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यूपी की राजनीति में सपा-बसपा के उदय का इतिहास और भाजपा की चुनौती

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लखनऊ। वर्ष 1995 में जब मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनने पर मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि कांग्रेस ने यूपी में दलित नेता का समर्थन कर बड़ी चूक की है और पार्टी ने हमेशा के लिए दलितों का समर्थन खो दिया है।

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बाबरी विध्वंश, यूपी की राजनीति में बड़ा बदलाव

मुलायम सिंह का यह बयान कांग्रेस के लिए सच साबित हुआ और पार्टी ने ना सिर्फ दलितों बल्कि मुसलमानों का भी समर्थन यूपी में खो दिया। इसकी मुख्य वजह यहा थी कि 1992 में बाबरी विध्वंस में मुसलमान भाजपा के साथ कांग्रेस को भी बराबर का भागीदार मानते हैं। जिस वक्त बाबरी विध्वंश हुआ उस वक्त केंद्र में नरसिंम्हा राव की की सरकार थी और यूपी में भाजपा की सरकार जिसमें कल्याण सिहं प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।

इसी दौर में समाजवादी पार्टी का प्रदेश में उद्भव हुआ था। ऐसे में बाबरी विध्वंश के बाद कांग्रेस और भाजपा से मुसलमानों के दूर होने का तत्कालीन फायदा समाजवादी पार्टी को हुआ। यह वही दौर है जिसके बाद यूपी में सपा और बसपा प्रदेश में मुख्य पार्टी के रूप में उभरी। इस दौरान दोनों पार्टियों ने कभी अकेले तो कभी गठबंधन के जरिए सरकार में अपनी भागीदारी बनाये रखी।

मायावती ने यूपी की राजनीति में बनायी अपनी पहचान

मायावती ने कांग्रेस के साथ चुनाव से पहले ही गठबंधन करके आगामी 1996 के चुनाव को टाल दिया और सरकार में बनी रही है। हालांकि उन्होंने इसके बाद भाजपा के साथ गठबंधन करके प्रदेश में सरकार बना ली। ऐसे में यूपी में कांग्रेस की ओर से नारायण दत्त तिवारी 1989 में आखिरी मुख्यमंत्री साबित हुए और तब से कांग्रेस यूपी में अपनी वापसी के लिए लंबे समय से वनवास काट रही है।

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एक तरफ जहां कांग्रेस सत्ता से लंबे समय तक दूर रही तो भाजपा ने 1997 से 2002 तक सत्ता में रही और उसके बाद से वह सत्ता से दूर है। इसी के चलते इस बार के चुनाव में भाजपा ने 27 साल यूपी बेहाल के नारे के साथ यूपी चुनाव में उतरने का फैसला लिया है। यूपी में सपा और बसपा दोनों ही मुख्य पार्टी के तौर पर देखी जाती है, इसी को ध्यान में रखते हुए दोनों ही पार्टियां चुनाव से पहले किसी भी गठबंधन से दूर रहती है और चुनाव के बाद गठबंधन के लिए अपने विकल्प खोले रखती हैं।

How congress ruined itself in UP and cleared the way for BSP

भाजपा की चुनौती

लेकिन 2017 के चुनाव में भाजपा इन दोनों ही पार्टियों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। इसकी बड़ी वजह है 2014 के चुनावी परिणाम जिसमें भाजपा को कुल 42.63 फीसदी वोट मिले। यहां गौर करने वाली बात यह है कि 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को महज 15 फीसदी वोट ही हासिल हुए थे।

ऐसे में पार्टी के लिए इस बार के चुनाव में बसपा और सपा के तिलिस्म को तोड़ना सबसे बड़ी चुनौती होगी। हाल में हुए तमाम राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है जहां कांग्रेस मुख्य विपक्षी पार्टी थी लेकिन स्थानीय पार्टियों के सामने भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है। वह फिर चाहे दिल्ली हो, बिहार हो या फिर जम्मू।

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English summary
How congress ruined itself in UP and cleared the way for BSP. How BJP can lead the election of 2017.
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