चीन को लेकर अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप दुविधा में क्यों है?
चीन के वीगर मुसलमानों की बात हो या फिर व्यापार समझौते की, राष्ट्रपति ट्रंप के रुख़ पर उठ रहे हैं सवाल.
चीन के साथ व्यापारिक समझौते को लेकर अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का स्पष्टीकरण सामने आया है. दरअसल व्हाइट हाउस के सलाहकार पीटर नवारो ने फ़ॉक्स न्यूज़ से बातचीत में कहा था कि दोनों देशों के बीच समझौता ख़त्म हो गया है.
लेकिन इसके ठीक बाद राष्ट्रपति ट्रंप ने ट्वीट पर कहा कि चीन के साथ व्यापारिक समझौता जारी है. ट्रंप ने ये भी उम्मीद जताई कि चीन के साथ समझौते की शर्तों पर दोनों देश क़ायम रहेंगे.
दूसरी ओर नवारो ने अपने इंटरव्यू में कहा था कि चीन के साथ व्यापारिक समझौते में उस समय अहम मोड़ आया जब व्हाइट हाउस को चीनी प्रतिनिधिमंडल के वॉशिंगटन से जाने के बाद कोरोना वायरस का पता चला. चीनी प्रतिनिधियों ने 15 जनवरी को व्यापार समझौते के पहले चरण पर दस्तख़त किए थे.
लेकिन ट्रंप के स्पष्टीकरण के बाद नवारो के सुर भी बदल गए और उन्होंने कहा कि उनकी बातों को ग़लत संदर्भ में पेश किया गया है.
दरअसल अमरीका में कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने के बाद चीन को लेकर राष्ट्रपति ट्रंप ने कई विवादित बयान दिए थे. कोरोना वायरस की उत्पति को लेकर भी चीन और अमरीका में शीर्ष स्तर पर बयानबाज़ी हुई थी. चाहे वो हॉन्गकॉन्ग का मामला हो या ताइवान का, अमरीका ने खुलकर चीन की आलोचना की. चीन ने हर आरोपों से इनकार किया.
अब चीन के साथ व्यापारिक समझौते को लेकर डोनाल्ड ट्रंप ने ये भी कह दिया है कि वीगर मुसलमानों को लेकर चीन के अधिकारियों पर पाबंदी इसलिए नहीं लगाई गई, क्योंकि वे व्यापार समझौते के बीच में थे.
गंभीर आरोप
ट्रंप ने एक्सियोस न्यूज़ साइट को बताया कि बड़े समझौते को हासिल करने के मतलब ये था कि वे अतिरिक्त पाबंदियाँ नहीं लगा सकते थे.
चीन पर शिनजियांग प्रांत में वीगर मुसलमानों और अन्य जातीय समूहों को कैंप में रखने और प्रताड़ित करने का आरोप है. हालाँकि चीन इन आरोपों से इनकार करता रहा है.
ट्रंप के पूर्व सहयोगी जॉन बोल्टन की किताब में ट्रंप की चीन नीति को लेकर कई गंभीर आरोप लगे थे.
बोल्टन ने अपनी किताब में आरोप लगाया था कि पिछले साल शिखर सम्मेलन के दौरान ट्रंप ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को पश्चिमी इलाक़े में कैंप्स बनाने पर सहमति दी थी. बोल्टन के मुताबिक़ ट्रंप ने कहा था कि ये बिल्कुल सही चीज़ है. हालांकि ट्रंप इन आरोपों से इनकार करते हैं.
न्यूज़ साइट एक्सियोस के मुताबिक़ जब राष्ट्रपति ट्रंप से ये पूछा गया कि उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के अधिकारियों पर अतिरिक्त पाबंदियाँ क्यों नहीं लगाई, तो ट्रंप का कहना था- दरअसल हम एक बड़े व्यापार समझौते के बीच में थे. मैंने चीन पर व्यापार शुल्क लगाया, जो किसी भी पाबंदी से ज़्यादा बड़ा था.
व्यापार समझौते के बीच अमरीका ने 360 अरब डॉलर का व्यापार शुल्क चीनी सामान पर लगाया, जवाब में चीन ने भी अमरीकी उत्पादों पर 110 अरब डॉलर से ज़्यादा का व्यापार शुल्क लगा दिया था. ये जनवरी में पहले चरण के व्यापार समझौते से पहले शुरू हुआ था.
ट्रंप से बोल्टन से उस आरोप के बारे में पूछा गया, जिसमें बोल्टन ने कहा था कि उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से अमरीकी किसानों से कृषि उत्पाद ख़रीदकर चुनाव जीतने में मदद मांगी थी.
इस पर ट्रंप ने कहा, "नहीं, बिल्कुल नहीं. मैंने सबसे यही कहा कि हम सिर्फ़ राष्ट्रपति शी जिनपिंग से समझौता नहीं करते. हम चाहते हैं कि मेरे देश के साथ व्यापार हो. जो देश के लिए अच्छा है, वो मेरे लिए भी अच्छा है. लेकिन मैं घूम-घूमकर ये नहीं कहूँगा कि मुझे चुनाव जीतने में मदद करो. मैं ऐसा क्यों करूँगा?"
शिनजियांग में चीन पर क्या आरोप है?
चीन पर आरोप है कि वो शिनजियांग प्रांत में मुस्लिमों की संस्कृति को तबाह करना चाहता है. उन पर पाबंदियाँ हैं और प्रताड़ना के भी आरोप हैं.
हालांकि चीन का कहना है कि इस स्वायत्त क्षेत्र में कैंप्स दरअसल वोकेशनल एजुकेशन सेंटर हैं.
मार्च में आई एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि हज़ारों वीगर मुसलमानों को चीन के अलग-अलग हिस्सों में फ़ैक्टरियों में काम के लिए ले जाया जाता है.
चीन की सरकारी मीडिया का कहना है कि काम के लिए जाना लोगों का ख़ुद का फ़ैसला होता है.
चीन को लेकर बदलता रहता है ट्रंप का गणित- बीबीसी संवाददाता बारबारा प्लेट अशर का विश्लेषण
वर्ष 2018 में अमरीका वीगर मुसलमानों के कैंप्स को लेकर चीनी अधिकारियों और संस्थाओं पर पाबंदी लगाने वाला था. कई सांसदों ने पार्टी लाइन से हटकर इसका समर्थन किया. साथ ही विदेश मंत्रालय और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में भी इसके लिए समर्थन था.
लेकिन जैसा कि ट्रंप ने बताया कि चीन के साथ व्यापार समझौते को लेकर ऐसा नहीं हो पाया.
इस साल मई में अमरीकी कांग्रेस में वीगर मुसलमानों के मानवाधिकारों को लेकर लाए गए विधेयक के समर्थन में वोट किया. हालांकि ट्रंप ने इस पर हस्ताक्षर कर दिए और ये क़ानून भी बन गया. लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं है कि ट्रंप इस पर कार्रवाई करेंगे या नहीं.
ये माना जा रहा था कि चीन के साथ ऐतिहासिक आर्थिक समझौते की गूँज ट्रंप के चुनाव अभियान में सुनाई देगी, लेकिन कोरोना महामारी को लेकर तनाव ने शायद ये गणित बदल दे. अमरीका कह चुका है कि कोरोना संक्रमण के बारे में शुरू में ख़बरें छुपाने के कारण वो चीन को दंडित कर सकता है.
हॉन्गकॉन्ग में नए क़ानून को लेकर अमरीका चीन की आलोचना करता रहा है. चीन के साथ तनाव अमरीकी चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बन गया है. वीगर मुसलमानों के मामले पर कोई कार्रवाई का असर भी चुनाव पर पड़ सकता है.
अमरीका ने अभी तक क्या किया है?
ट्रंप सरकार पर आरोप है कि उसने चीन में मानवाधिकार को लेकर खुलकर ज़्यादा कुछ नहीं कहा है.
हालांकि ट्रंप सरकार के कई लोग चीन में वीगर मुसलमानों के साथ व्यवहार को लेकर चीन की खुलकर आलोचना करते रहे हैं. विदेश मंत्रालय ने चीन पर दुर्व्यवहार और प्रताड़ना के आरोप भी लगाए हैं.
शिनजियांग मामले पर वाणिज्य मंत्रालय ने चीनी अधिकारियों पर कुछ पाबंदियाँ भी लगाई हैं. चीन की कुछ कंपनियों पर आयात से संबंधित पाबंदियाँ भी लगाई गई हैं. चीन के कुछ अधिकारियों पर वीज़ा पाबंदियाँ हैं. लेकिन वित्त मंत्रालय की ओर से कोई बड़ी और कड़ी पाबंदियाँ नहीं लगाई गई हैं.
पिछले सप्ताह राष्ट्रपति ट्रंप ने शिनजियांग मामले पर चीन के अधिकारियों पर पाबंदियाँ लगाने को लेकर अधिकृत करने वाले विधेयक पर दस्तख़त तो कर दिए लेकिन उन्होंने ये कहा कि इसके इस्तेमाल पर वो फ़ैसला करेंगे.
चीन का 'प्रोपेगैंडा'
सोमवार को अमरीका ने चार और चीनी मीडिया संस्थाओं को विदेशी डिप्लोमेटिक मिशन की श्रेणी में डाल दिया.
अमरीकी विदेश मंत्रालय का कहना है कि इसका मतलब ये है कि ये संस्थाएँ मीडिया आउटलेट्स नहीं बल्कि चीन का प्रोपेगैंडा चलाने वाली संस्थाएँ हैं.
इनमें हैं- चायना सेंट्रल टेलीविज़न, चायना न्यूज़ सर्विस, पीपुल्स डेली और ग्लोबल टाइम्स.
इस श्रेणी में डालने का मतलब ये है कि इन्हें अमरीका में अपने समभी कर्मचारियों की सूचना सरकार को देनी होगी. हालांकि रिपोर्टिंग करने में कोई पाबंदी नहीं होगी.
इसी साल के शुरू में अमरीका ने पाँच अन्य चीनी मीडिया संस्थानों को इस श्रेणी में डाला था. इनमें चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ भी शामिल थी.
इन मीडिया संस्थानों को अमरीका में काम करने वाले अपने कर्मचारियों की संख्या में कटौती करने को कहा गया था.
जवाब में चीन ने भी वॉल स्ट्रीट जरनल, न्यूयॉर्क टाइम्स और वॉशिंगटन पोस्ट के पत्रकारों को निलंबित कर दिया था.