Tajinder Mehra : एक हाथ का लड़का बना मिसाल, पैदा होते ही इसे 20 हजार में किन्नर को बेचना चाहते थे परिजन
नई दिल्ली। 27 साल पहले दिल्ली के उत्तम नगर के एक परिवार में बेटा जन्मा। माता-पिता खुश होने की बजाय दुखी हुए, क्योंकि बेटे के एक हाथ नहीं था। इस वजह से माता-पिता का प्यार इसे महज दो माह भी नहीं मिला। फिर एक किन्नर से बीस हजार रुपए में इसका सौदा किया गया। नाम है तजिंदर मेहरा।

बुआ ने नहीं बिकने दिया भतीजा
मासूस बेटा तजिंदर बीस हजार में बिकने के बाद किन्नर के हाथों में पहुंचने वाला था उसी दिन इसकी जिंदगी में बुआ मसीहा बनकर आई। बुआ ने अपने परिवार के 'खून' को गैरों के हाथों में जाने देने की बजाय इसे पाल पोसकर बड़ा करने का फैसला लिया।
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मिसाल है तजिंदर मेहरा की जिंदगी
जिस बेटे से मां बाप ने मुंह मोड़ा आज उसकी जिंदगी उन लोगों के लिए मिसाल है, जो हार मान जाते हैं। विकलांगता की वजह से खुद को कमतर आंकते हैं। एक हाथ नहीं होने के बावजूद तजिंदर मेहरा ने वो कर दिखाया जो कई सामान्य लड़के नहीं कर पाते।
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तजिंदर मेहरा का इंटरव्यू
वन इंडिया हिंदी से बातचीत में तजिंदर मेहरा ने किन्नर के हाथों बिकने से बचने, बुआ के घर रहने, जिम ट्रेनर व बॉडी बिल्डर बनने, लॉकडाउन में आर्थिक संकट से जूझने और अब खुद की जिम खोलने का प्रयास करने की पूरी कहानी बयां की।

कौन हैं तजिंदर मेहरा
वर्तमान में तजिंदर मेहरा की पहचान दिल्ली के नामी बॉडी बिल्डरों व बेहतरीन जिम ट्रेनर के रूप में है। दिल्ली के उत्तम नगर में 11 दिसम्बर 1993 को ऑटो चालक राजकुमार व घरों में झाड़ू पोछा करने वाली सरोज देवी के घर तजिंदर मेहरा का जन्म हुआ। इनके एक बड़ा भाई है दविन्द्र सिंह। वो भी ऑटो चालक है।

बुआ-फूफा को ही मानते हैं माता-पिता
तजिंदर मेहरा कहते हैं कि उनके लिए बुआ प्रीति और फूफा ओमप्रकाश ही माता-पिता हैं। एक हाथ के साथ जन्म हुआ तो रियल माता-पिता को खुशी नहीं हुई। उन्हें मैं बोझ लगने लगा था। इसलिए किन्नर से मेरा बीस हजार में सौदा कर लिया और मुझे घर से बाहर फेंक दिया था।

जब बुआ मसीहा बनकर आई
तजिंदर जब दो माह के थे तो परिजन इन्हें किन्नर को बेचना चाहते थे। यह बात दिल्ली के ही मोतीनगर के कर्मपुरा में रहने वाली बुआ प्रीति को पता चली तो वे अपने भाई राजकुमार के घर आईं और जिद करने लगीं कि वे अपने परिवार के खून को बिकने नहीं देंगी। भाई-भाभी ने विकलांग बच्चे को पालने में असमर्थता जताई तो वे तजिंदर को अपने घर ले आईं। तब से इन्हीं के पास है।

दसवीं तक पढ़ पाए तजिंदर
तजिंदर कहते हैं कि एक हाथ नहीं होने के कारण बचपन में हर जगह मजाक उड़ाया जाता था। जैसे-तैसे दसवीं तक की पढ़ाई की। उसी दौरान कसरत का शौक लग गया। घर पर ही कसरत करता था। मोतीनगर की एक सरकारी जिम ज्वाइन की। वहां कोई ट्रेनर नहीं था। खुद ही एक्सरसाइज करता था। फिर एक रोज दिनेश कुमार से मुलाकात हुई। वे 'पी एकेडमी' नाम से प्राइवेट जिम का संचालन करते थे।

जब दिनेश कुमार बने मददगार
साल 2009 में तजिंदर ने दिनेश कुमार की जिम 'पी एकेडमी' ज्वाइन की। उसकी फीस 12 सौ रुपए प्रतिमाह थी। साथ में डाइट पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ता था, मगर दिनेश कुमार मददगार साबित हुए। फीस माफ की। डाइट का खर्च उठाया। हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित भी किया।

बनारस व दिल्ली की प्रतियोगिताओं में हिस्सा
दिनेश कुमार की जिम ज्वाइन करने के बाद तजिंदर मेहरा बॉडी ने बिल्डर बनने की दिशा में कदम भी बढ़ाए। साल 2016 में बनारस में आयोजित नोर्थ इंडिया प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और तीसरे स्थान पर रहे। फिर दिल्ली में फाउंडेशन खेलों में भी हाथ आजमाया। दो बार दूसरे स्थान पर रहे।

फूफा की मौत सबसे बड़ा गम
तजिंदर कहते हैं कि 2015-16 तक सब कुछ ठीक चल रहा था, मगर उस दौरान फूफाजी ओमप्रकाश की मौत हो गई। वो मेरे लिए सबसे बड़ा गम है। घर खर्च चलाने के लिए काम करना चाहा। लोगों को जिम की ट्रेनिंग देना चाहता था, मगर एक हाथ होने की वजह से काम नहीं मिला। फिर दिनेश कुमार ने ही 12 हजार प्रतिमाह जिम ट्रेनर की नौकरी दी।

लॉकडाउन में बिखर गए सपने
कोरोना महामारी के कारण साल 2020 में देशभर में लॉकडाउन लगा। जिम पूरी तरह से बंद हो गए। इनकम का कोई जरिया नहीं रहा। लॉकडाउन में थोड़ी ढील मिली तो कर्मपुरा में नॉनवेज का ठेला लगाना शुरू किया, मगर उसे भी पुलिस वालों ने चलने नहीं दिया।

अब खुद की जिम खोलना चाहते हैं तजिंदर
तजिंदर कहते हैं कि भले ही उनके एक हाथ नहीं है, मगर वे बेहतरीन जिम ट्रेनर हैं। कई मौकों पर खुद को साबित कर दिखाया है। ऐसे में खुद की जिम खोलना चाहता हूं, मगर आर्थिक तंगी राह में रोड़ा बन रही है। बैंक लोन का प्रयास कर रहा हूं। कई अन्य लोग भी मदद को तैयार है। उम्मीद है खुद की जिम का सपना जल्द पूरा होगा।
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