहली बार भगवान बुद्ध के दर्शन किए हैं, क्योंकि मैंने उन्हें पहले चित्रों में देखा है।' उसने कहा कि उस स्थल की यात्रा करके वह धन्य हो गया है, जहां से बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ। (तस्वीरें- सांकेतिक)