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एरण में अनूठे “श‍िव”, पहली सती प्रथा के प्रतीक ज‍िन्‍हें ‘पूजना-छूना’ मना है, जान‍िए ऐसा क्‍यों

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सागर, 14 जुलाई। मप्र का एरण, दुन‍िया के सबसे प्राचीन नगर में शुमार, मानव सभ्‍यता के फलने-फूलने के सबूत और प्रतीक यहां आज भी जीवंत है साथ ही हमारी सनातन और शैव परंपरा भी यहां साक्षात प्रत‍िमाओं में मौजूद हैं... एरण में भगवान भोलेनाथ व‍िशाल श‍िवल‍िंग के रुप में व‍िराजमान हैं। जो यहां 1512 साल पहले से सनातन धर्म, आस्‍था और मान्‍यताओं का केंद्र रहे हैं। हालांकि इन 5 फीट से भी ऊंचे भगवान भोलेनाथ के श‍िवल‍िंग स्‍वरुप को स्‍पर्श करना मना है, यहां केवल उनके दर्शन क‍िए जा सकते हैं। पुरातत्‍व व‍िभाग ने इनको राष्‍ट्रीय पुरा संपदा में संरक्ष‍ित करके रखा है।

देश में पहली सती प्रथा से जुडा है श‍िवल‍िंग का इत‍िहास

देश में पहली सती प्रथा से जुडा है श‍िवल‍िंग का इत‍िहास

एरण कभी जीवंत मानव सभ्‍यता व राजशाही का गौरवशाली प्रतीक रहा है। पुरात्‍व व‍िभाग के र‍िकॉर्ड के अनुसार सती प्रथा के सबसे पुराने प्रमाण मिलने वाला गांव पहलेजपुर है, जो अब सागर जिले में है। बीना से 15 किमी दूर मौजूद ऐरण से लगे इस पहलेजपुर गांव में जो शिवलिंग स्थापित किया है, वह गुप्तकालीन है। यहां सबसे पहले 510 ईसवी में ऐरण के रियासत के सेनापति गोपराज की पत्नी गोपाबाई के सती होने के बाद शिवलिंग स्थापित किया था।

सद‍ियों तक खेत की म‍िट्टी में दबे रहे 'श‍िव'

सद‍ियों तक खेत की म‍िट्टी में दबे रहे 'श‍िव'

मप्र के सागर ज‍िले में बीना तहसील के पास संरक्ष‍ित एरण हमारी दुनिया के प्राचीन नगरों में से एक। बताया जाता है कि 4 हजार साल पहले यहां मानव सभ्यता थी। सबसे खास बात कि यहीं से दुनिया में सती प्रथा प्रारंभ हुई थी। 510 ईसवी में गोपाबाई ने पति की चिता में कूदकर अपनी जान दे दी थी। इस स्थान पर विशाल शिवलिंग था, जो कालांतर में मिट्‌टी में दब गया। अब 1512 साल बाद यहां 5.2 फीट ऊंचे शिवलिंग की फिर स्थापना की है। ये शिवलिंग 147 साल पहले खुदाई में मिला था। यह श‍िवल‍िंग करीब 7 दशक तक बीना नदी से सटे एक खेत में थे। बाद में पुरात्‍तव व‍िभाग ने इनको संरक्ष‍ित कर स्‍थाप‍ित कराया है।

समुद्र गुप्त काल के विष्णु मंदिर के बाहर देश के सबसे बडे वराह मौजूद

समुद्र गुप्त काल के विष्णु मंदिर के बाहर देश के सबसे बडे वराह मौजूद


एरण में गुप्त काल का भगवान विष्णु का मंदिर तथा उसके दोनों तरफ वराह तथा नृसिंह का मंदिर प्रमुख है। वराह की 14 फीट ऊंची और 6 फीट मोटी प्रतिमा भारत में कहीं नहीं है। यह प्रतिमा करीब 1600 साल पुरानी है। इसके मुख, पेट, पैर आदि समस्त अंगों में देव प्रतिमाएं उकेरी गई हैं।

भानूराज के सेनापत‍ि की वीरगत‍ि के बाद यहीं सती हुई थी गोपाबाई

भानूराज के सेनापत‍ि की वीरगत‍ि के बाद यहीं सती हुई थी गोपाबाई

सती प्रथा का प्रथम उल्लेख यहीं पर मिला 510 ईसवी में गुप्तकालीन शासक राजा भानूराज के सेनापति गोपराज युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गए थे। उनकी पत्नी गोपाबाई ऐरण रियासत के पहलेजपुर गांव में बीना नदी के किनारे उनकी चिता पर सती हुई थीं। उन्हीं की याद में इस शिवलिंग की स्थापना की थी।

6.4 फीट की जलहरी, 5.2 फीट के श‍िवल‍िंग, 47 फीट के गरुढ़ स्‍तंभ भी मौजूद

6.4 फीट की जलहरी, 5.2 फीट के श‍िवल‍िंग, 47 फीट के गरुढ़ स्‍तंभ भी मौजूद

पुरात्‍व व‍िभाग के र‍िकॉर्ड व एरण में लगाए गए लेख के अनुसार यहां स्‍थाप‍ित श‍िव‍िल‍िंग करीब 1874 से 1877 के बीच मिले थे। शिवलिंग पहलेजपुर में पुनर्स्थापित हुए शिवलिंग की ऊंचाई 5 फीट 2 इंच है। व्यास 4.8 फीट का है। जलहरी की बात करें तो उसका घेराव 4.6 फ़ीट है और लंबाई 6.4 फीट है। यहां पर इनके सामने नंदी भी बैठे हैं। भारतीय पुरातत्व संरक्षण विभाग द्वारा लगाए लेख के अनुसार इस शिवलिंग की खोज 1874 से 1877 के बीच कनिंघम द्वारा की गई थी। यहीं पर भगवान श्री विष्णु मंदिर के सामने 47 फुट ऊंचा गरुड़-ध्वज स्‍तंभ स्‍थाप‍ित है।

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English summary
Lord Bholenath is seated in the form of a huge Shivling in the Eran of MP. Which has been the center of Sanatan Dharma, faith and beliefs since 1512 years ago. Although it is forbidden to touch the Shivling form of Lord Bholenath higher than these 5 feet, only he can be seen here. The Archaeological Department has preserved them in the National Antiquities Estate.
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