FYUP के इशारे पर DU को झुकाना चाहता है UGC!
मुद्दा केवल इतना ही नहीं है, कुलसचिव ऑर यूजीसी के बीच की इस तनातनी से लगभग साढे तीन लाख विद्यार्थियों को जो कि डीयू की कटाऑफ आने का ऑर अपने दाखिले का इंतजार कर रहें हैं उनको भी इस विवाद का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
तूल पकड़ने के बाद खोजा जा रहा समाधान-
जहां तक सवाल चार साल के अंडरग्रेजुएशन प्रोग्राम की उपयोगिता का है तो आपको बता देंके डीयू के कुलसचिव अमेरिकन यूनिवर्सिटीज़ के आदर्श पर डीयू में इस फेरबदल की पहल कदमी कर रहें हैं ऑर फोर ईयर्स अंडरग्रेजुएशन प्रोग्राम को लागु करने का फरमान दे रहें हैं पर अगर अमेरिकन यूनिवर्सिटीज़ का ही का ही हवाला दें तो वहां भी इस तरह का ऐजुकेशन स्ट्रक्चर नहीं है जैसा कि डीयू कुलसचिव ने पेश किया है।
हालांकि इस चार साल के ग्रेजुएशन कोर्स में फाउंडेशन कोर्सिस को भी शामिल किया गया है परतुं यह निचले स्तर का है क्योंकि इन फाउंडेशन कोर्सिस के द्वारा जो जानकारी दी जाएगी वो विद्यालय स्तर की जानकारी है इसमें ऐसा कुछ खास नहीं है जो स्नातक स्तर पर विद्यार्थियों को बताया जाए तो इस तरह से एक नज़रिया यह उभरता है कि इस बदलाव के कारण शॅक्षिक गुणवत्ता तो गिरेगी ही साथ ही विद्यार्थिओं पर एक साल का फूजूल बोझ भी बढेगा. न केवल उनका समय बल्कि आर्थिक स्तर पर भी यह असहनीय है।
दूसरी तरफ देखें तो देश के अन्य केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में अब भी ग्रेजुएशन कोर्स केवल तीन साल का है ऐसे में डीयू में यह बदलाव न केवल अतार्किक है बल्कि किसी भी तरह दे विद्यार्थियों के हित में नहीं है। ऐसे में सिविल सर्विसिस का फायदा डीयू के विद्यार्थियों की अपेक्षा अन्य केन्द्रीय विश्वविद्यालयों के छात्रों को जल्दी भी होगा ऑर ज्यादा भी।
तीसरी
प्रमुख
बात
यह
है
कि
कुलसचिव
दिनेश
सिंह
ने
मनमाने
तरीके
से
यह
फैसला
लिया
है।
क्योंकि
इस
फैसले
से
पहले
न
डीयू
के
किसी
शिक्षाविद
से
कोई
राय
ली
गई
है,
न
शिक्षकों
से
कोई
राय
ली
गई,
न
छात्र
संगठनों
के
साथ
कोई
मीटिंग
हुई।
इनसोर्ट
कहें
तो
न
पढने
वालों
से
पूछा
गया
ऑर
न
पढाने
वालों
से
ऑर
मनमाने
ढंग
से
फैसला
ले
लिया
गया।
यदि
अतीत
पर
गौर
करें
तो
इससे
पहले
आज
तक
जब
भी
केन्द्रीय
स्तर
पर
देश
के
उच्चतम
विश्वविद्यालय
दिल्ली
विश्वविद्यालय
में
ही
शॅक्षिक
स्तर
पर
जब
भी
कोई
बदलाव
हुआ
है
तो
व्यवस्थित
रूप
से
एक
कमेटी
के
तहत
एक
योजना
के
तहत
हुआ
है
क्योंकि
सवाल
देश
के
लाखों
विद्यार्थियों
के
भविष्य
का
है
ऐसे
में
जल्दबाजी
में
कोई
भी
फैसला
करना
ठीक
नहीं
है।
एक अन्य महत्तवपूर्ण तथ्य यह भी है कि किसी भी प्रकार के बदलाव से पहले डीयू के सरंचनात्मक ढांचें को मजबूत करना जरूरी है क्योंकि आज डीयू में पहले ही शिक्षकों ऑर क्लासरूम की कमी, प्रोपर फैसिलिटीज़ नहीं है तो ऐसे में कोई बदलाव करना तर्कसंगत नहीं यदि मान्यवर कुलसचिव जी एक प्रयोग के तहत ही यह बदलाव करके देखना चाहते हैं तो उन्हें लाखों विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ नहीं करना चाहिए।
इनके फरमान के अनुसार यदि विद्यार्थी इस कोर्स को दो साल में छोडता तो उसे डिप्लोमा मिलेगा, तीन साल में छोडता है तो बैचलर डिग्री ऑर चार साल पूरे करता है तो बैचलर विद आनॅर्स। आखिर यह कैसा तरीका है ऑर कैसा ऐजुकेशन डिजाइन। नेशनल ऐजुकेशन पॉलिसी के लिहाज से भीयह ऐजुकेशन स्ट्रक्चर बेतुका है।
ऐसे में अब देखना यह है कि कुलसचिव ऑर यूजीसी के बीच का यह विवाद कब खतम होगा ऑर क्या कुलसचिव गंभीरता से इस मसले पर सोंचेंगे या तुगलकी फरमान की तरह अपनी जिद पर अड़े रहेंगे।
आइये अब आपको बताते हैं कि इस चार साल के ग्रेजुएशन प्रोग्राम की उपयोगिता के सन्दर्भ में डीयू के शिक्षकों ऑर विद्यार्थियों की क्या राय है-
लेक्चरार, दिल्ली यूनिवर्सिटी
ग्रेजुएशन तीन साल का ही रहना चाहिए। विद्यार्थियों के स्नातक स्तर पर तीन साल बहुत है। एक ऑर साल का समय बढा के उनका समय बर्बाद नहीं करना चाहिये।
प्रोफेसर्स की राय
इस चार साल के कोर्स का शॅक्षिक स्तर निचले दर्जे का है और इसमें जिस फाउंडेशन कोर्स को जोड़ा गया है वो टोटल टाइम वेस्टिंग है। क्या अब गे्रजुएशन लेवल पर बच्चों को सिखाया जाएगा भारत का इतिहास ऑर भुगोल , क्या अब बच्चों को बताया जाएगा कि एप्लीकेशन कैसे लिखते हैं ऑर कैसे किसी से बात करते हैं। अगर ऐजुकेशन सिस्टम में बदलाव करना ही है तो स्कूल लेवल से ही होना चाहिए।मौजुदा गे्रजुएशन प्रोग्राम ही उपयुक्त है ऑर उच्च स्तर का भी।
लेक्चरार
इस कोर्स से विद्यार्थियों पर आर्थिक बोझ बढ जाएगा और जो अतिरिक्त ज्ञान चार साल के कोर्स में देने कि बात की जा रही हैवो तो हम नॉर्मली भी बच्चों को उनके विषय के साथ ही साथ देते रहते हैं. इसके लिए बच्चों पर बोझ क्यों डालना।
लेक्चरार
जैसा कि इस चार साल के कोर्स के मुताबिक मास्टर्स केवल एक साल की हो जाएगी. लेकिन यह समझने कि बात है कि मास्टर्स के फस्ट ईयर को बैचलर में जोड़ना तर्कसंगत नहीं है. क्योंकि बैचलर ऑर मास्टर्स दोनों का लेवल अलग है, ऑर दोनों का टीचिंग लेवल भी अलग है .
डीयू में दाखिले का आवेदक
हम चार साल का कोर्स नहीं चाहते। अगर हम बीटेक करते तब तो यह ठीक था लेकिन नॉर्मल बैचलर डिग्री के लिए चार साल देना टाईम वेस्टिंग है।
छात्र दिल्ली यूनिवर्सिटी
यह चार साल का कोर्स अच्छा है क्योंकि इससे विद्यार्थियों को उन विषयों की भी जानकारी होगी जो कोम्पटीशन ऐग्ज़ाम में पूछे जाते हैं।
छात्रा दिल्ली यूनिवर्सिटी
इस कोर्स से बैचलर का ऐगुकेशन लेवल गिर जाएगा, बच्चों को वो पढाया जाएगा जो उन्होंने स्कूल लेवल पर भी पढा है तो क्या फायदा है इस बदलाव का।
डीयू में दाखिले का आवेदक).
आखिर पुराने कोर्स में कमी क्या है। और बात रही वोकेशनल कोर्स की तो जरुरत पड़ी तो वो हम अलग से कर सकते हैं हैं तो क्यों बर्बाद करें टाईम चार साल देकर।
डीयू में दाखिले का आवेदक
अगर हम मास्टर्स न करना चाहे तो जरूरी तो नहीं कि सब स्टूडेंट का मकसद मास्टर्स करना हो। ऐसे में यह चार साल का कोर्स जरूरी नहीं सब स्टूडेंट के लिए फायदेमंद हो।
छात्र दिल्ली यूनिवर्सिटी
इस तरह से कोई भी बदलाव करना ठीक नहीं है। अगर कुलसचिव बदलाव करना भी चाहते हैं तो उन्हें धीरे धीरे सोच समझ के एक पॉलिसी के तहत बदलाव करना चाहिए। जरूरी नहीं उनका यह ऐक्सपेरीमेंट सक्सेस हो हीजाए। ऐसे में छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए।