तीन तलाक के खिलाफ मुस्लिम समाज को आगे आना चाहिए-प्रधानमंत्री
तीन तलाक जैसे मुद्दे पर समाधान के लिए मुस्लिम समाज के प्रबुद्ध वर्ग को आगे आना चाहिए
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मोदी ने तीन तलाक के मुद्दे को राजनीति के दायरे से बाहर रखने की वकालत की है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि तीन तलाक जैसे मुद्दे पर समाधान के लिए मुस्लिम समाज के प्रबुद्ध वर्ग को आगे आना चाहिए। मोदी ने कहा, 'मैं मुस्लिम समाज से आग्रह करुंगा की तीन तलाक के मुद्दे को राजनीति के दायरे मत आने दीजिये। आप लोग आगे आकर इसका समाधान कीजिए'
विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए मोदी ने कहा कि तीन तलाक के मुद्दे को लेकर चल रही बहस मुझे ताकत मिलती है। उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि मुस्लिम समाज के भीतर से प्रबुद्ध मुस्लिम वर्ग निकलेगा, जो मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाएगा।
मोदी ने कहा, 'मुस्लिम समाज से प्रबुद्ध लोग आगे आएंगे और मुस्लिम बेटियों के साथ जो गुजर रही है, उसके खिलाफ लड़ेंगे और रास्ता निकालेंगे।'
मोदी
ने
कहा,
'मैं
मुस्लिम
समाज
से
अपील
करता
हूं
कि
वह
इस
मसले
को
राजनीतिक
रंग
ना
लेने
दें।'
प्रधानमंत्री
मोदी
ने
कहा
कि
मुस्लिम
समाज
ही
तीन
तलाक
को
लेकर
लड़ाई
लड़ेगा
और
महिलाओं
को
बराबरी
का
अधिकार
दिलाएगा।
तीन
तलाक
और
समाज
में
जारी
भेद-भाव
का
जिक्र
करते
हुए
मोदी
ने
कहा
कि
तीन
तलाक
जैसी
लड़ाई
से
मुस्लिम
समाज
खुद
लड़ेगा
और
भारत
का
प्रबुद्ध
मुस्लिम
समाज
न
केवल
अपनी
समस्याओं
के
समाधान
बल्कि
पूरी
दुनिया
के
मुसलमानों
के
सामने
मिसाल
पेश
करेगा।
महिलाओं
के
हक
की
लड़ाई
के
लिए
उन्होंने
सभी
वर्गों
से
आने
आने
की
अपील
की।
सामाजिक
भेदभाव
पर
निशाना
साधते
हुए
मोदी
ने
कहा
कि
देश
में
सबको
साथ
लेकर
सबके
प्रयास
से
सबका
विकास
किया
जा
सकता
है।
पीएम
मोदी
के
पहले
उत्तर
प्रदेश
के
मुख्यंत्री
योगी
आदित्यनाथ
तीन
तलाक
को
लेकर
बयान
दे
चुके
हैं।
आदित्यनाथ
ने
कहा
था
कि
तीन
तलाक
पर
चुप्पी
साधने
वाले
लोग
अपराधी
समान
है।
उत्तर
प्रदेश
चुनाव
के
दौरान
भी
बीजेपी
ने
तीन
तलाक
को
बड़ा
मुद्दा
बनाया
था।
वहीं इस मसले पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक मुद्दे पर कहा है कि कि तीन तलाक, निकाह हलाला और बहु विवाह मुस्लिम महिलाओं के सामाजिक स्तर और गरिमा को प्रभावित करते हैं और उन्हें संविधान में दिए गए मूलभूत अधिकारों से वंचित रखते हैं।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर ताजा हलफनामे में अपने पिछले रुख को ही दोहराया और कहा है कि ऐसी प्रथाएं मुस्लिम महिलाओं को उनके समुदाय के पुरुषों की तुलना में और दूसरे समुदायों की महिलाओं की तुलना में असमान और कमज़ोर बनाती है।
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