अफ़ग़ानिस्तान के किन-किन इलाकों तक फैल गया है तालिबान?
साल 2001 के बाद से तालिबान के कब्ज़े में इतना बड़ा इलाक़ा कभी नहीं रहा. जानिए किन-किन इलाकों तक पहुंच गया है तालिबान.
साल 2001 में सत्ता से बेदखल होने के बाद से यह पहला मौक़ा है जब अफ़ग़ानिस्तान में इतने बड़े क्षेत्र पर तालिबान का कब्ज़ा है. यह कब्ज़ा भी महज़ दो महीनों की गतिविधियों का नतीजा है.
महज़ दो महीने में तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के एक बड़े इलाक़े को अपने कब्ज़े में ले लिया है. साल 2001 के बाद से तालिबान के कब्ज़े में इतना बड़ा इलाक़ा कभी नहीं रहा है.
पिछले 20 वर्षों में अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण का नक्शा देखें तो यह लगातार बदलता रहा है.
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अमेरिकी सैनिकों की वापसी ने अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के कब्ज़े को निश्चित तौर पर बढ़ावा दिया है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने घोषणा की है कि अगस्त के आख़िर तक अफ़ग़ानिस्तान की धरती पर मौजूद सभी विदेशी सैनिकों की वापसी हो जाएगी.
बीबीसी अफ़ग़ान सेवा ने इस संबंध में जो शोध किया है उससे पता चलता है कि उत्तर, उत्तर-पूर्व और मध्य प्रांतों जैसे ग़ज़नी और मैदान वर्दक सहित पूरे देश में अब तालिबानी चरमपंथियों की स्थिति मज़बूत हुई है. वे कुंदूज़, हेरात, कंधार और लश्कर गाह जैसे प्रमुख शहरों पर भी कब्ज़ा करने के बेहद क़रीब हैं.
नियंत्रण से हमारा तात्पर्य उन ज़िलों से है जहां प्रशासनिक केंद्र, पुलिस मुख्यालय और अन्य सभी सरकारी संस्थान को तालिबान नियंत्रित करता है.
अमेरिकी सैनिकों और उनके नेटो और क्षेत्रीय सहयोगियों ने नवंबर 2001 में तालिबान को सत्ता से बेदख़ल कर दिया था.
इस समूह ने अमेरिका में 11 सितंबर 2001 को हुए हमलों के मास्टर माइंड ओसामा बिन लादेन और अल-क़ायदा के अन्य लड़ाकों को पनाह दी थी.
लेकिन इस क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय सैनिकों की मौजूदगी, अफ़ग़ान सुरक्षा बलों के लिए अरबों डॉलर के समर्थन और प्रशिक्षण के बावजूद तालिबान एकबार फिर संगठित हुआ और अब तो उसने धीरे-धीरे ही सही, लेकिन दूरदराज के भी कई क्षेत्रों में अपनी खोई ताक़त हासिल कर ली है.
तालिबान पारंपरिक तौर पर अपने मज़बूत गढ़ रहे दक्षिणी और दक्षिण पश्चिमी इलाक़ों कंधार, उत्तरी हेलमंड, उरूज़गान और जाबुल प्रांतों में ही प्रभावी था. लेकिन वो दक्षिणी फ़रयाब के पहाड़ी इलाक़ों और उत्तर-पूर्व में बदख़शां की पर्वत श्रंखला में भी मज़बूत था.
2017 में बीबीसी के एक शोध में कई ज़िलों में तालिबान के पूर्ण नियंत्रण का पता चला था. उस शोध से ये भी पता चला था कि तालिबान देश के कई दसूरे हिस्सों में भी सक्रिय है और कुछ इलाक़ों में हर सप्ताह हमले कर रहा था. इससे पूर्व के अनुमानों के मुताबिक तालिबान के कहीं अधिक ताक़तवर होने के संकेत मिले थे.
क्या तालिबान अपनी पकड़ मज़बूत कर रहा है?
आज तालिबान के नियंत्रण में 2001 के बाद से सबसे बड़ा इलाक़ा है, लेकिन ज़मीन पर हालात बहुत नाज़ुक हैं.
अफ़ग़ानिस्तान की सरकार कई ऐसे ज़िलों से स्वयं ही पीछे हट गई जहां वो तालिबान के दबाव को झेलने की स्थिति में नहीं थी. वहीं दूसरे ज़िलों पर तालिबान ने ताक़त के दम पर क़ब्ज़ा किया है.
कुछ इलाक़ों में जहां सरकारी बल फिर से संगठित हो सके हैं या स्थानीय मिलीशिया को संगठित किया है वहां सरकार ने गंवाए गए इलाक़े अपने नियंत्रण में लिए हैं या वहां भीषण लड़ाई चल रही है.
हालांकि अफ़ग़ानिस्तान से अधिकतर अमेरिकी सैनिक वापस लौट चुके हैं, कुछ सीमित संख्या में सैनिक काबुल में मौजूद हैं और अमेरिकी लड़ाकू विमानों ने हाल के दिनों में तालिबान के ठिकानों पर हवाई हमले भी किए हैं.
अफ़ग़ानिस्तान के सरकारी सैन्यबलों के नियंत्रण में वही शहर और ज़िले हैं जो या तो मैदनी इलाक़ों में है या फिर नदियों की घाटियों में है. यही वो इलाक़े भी हैं जहां देश की अधिकतर आबादी रहती है.
जिन इलाक़ों पर तालिबान का नियंत्रण है वहां आबादी बहुत कम है. कई जगह तो एक वर्ग किलोमीटर में पचास तक लोग ही रहते हैं.
सरकार का कहना है कि उन सभी शहरों में सैनिक भेजे गए हैं जहां तालिबान के आने का ख़तरा है. इसके अलावा देशभर में एक महीने का नाइट कर्फ्यू भी लगा दिया गया है ताकि तालिबान को आगे बढ़ने से रोका जा सके.
हालांकि तालिबान हेरात और कंधार जैसे शहरों के नज़दीक आ गए हैं, लेकिन वो अभी तक इनमें से एक पर भी नियंत्रण नहीं कर सके हैं, पर जिन इलाक़ों पर उन्होंने क़ब्ज़ा किया है उनके दम पर वो शांतिवार्ता में अपनी स्थिति को मज़बूत कर सकते हैं. यहां से उन्हें टैक्स भी मिल सकता है और अन्य ज़रिए भी हासिल हो सकते हैं.
इस साल अब तक हिंसा की वजह से रिकॉर्ड संख्या में आम नागरिक मारे गए हैं. संयुक्त राष्ट्र अब तक मारे गए 1600 नागरिकों के लिए तालिबान और दूसरे सरकार विरोधी तत्वों को ही ज़िम्मेदार मानता है. हिंसा की वजह से बड़ी तादाद में लोगों को घर भी छोड़ना पड़ रहा है. इस साल की शुरुआत से ही तीन लाख से अधिक लोग अपना घर छोड़ चुके हैं.
संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी मामलों की संस्था यूएनएचसीआर के मुताबिक बदख़शां, कुंदूज़, बल्ख़, बाग़लान और ताख़र में बड़ी तादाद में लोग विस्थापित हो रहे हैं. यहां बड़े इलाक़ों पर तालिबान ने नियंत्रण कर लिया है.
कुछ लोग पास के गांवों या ज़िलों की तरफ़ भाग जाते हैं और कुछ दिन बाद लौट आते हैं. हालांकि बहुत से ऐसे हैं जो लंबे समय तक विस्थापित रह रहे हैं.
समाचार एजेंसी एएफ़पी की रिपोर्टों के मतुबाकि तालिबान के हमलों की वजह से अफ़ग़ानिस्तान के सैनिकों और नागरिकों ने पड़ोसी देश ताजिकिस्तान में शरण ली है.
तालिबान ने जिन सीमा चौकियों पर क़ब्ज़ा किया है वहां से हो रहे व्यापार पर वही टैक्स वसूल रहे हैं.
हालांकि ये टैक्स कितना है इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है क्योंकि युद्ध की स्थिति की वजह से कारोबार भी कम हुआ है, लेकिन एक अनुमान के मुताबिक ईरान की सीमा पर स्थित इस्लाम क़ला से ही हर महीने 2 करोड़ डॉलर तक का टैक्स जुटाया जा सकता है.
आयात-निर्यात पर हुए असर की वजह से बाज़ार में चीज़ों के दाम भी बढ़ रहे हैं ख़ासकर ईंधन और रोज़मर्रा की ज़रूरतों की चीज़ें महंगी हो रही हैं.
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