तालिबान ने कहा, अफ़ग़ानिस्तान में महिलाएं शरीयत के हिसाब से काम कर सकती हैं
अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बीच लगातार असर बढ़ा रहे तालिबान ने कहा- बातचीत प्राथमिकता लेकिन युद्ध से परहेज़ नहीं.
अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिका और पश्चिमी देशों के सैनिकों की वापसी के बीच तालिबान ने देश में जारी संघर्ष को 'जिहाद' बताया है.
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा कि तालिबान ने 'क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ और राजद्रोह के विरुद्ध एक पवित्र जिहाद छेड़ी हुई है.'
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अफ़गानिस्तान से करीब 20 साल बाद अमेरिकी और पश्चिम देशों की सेना की वापसी हो रही है.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने सैनिकों की वापसी के लिए 11 सितंबर की समयसीमा तय की है. इस बीच अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है. इस संगठन ने बीते शुक्रवार (नौ जुलाई) को रूस की राजधानी मॉस्को में दावा किया था कि 'देश के 85 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र पर अब तालिबान का नियंत्रण है.'
तालिबान के सत्ता पर काबिज होने की आशंका के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने कहा था कि उन्हें 'तीन लाख मज़बूत अफ़ग़ानी सुरक्षाबलों पर भरोसा है.' तालिबान ने इसे बाइडन की निजी टिप्पणी बताते हुए कहा, "अगर तालिबान चाहें, तो दो हफ़्तों में अफ़ग़ानिस्तान का नियंत्रण संभाल सकते हैं."
दोनों रास्तों पर चलने को तैयार
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने 'टोलो न्यूज़' को दिए एक इंटरव्यू में दावा किया है कि तालिबान की प्राथमिकता बातचीत है, लेकिन ज़रूरत पड़ने पर उसे 'युद्ध का रास्ता' अपनाने से भी परहेज़ नहीं है.
मुजाहिद ने कहा, "हमारे पास दो रास्ते हैं. बेशक बातचीत हमारी प्राथमिकता है. और हम इसी की वक़ालत करते हैं. अगर ज़रूरत पड़ेगी और अगर हमारे सामने एक बार फिर चुनौतियाँ आती हैं और हमें मुसीबतों का सामना करना पड़ता है या हमें एक बार फिर 16 महीने पहले की तरह हत्याएँ देखनी पड़ती हैं, तो हम दूसरा रास्ता चुनने से भी परहेज़ नहीं करेंगे.जो युद्ध का है."
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अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का असर लगातार बढ़ रहा है और तालिबान के प्रतिनिधि रूस से लेकर ईरान तक अलग-अलग देशों से संपर्क भी कर रहे हैं. तालिबान के बढ़ते असर पर भारत, पाकिस्तान और चीन की भी नज़र है.
तालिबान के प्रतिनिधियों ने चीन को भरोसा दिया है कि उनका संगठन चीन को अफ़ग़ानिस्तान के 'दोस्त' के रूप में देखता है और उसे उम्मीद है कि पुनर्निमाण के काम में चीन के निवेश के मुद्दे पर जल्द से जल्द उनकी बातचीत हो सकेगी.
हिंसा पर कैसे लगेगी रोक?
तालिबान कई देशों के साथ रिश्ता बेहतर करने की कोशिश में है, लेकिन अफ़गानिस्तान में उसका असर बढ़ने से हिंसा की घटनाएँ भी बढ़ी हैं. इस बारे में जब तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद को याद दिलाया गया कि 'इस्लामिक सहयोग संगठन' समेत कई संगठनों और देशों ने कहा है कि मुस्लिम देशों में लोगों का 'ख़ून बहाना माफ़ी के लायक नहीं, इस पर उन्होंने सवाल किया, 'हम उनकी बात क्यों सुनें.'
मुजाहिद ने कहा, "जब हमारा जिहाद अमेरिका के ख़िलाफ़ शुरू हुआ था, तब क्या किसी ने भी जिहाद के लिए फ़तवा जारी किया था. बिल्कुल नहीं. यह ज़रूरत थी. तब आपका देश एक कब्ज़े में था. तो क्या अब युद्ध समाप्त करने के लिए हमें उनकी बात सुननी चाहिए?"
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उन्होंने आगे कहा,"अमेरिका का स्पष्ट दबाव है. जब जॉन निकोलसन काबुल में नेटो के कमांडर थे, तब उन्होंने कहा कि वे तालिबान पर धार्मिक और सैन्य दबाव बढ़ाएँगे ताकि वो उन्हें समझौते के लिए दवाब बना सकें."
"धार्मिक दबाव का मतलब, वे दुनिया भर के विद्वानों से तालिबान के विरुद्ध बात करने के लिए कहेंगे. जिससे तालिबान पर दबाव बनेगा. मौजूदा समय में कोई भी ऐसा धार्मिक नेता जो स्वतंत्र भी हो, ने ऐसा एक भी शब्द नहीं कहा है. हाँ सरकारी लोग कहते रहते हैं. उदाहरण के तौर पर हमने अल अक्सा मस्जिद के इमाम से बात की और पूछा कि क्या उन्होंने ऐसा कुछ कहा है, तो उन्होंने कहा कि नहीं उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा."
तालिबान की शांति योजना के बारे में मुजाहिद ने कहा, "हम अपनी योजना दिखाएँगे और चर्चा भी करेंगे. लेकिन ये मीडिया को बताने के लिए नहीं है."
महिलाओं पर सोच कितनी बदली
दो दशक पहले अफ़ग़ानिस्तान में जब तालिबान का शासन था, तब महिलाओं को तमाम पाबंदियों का सामना करना पड़ा था. महिलाओं की शिक्षा और उनके नौकरियाँ करने पर भी कई तरह की बंदिशें थीं. इस बार क्या स्थिति कुछ अलग होगी, तालिबान के बढ़ते असर के बीच ये सवाल भी पूछा जा रहा है.
इस पर तालिबान के प्रवक्ता मुजाहिद ने कहा, "यह शरियत से जुड़ा मामला है और मुझे इस मामले में बस इतना ही कहना है कि हम शरियत के सिद्धांतों को नहीं बदल सकते हैं."
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मुजाहिद ये दावा भी करते हैं कि कुछ तालिबान नेताओं का रहन-सहन और पहनावा बदला हुआ नज़र आ सकता है, लेकिन संगठन की सोच नहीं बदली है.
उन्होंने कहा, "असल बात यह है कि क्या हम बदल गए हैं? जैसे कुछ मुजाहिदिनी नेताओं ने अपनी दाढ़ी-मूँछ हटा दी है. सिर्फ़ ये दिखाने के लिए है कि वे बदल गए हैं. सूट-टाई पहनने लगे हैं लेकिन इस तरह का बदलाव ठीक नहीं है."
भारत की चिंता
भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण अहम योगदान दिया है और बड़ा निवेश किया है. लेकिन बदलते हालात में भारत स्थिति का आकलन करने में जुटा है.
भारत के विदेश मंत्रालय ने भी रविवार को बयान जारी किया. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, ''अफ़ग़ानिस्तान में बढ़ती सुरक्षा चिंताओं पर भारत की नज़र बनी हुई है. हमारे कर्मचारियों की सुरक्षा सबसे अहम है. कंधार में भारतीय वाणिज्य दूतावास बंद नहीं हुआ है. हालाँकि कंधार शहर के नज़दीक बढ़ती हिंसा के कारण भारतीय कर्मचारियों को वापस लाया गया है. यह अस्थायी क़दम है.''
उधर, पाकिस्तान भी बदली स्थिति को भाँपने में जुटा है. पाकिस्तान के मंत्री शेख़ राशिद अहमद के हवाले से 'टोलो न्यूज़' ने लिखा है, "नया, सभ्य अफ़ग़ान तालिबान" शांति वार्ता को प्राथमिकता देगा और पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में हर उस सरकार को स्वीकार करने के लिए तैयार है, जिसे अफ़ग़ानिस्तान के लोगों का समर्थन प्राप्त है."
वहीं, पाकिस्तान के 'डॉन न्यूज़' ने मंत्री के हवाले से बताया है, "तालिबान के साथ बातचीत सभी के हित में है. हम पड़ोसी देश अफ़ग़ानिस्तान में शांति का समर्थन करेंगे."
शेख़ राशिद अहमद ने अफ़ग़ानिस्तान के सभी नेताओं और तालिबानी नेताओं से संवाद को आगे बढ़ाने की अपील की है.
कॉपी: वात्सल्य राय और भूमिका
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