जौनपुर के ब्रह्म बाबा मंदिर पर लोग चढ़ाते हैं घड़ी, एक ट्रक ड्राइवर ने शुरू की थी परंपरा
यूपी के इस मंदिर की कहानी अपने आप में भारत की विभिन्न संस्कृतियों का अनूठा उदाहरण है। मंदिर में देवी-देवताओं को फूल, फल, प्रसाद आदि चीजें अर्पित की जाती हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश के जौनपुर जनपद में भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर देवता को दीवार घड़ी अर्पित करते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि घड़ी चढ़ाने से बाबा प्रसन्न होते हैं। इस परंपरा के कारण मंदिर के देवता को घड़ी वाले बाबा कहा जाता है। खास बात ये है कि इस मंदिर में हर धर्म के लोग पहुंचते हैं। मन्नत पूरी होने पर हर इंसान यहां घड़ी का चढ़ावा ही चढ़ाता है।
एक ट्रक चालक ने आरंभ की थी परंपरा
ब्रह्म बाबा का ये मंदिर जौनपुर जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर दूर मड़ियाहूं तहसील के जगरनाथपुर गांव में स्थित है। यहां पर भक्त बाबा से मन्नत मांगते हैं और पूर्ण होने पर दीवार घड़ी चढ़ाते हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि बाबा सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। घड़ी वाले बाबा के मंदिर में प्रतिदिन सैकड़ों भक्त पूजा करने आते हैं। लोगों को विश्वास है कि बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने वाला भक्त कभी खाली हाथ नहीं जाता। मंदिर परिसर में टंगी कीमती दीवार घड़ियों को कोई चुराना तो दूर छूने तक की भी हिम्मत नहीं करता। इस मंदिर पर घड़ी चढ़ाने की परंपरा लगभग 30 वर्ष पूर्व एक ट्रक चालक ने आरंभ की थी। स्थानीय लोगों का कहना है कि एक व्यक्ति ने ब्रह्म बाबा से प्रार्थना की थी कि यदि वह ट्रक चलाना सीख लेगा तो वह दीवार घड़ी चढ़ाएगा। उसकी मन्नत पूर्ण होते ही उसने दीवार घड़ी चढ़ाई और तब से ही ये परंपरा बन गई।
चढ़ावे के तौर पर कई दिलचस्प चीज़ों का किया जाता है इस्तेमाल
भारत,
सदियों
से
आध्यात्मिक
और
सांस्कृतिक
धरती
के
तौर
पर
जाना
जाता
रहा
है।
विश्व
की
सबसे
प्राचीन
संस्कृति
को
समृद्ध
बनाए
रखने
में
भारत
के
धर्मस्थलों
की
भी
अहम
भूमिका
रही
है।
आपने
भी
इन
धर्मस्थलों
या
मंदिरों
में
पारंपरिक
चढ़ावे
चढ़ाए
ही
होंगे
लेकिन
क्या
आप
जानते
हैं
कि
देश
के
कई
मंदिरों
में
चढ़ावे
के
तौर
पर
कई
दिलचस्प
चीज़ों
का
इस्तेमाल
किया
जाता
है
अलागर
मंदिर,
मदुरई
भगवान
विष्णु
के
इस
मंदिर
का
असली
नाम
कालास्हागर
था.
इस
मंदिर
में
लोग
भगवान
विष्णु
पर
कई
प्रकार
के
डोसा
और
अनाज
चढ़ाते
हैं.
अनाज
से
बनने
वाले
डोसे
का
सबसे
पहले
भोग
भगवान
विष्णु
को
लगाया
जाता
है
और
बाकी
डोसा,
भक्तों
में
प्रसाद
के
तौर
पर
बांट
दिया
जाता
है.
चाइनीज़
काली
मंदिर,
कोलकाता
कोलकाता
में
मौजूद
इस
मंदिर
को
यूं
ही
चाइनीज़
काली
मंदिर
नहीं
कहा
जाता.
दरअसल
चाइनाटाउन
के
लोग
इस
मंदिर
में
काली
मां
की
पूजा
करने
आते
थे
तब
से
इस
मंदिर
का
नाम
चाइनीज़
काली
मंदिर
पड़
गया.
पारंपरिक
मीठे
की
जगह
यहां
काली
मां
को
नूडल्स,
चाऊमिन
जैसी
चीजों
का
चढ़ावा
चढ़ता
है।
शहीद
बाबा
निहाल
सिंह
गुरुद्वारा,
जालंधर
इस
गुरुद्वारे
को
लोग
एयरप्लेन
गुरुद्वारे
और
हवाई
जहाज़
गुरुद्वारे
के
तौर
पर
भी
जानते
हैं.
दरअसल
यहां
आने
वाले
श्रद्धालु
खिलौने
वाले
एयरप्लेन्स
को
चढ़ावे
के
तौर
पर
इस्तेमाल
करते
हैं.
इनका
मानना
है
कि
इस
दिलचस्प
चढ़ावे
से
उनके
वीज़ा
अप्रूवल
में
दिक्कतें
नहीं
आएंगी
और
इन
लोगों
का
विदेश
जाने
का
सपना
पूरा
होगा।
यही
वजह
है
कि
इस
गुरुद्वारे
के
बाहर
कई
दुकानों
में
खिलौने
वाले
विमान
नज़र
आ
जाएंगे।
वैसे
तो
सूची
बहुत
ही
लम्बी
है
जैसे
की
आंध्र
प्रदेश
में
पनाकला
नरसिम्हा
मंदिर,
उज्जैन
में
काल
भैरव
नाथ
मंदिर,
तमिलनाडु
में
मुरुगन
मंदिर
और
लखनऊ
में
खबीस
बाबा
मंदिर
लेकिन
ब्रह्म
बाबा
का
ये
मंदिर
भी
कुछ
कम
दिलचस्प
नहीं
है।
मंदिर में आने वाले चढ़ावो का क्या होता है ?
भारत
के
धनी
मंदिरों
की
चर्चा
अक्सर
होती
है
लेकिन
मंदिर
अपनी
आमदनी
खर्च
कैसे
करते
हैं।
शिरडी
स्थित
साईं
बाबा
का
मंदिर
देश
के
सबसे
अमीर
मंदिरों
में
से
एक
है।
मंदिर
की
दैनिक
आय
60
लाख
रुपये
से
ऊपर
है
और
सालाना
आय
300
करोड़
रुपए
की
सीमा
पार
कर
चुकी
है।
शिरडी
वाले
साईं
बाबा
के
दरबार
में
जितनी
दौलत
है,
उतना
ही
साईं
मंदिर
से
दान
भी
किया
जाता
है।
शिरडी
साईं
बाबा
संस्थान
अस्पताल,
शिक्षा,
और
अन्य
सामाजिक
कार्यों
में
अपनी
आय
का
पचास
फीसदी
तक
खर्च
करता
है।
अब
तक
साईं
बाबा
संस्थान
ने
सुपर-स्पेशिलिटी
अस्पताल
के
अलावा
सड़क
निर्माण,
जल
प्रबंध
और
शिर्डी
हवाई
अड्डे
के
विकास
के
साथ
ही
मुख्यमंत्री
राहत
कोष
में
भी
दान
किया
है।
केरल
के
पद्मनाभ
मंदिर
से
लगभग
एक
लाख
करोड़
रुपए
से
भी
कहीं
अधिक
का
खजाना
मिला।
इसके
बाद
यह
देश
का
सबसे
धनी
मंदिर
बन
गया
है।
इसके
पहले
देश
के
सबसे
धनी
मंदिरों
की
लिस्ट
में
आंध्रप्रदेश
स्थित
तिरुपति
बालाजी
पहले
नंबर
पर
था।
इसका
सालाना
बजट
ढाई
हजार
करोड़
रूपये
का
है।
एक
अनुमान
के
मुताबिक
ट्रस्ट
के
पास
मुकेश
अंबानी
से
ज्यादा
संपत्ति
है।
तिरुपति
मंदिर
ट्रस्ट
कर्मचारियों
के
वेतन
और
भक्तों
की
सुविधाओं
पर
सालाना
695
करोड़
रुपए
खर्च
करता
है।
इसके
अलावा
चिकित्सा
सेवा,
शिक्षा
और
कमजोर
तबके
की
मदद
में
कमाई
का
एक
हिस्सा
खर्च
किया
जाता
है।
माता
वैष्णो
देवी,
गुरुवायूर
स्थित
श्री
कृष्ण
मंदिर
और
सबरीमाला
स्थित
भगवान
अयप्पा
मंदिर
भी
अपने
स्तर
पर
धर्मार्थ
कार्यों
में
आमदनी
का
एक
हिस्सा
खर्च
करते
हैं।
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