moradabad news : बच्चों को थप्पड़ मारने वाली टीचर का वीडियो वायरल, बाल कल्याण समिति ने मांगी रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में एक थप्पड़ वाली टीचर का वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। वीडियो में कुर्सी पर बैठी एक शिक्षिका पास में खड़े मासूम बच्चों के गालों पर थप्पड़ बरसाती नजर आ रही हैं। एक के बाद एक टीचर ने बच्चों के गाल पर कई थप्पड़ जड़ दिए। साथ ही दूसरे वीडियो में बच्चों से गेस सिलेंडर को उठवाया जा रहा है। बता दें की दोनों वीडियो एक ही स्कूल के हैं।
एक के बाद बच्चों के जड़े थप्पड़
जानकारी अनुसार वीडियो मुरादाबाद जनपद के बिलारी विकास खंड में स्थित टांडा अमरपुर कंपोजिट स्कूल की है। वीडियो में बच्चों को पीटते हुए नजर आ रही टीचर की पहचान इस स्कूल की हेड सुमन श्रीवास्तव के रूप में हुई है। उधर दूसरी वीडियो में बच्चे सिलेंडर उठाते हुए नजर आ रहे है जब एक बच्चे की मां शिकायत लेकर पहुंची तो शिक्षिका उल्टा मां को ही नसीहत दे दी। कहा-यहां फालतू की बातें मत करिए, तीन बच्चों को नाम लिखाया है आपने, तीनों बच्चे मुझे सुबह साढ़े सात बजे स्कूल में चाहिए। फिलहाल बीएसए ने पूरे मामले में जांच के आदेश दिए हैं। उधर बाल कल्याण समिति ने मामले का संज्ञान लिया है।बाल कल्याण समिति ने प्रकरण में बीएसए को चिट्ठी भेजकर पूरे मामले की रिपोर्ट तलब की है। निर्देश दिया है कि प्रकरण की जांच करके दोषी के खिलाफ एक्शन लें और 25 नवंबर तक रिपोर्ट कमेटी को भेजें। उधर जानकारी के मुताबिक बताया जा रहा है 2 शिक्षकों के आपसी विवाद में यह दोनों वीडियो वायरल किए गए हैं।
शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना नहीं दी जा सकती
ऐसे
मामले
सामने
आने
के
बाद
सज़ा
में
जुवेनाइल
जस्टिस
ऐक्ट
और
आरटीई
के
तहत
सज़ा
का
प्रावधान
किया
गया
है।
अगर
बच्चे
को
शारीरिक
सज़ा
या
मानसिक
प्रताड़ना
दी
जाती
है
तो
इस
पर
आरटीई
का
सेक्शन
17(1)
रोक
लगाता
है
और
इसके
सेक्शन
17(2)
में
इसमें
सज़ा
का
प्रावधान
किया
गया
है।
इसमें
ये
कहा
गया
है
कि
किसी
भी
बच्चे
को
शारीरिक
या
मानसिक
प्रताड़ना
नहीं
दी
जा
सकती
है।
अगर
कोई
इन
प्रावधानों
का
उल्लंघन
करता
है
तो
उस
व्यक्ति
के
ख़िलाफ़
मौजूदा
सेवा
नियमों
के
तहत
अनुशासनात्मक
कार्रवाई
की
जा
सकती
है।
भारतीय
क़ानून
में
कॉरपोरल
को
परिभाषित
नहीं
किया
गया
है,
लेकिन
आरटीई
ऐक्ट
के
प्रावधानों
के
तहत
कॉरपोरल
पनिशमेंट
को
शारीरिक
सज़ा,
मानसिक
प्रताड़ना
और
भेदभाव
में
वर्गीकृत
किया
गया
है।
नमें
बच्चे
को
दी
जाने
वाली
किसी
भी
तरह
की
शारीरिक
सज़ा
जिससे
बच्चे
को
दर्द
हो,
चोट
लगे,
बैचेनी
होने
लगे
शामिल
है.
उदाहरण
के
तौर
पर
इसमें
मारना
लात
मारना,
खंरोच
मारना,
चोटी
काटना,
बाल
खींचना,
कान
खींचना,
थप्पड़
मारना,
मुंह
से
काटना,
किसी
चीज़
(डंडा,
छड़ी,
डस्टर,
बेल्ट,
कोड़े,
जूते
आदि)
से
मारना,
इलेक्ट्रिक
शॉक
देना
या
फिर
बेंच
पर
या
दीवार
के
सहारे
खड़ा
करना
मानसिक
प्रताड़ना
में
शामिल
है।
हो सकती है 6 महीने तक की सज़ा
अगर
कोई
जुवेनाइल
यानी
18
साल
के
कम
उम्र
के
बच्चे
किसी
अनाथालय,
बच्चों
के
आश्रम
में
रहते
हैं
और
उन
पर
इन
संस्थाओं
के
मालिक
किसी
प्रकार
का
नियंत्रण,
हमला
करते
हैं
तो
उसमें
भी
सज़ा
का
प्रावधान
किया
गया
है.
इसके
अलावा
यहां
रह
रहे
बच्चों
को
वो
कहीं
छोड़
देते
हैं
या
मानसिक
या
शारीरिक
नुकसान
पहुंचाया
जाता
है
तो
ऐसे
मामलों
के
सामने
आने
पर
जेल
की
सज़ा
भी
होती
है।
ऐसे
मामले
सामने
आने
पर
दि
जुवेनाइल
जस्टिस
ऐक्ट,
2000
के
सेक्शन
23
के
मुताबिक़,
छ
महीने
तक
की
जेल
की
सज़ा,
जुर्माना
या
दोनों
दी
जा
सकती
है।
जिस
व्यक्ति
पर
शारीरिक
दंड
देने
के
आरोप
लगते
हैं
वो
आईपीसी
के
सेक्शन
88
या
89
का
सहारा
लेकर
मदद
मांगता
है,
लेकिन
क़ानून
में
अब
ये
शरण
या
मदद
उपलब्ध
नहीं
है
क्योंकि
शारीरिक
दंड
देने
या
ऐसे
कृत्य
की
सज़ा
को
अब
विशेष
क़ानूनों
जैसे
आरटीई
ऐक्ट
और
जेजे
ऐक्ट
में
संहिताबद्ध
कर
दिया
गया
है।
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