mathura: मीनारों से मस्जिद और गुंबद से गुरुद्वारा लगता है यह मंदिर, सभी समुदाय के लोग करते हैं प्रार्थना
मथुरा वृंदावन को मंदिरों की नगरी कहा जाता है। मथुरा के नेशनल हाईवे 19 पर एक ऐसा मंदिर स्थापित है। जहां सर्व धर्म को अपने अंदर समायोजित किए हुए हैं। मंदिर को अगर गौर से देखेंगे तो इसमें आपको अलग-अलग धर्मों की झलक देखने को मिलेगी। इस मंदिर का निर्माण जय गुरुदेव महाराज ने अपने गुरु गोरेलाल की स्मृति में कराया था। इस मंदिर को दूसरा ताजमहल भी कहा जाता है। सफेद रंग की संगमरमर यहां आने वाले लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। यही वजह है कि हर दिन हजारों दर्शनार्थी इस मंदिर में अपना माथा टेकने के लिए आते हैं।
मीनारों से मस्जिद और गुम्मद से गुरुद्वारा लगता है मंदिर
मथुरा
में
अनेकों
मंदिर
ऐसे
हैं
जो
कि
अपनी
अलग
पहचान
रखते
हैं।
ऐसे
में
हम
आपको
मथुरा
के
एक
ऐसे
ही
मंदिर
के
बारे
में
बताने
जा
रहे
हैं,
जो
कि
राष्ट्रीय
राजमार्ग
पर
स्थित
है।
इस
मंदिर
को
जय
गुरुदेव
मंदिर
के
नाम
से
जाना
जाता
है।
इस
मंदिर
की
खासियत
यह
है
कि
यह
मंदिर
मीनारों
से
मस्जिद
और
गुम्मद
से
गुरुद्वारा
और
प्रार्थना
हॉल
से
यह
गिरजा
घर
की
तरह
दिखाई
देता
है।
इसी
के
चलते
यहां
सभी
मजहब
और
धर्म
के
लोग
दर्शन
करने
के
लिए
आते
हैं।
इस
मंदिर
का
निर्माण
कार्य
जय
गुरुदेव
महाराज
ने
अपने
गुरु
घुरेलाला
की
पुण्यतिथि
में
5
दिसंबर
1973
को
शुरू
किया
था।
काफी
लंबे
समय
तक
इस
मंदिर
को
बनाने
का
कार्य
जारी
रहा।
आखिरकार
25
दिसंबर
2001
में
यह
मंदिर
बनकर
तैयार
हो
गया।
सभी
धर्म
और
समुदाय
के
लोग
करते
है
पूजा
मंदिर
में
1
वर्ष
में
तीन
बार
मेलों
का
आयोजन
किया
जाता
है।
जिसमें
विभिन्न
प्रांतों
से
आए
लाखों
की
संख्या
में
लोग
भाग
लेते
हैं।
मंदिर
के
राष्ट्रीय
महामंत्री
बाबूराम
ने
जानकारी
देते
हुए
बताया
कि
जय
गुरुदेव
मंदिर
में
दर्शन
करने
के
लिए
हजारों
की
संख्या
में
श्रद्धालु
यहां
आते
हैं।
यह
मंदिर
सभी
की
भावनाओं
को
देखते
हुए
बाबा
जयगुरुदेव
द्वारा
बनवाया
गया
है।
यहां
सभी
धर्म
और
समुदाय
के
लोगों
को
आने
की
अनुमति
है।
इस
मंदिर
को
उसी
हिसाब
से
डिजाइन
किया
गया
है
जिससे
कि
यहां
सभी
धर्म
के
लोग
आ
सके।
सबका समान रुप से है अधिकार
साथ ही उन्होंने बताया कि इसके साथ यह भावना भी जुड़ी हुई है सभी वर्गो, धर्म और संप्रदाय के लोग एक जगह बैठ कर उस मालिक की प्रार्थना, इबादत और पाठ कर सके क्योंकि सभी लोग उस परमात्मा के बनाए हुए समान रूप से मनुष्य हैं। जाती और धर्म के झगड़े यह मनुष्यता की पहचान नहीं है सब में परमात्मा का अंश खुदा की रूह हैं इसलिए सबको समान रुप से भजन करने का सम्मान अधिकार है। बाबा जयगुरुदेव महाराज की शिक्षा थी कि अपना काम खेती, दुकानदारी, दफतर का इमानदारी और सच्चाई से करने के बाद बाल बच्चों की सेवा और खिदमत करें।
116 वर्षों का कठिन परिश्रम
बाबा जयगुरुदेव महाराज का कहना था कि अपने अमोलक समय में से समय निकालकर 1 घंटे या 2 घंटे अपने-अपने उस मालिक का भजन और प्रार्थना करें। इससे अपने अंदर मानवीय विचारधारा विकसित होगी प्रेम सद्भाव के वातावरण आएंगे और यह शरीर वास्तव में परमात्मा का बनाया हुआ सच्चा मंदिर है, सच्ची मस्जिद है। जिस प्रकार मंदिर और मस्जिद में हम लोग किसी प्रकार का कूड़ा कचरा नहीं डालते उसी तरह से हमे इस मंदिर में भी किसी पशु,पंछी या अन्य किसी जानवर का मांस, मुर्गा नहीं डालना चाहिए। इसको साफ-सुथरा रखना चाहिए बुद्धि नष्ट करने वाले नसों से परहेज करना चाहिए। परम पूज्य श्री जय गुरुदेव महाराज ने 116 वर्षों तक कठिन परिश्रम करके इस देश में करोड़ों लोगों को सहकारी नशा मुक्त बनाया है।
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