डॉक्टर की लापरवाही के चलते 5 वर्षीय बच्चे की इलाज के दौरान मौत, शरीर में रह गई थी कैंची
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में एक निजी अस्पताल द्वारा प्लेटलेट्स चढाने वाला मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि मथुरा से एक और बड़ा लापरवाही का मामला सांमने आया है। नेशनल हाईवे 19 पर बने केडी मेडिकल हॉस्पिटल में आज 5 वर्षीय बालक की उपचार के दौरान मौत हो गई। मामला तब बिगड़ा जब परिजनों ने चित्सक पर ऑपरेशन के दौरान मरीज के अंदर कैंची छोड़ देने का आरोप लगाया। पुलिस ने आकर बवाल को शांत किया और जांच-पड़ताल के बाद परिजनों को उचित कार्यवाही का आश्वासन भी दिया।
आपरेशन के दौरान कैंची रह जाने से फैला इन्फेक्शन
दरअसल
थाना
छाता
कोतवाली
के
अंतर्गत
नेशनल
हाईवे
19
पर
बने
केडी
मेडिकल
हॉस्पिटल
में
आज
5
वर्षीय
बालक
की
उपचार
के
दौरान
मौत
हो
गई।
मासूम
की
मौत
से
आक्रोशित
परिजनों
ने
चिकित्सक
पर
लापरवाही
का
आरोप
लगाया।
परिजनों
की
जानकारी
के
अनुसार
गोवर्धन
के
रहने
वाले
उत्तम
के
5
वर्षीय
पुत्र
विक्रम
की
तबीयत
खराब
थी।
उन्होंने
अपने
पुत्र
को
वृंदावन
के
कार्य
बाबू
अस्पताल
में
भर्ती
कराया,
जहाँ
उन्हें
तबियत
में
सुधर
देखने
को
नहीं
मिला।
उल्टा
विक्रम
की
तबीयत
और
बिगड़ने
लगी।
यह
देख
उत्तम
तत्काल
अपने
पुत्र
को
लेकर
केडी
हॉस्पिटल
पहुंचे।
कुछ
दिन
पूर्व
छाता
के
केडी
मेडिकल
हॉस्पिटल
में
ही
विक्रम
का
आपरेशन
हुआ
था,
जिसमे
परिजनों
ने
लाखों
रूपये
भी
खर्च
किए
थे।
सारी
जांचें
करने
के
बाद
डॉक्टरों
ने
एक
और
आपरेशन
कुछ
दिन
बाद
होने
की
बात
कहते
हुए
बच्चे
को
छुट्टी
दे
दी।
इसके
बाद
एक
बार
फिर
आपरेशन
के
लिए
उत्तम
ने
अपने
पुत्र
को
अस्पताल
में
भर्ती
करा
दिया।
लेकिन
इस
बार
चिकित्सक
की
लापरवाही
के
चलते
आपरेशन
के
स्थान
पर
कैंची
रह
जाने
के
कारण
विक्रम
के
शरीर
में
इंफेक्शन
फ़ैल
गया।
जिसके
कारण
मासूम
विक्रम
ने
शुक्रवार
की
सुबह
उपचार
के
दौरान
दम
तोड
दिया।
मृतक
मासूम
के
परिजन
दीपक
ने
बताया
की
चिकित्सक
श्याम
बिहारी
की
लापरवाही
से
मासूम
की
जान
गई
है।
अगर
आपरेशन
के
दौरान
ये
लापरवाही
नहीं
की
जाती
तो
शायद
एक
परिवार
का
चिराग
न
बुझता।
आक्रोशित
परिजनों
ने
चिकित्सक
के
खिलाफ
कार्यवाही
की
मांग
की
है।
सूचना
पाकर
पहुंची
इलाका
पुलिस
ने
जांच
पड़ताल
शुरू
कर
दी
है।
इस
पूरे
मामले
के
संबंध
में
जब
हॉस्पिटल
चिकित्सकों
से
बात
करने
की
कोशिश
की
तब
उन्होंने
इस
मामले
पर
कुछ
भी
बताने
से
फ़िलहाल
इंकार
कर
दिया।
चिकित्सक लापरवाही से करीब हर साल होती है 52 लाख लोगों की मौत
भारत में हर साल करीब 52 लाख लोगों की मौत मानवीय भूलों के कारण होती है। अमेरिका में भी यह आंकड़ा 44,000 से 98,000 के बीच है। विशेषज्ञों के अनुसार यह चिकित्सा कौशल या डॉक्टरों के ज्ञान की कमी नहीं है, बल्कि आपात स्थिति के दौरान टीम समन्वय और संचार की कमी है जो चिकित्सा त्रुटियों का कारण बनती है, चिकित्सा लापरवाही के कारण होने वाली लगभग 70% मौतों को मानवीय त्रुटियों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। डॉक्टरों और नर्सों में अस्पताल लाए जाने वाले मरीजों को संभालने के व्यवहारिक ज्ञान की कमी है। वहीँ कुछ विशेषज्ञों का दावा है कि डॉक्टरों और अस्पतालकर्मियों के लिये एक विशेष पाठ्यक्रम से इस आंकड़े को घटाकर आधा किया जा सकता है। यह पाठ्यक्रम इस पर केंद्रित है कि गंभीर रूप से बीमार या जख्मी मरीज को किस तरह संभालना चाहिए।
मरीज कंज्यूमर फोरम में अपना केस रजिस्टर्ड कर सकते हैं
डॉक्टर की सेवाओं को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में रखा गया है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का अर्थ होता है उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण करना। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत बनाई गई कोर्ट जिसे कंजूमर फोरम कहा जाता है। यहां किसी तरह की कोई भी कोर्ट फीस नहीं लगती है और लोगों को बिल्कुल निशुल्क न्याय दिया जाता है। हालांकि यहां पर न्याय होने में थोड़ा समय लग जाता है क्योंकि मामलों की अधिकता है और न्यायालय कम है। किसी डॉक्टर की लापरवाही से होने वाले नुकसान की भरपाई कंजूमर फोरम द्वारा करवाई जाती है। मरीज कंज्यूमर फोरम में अपना केस रजिस्टर्ड कर सकते हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत लगने वाले ऐसे मुकदमों में डॉक्टर को प्रतिवादी बनाया जाता है और मरीज को वादी बनाया जाता है। इस फोरम में मरीज फोरम से क्षतिपूर्ति की मांग करता है। कंज्यूमर फोरम मामला साबित हो जाने पर पीड़ित पक्ष को डॉक्टर से क्षतिपूर्ति दिलवा देता है। लेकिन यह ध्यान देने योग्य बात है कि यहां पर मामला साबित होना चाहिए। अगर डॉक्टर की लापरवाही साबित हो जाती है तब मरीज को क्षतिपूर्ति प्रदान की जाती है।
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