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बुद्ध पूर्णिमा पर पीएम मोदी का नेपाल दौरा, भारतीय राजनीति के लिए महत्वपूर्ण क्यों है ? जानिए

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काठमांडू, 16 मई: 2020 के सीमा विवाद के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुद्ध पूर्णिमा के शुभ अवसर पर अपनी चार दिवसीय नेपाल यात्री की शुरुआत भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी से की है। नेपाल की पिछली केपी शर्मा ओली की सरकार पर चीन का कुछ ज्यादा ही असर था, जिसने अपना एक नया राजनीतिक नक्शा जारी करके दोनों देशों के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक रिश्ते में एक रेखा खींचने की कोशिश की थी। लेकिन,इस नेपाल दौरे की शुरुआत पीएम मोदी ने जिस अंदाज में की है, वह दोनों देशों की आपसी घनिष्ठता को तो चिन्हित करता ही है, अगर भारत की आंतरिक राजनीति को देखें तो लगता है कि इसके जरिए एक बहुत बड़े वर्ग को सीधा सियासी संदेश देने की भी कोशिश है।

बुद्ध पूर्णिमा पर पीएम मोदी के नेपाल दौरे के मायने

बुद्ध पूर्णिमा पर पीएम मोदी के नेपाल दौरे के मायने

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में नेपाल के पहले दौरे की शुरुआत करने से पहले भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण स्थल यूपी के कुशीनगर जाकर उनका आशीर्वाद लेने के साथ की है। यहां से वह नेपाल में स्थित भगवान बुद्ध की जन्म स्थली लुंबिनी पहुंचे हैं, जहां आने का निमंत्रण नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने दिया था। वहां वे प्रसिद्ध मायादेवी मंदिर भी पहुंचे हैं। दोनों प्रधानमंत्रियों ने यहां लुंबिनी मठ क्षेत्र के अंदर 'बौद्ध संस्कृति और विरासत केंद्र' की आधारशिला भी रखी है। पीएम मोदी के दोनों कार्यकाल को मिलाकर यह उनका पांचवां नेपाल दौरा है और दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों के लिए बहुत ही अहम है, खासकर नेपाल के पिछले केपी ओली प्रधानमंत्री के कार्यकाल में जिस तरह से एक मतभेद की स्थिति पैदा हो गई थी। लेकिन, हम यहां पीएम मोदी के इस नेपाल दौरे के भारतीय राजनीति के लिहाज से अहमियत समझने की कोशिश कर रहे हैं।

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बौद्ध धर्म और दलित

बौद्ध धर्म और दलित

बीजेपी की सरकार लगातार भारत में ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर बौद्ध संस्कृति को बढ़ावा देने की कोशिशों में जुटी रही है। माना जा रहा है कि इसके पीछे दलितों का समर्थन पाना है, जो बौद्ध धर्म से काफी लगाव रखता आया है। इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि डॉक्टर भीम राव अंबेडकर 1956 में बौद्ध बन गए थे, जो आज की तारीख में दलित समाज के सबसे प्रतिष्ठित शख्सियत हैं। उनकी वजह से बौद्ध धर्म के प्रति दलितों का उच्च सम्मान है। एक जाने-माने बौद्ध भिक्षु अजाहिन प्रशील रत्ना गौतम ने एक बार इंडियन एक्सप्रेस से कहा था, 'अंबेडकर ने भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित किया, और भारत में कई बौद्ध अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए उनके प्रति आभार जताते हैं।'

बीएसपी की कमजोर पड़ रही राजनीति में बीजेपी की उम्मीद

बीएसपी की कमजोर पड़ रही राजनीति में बीजेपी की उम्मीद

देश के सबसे बड़े आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी खुद को दलित वोट का सबसे बड़ा दावेदार मानती आ रही थी। लेकिन, हाल में संपन्न राज्य विधानसभा चुनाव में उसका यह तिलिस्म टूटता नजर आया है। इसलिए अगर राजनीतिक चश्मे से देखें तो पीएम मोदी के इस नेपाल दौरे में भाजपा के लिए दलित वोट बैंक को लेकर काफी उम्मीदें हो सकती हैं। दलित वोट बैंक के आधार पर बीएसपी सुप्रीमो मायावती अलग-अलग समय में चार बार यूपी की मुख्यमंत्री बन चुकी हैं। उनसे पहले 80 के दशक में कांग्रेस देश के सबसे बड़े सूबे में राज करने के लिए दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण वोटों के दम पर सत्ता का करिश्मा दिखा चुकी है। लेकिन,आज की तारीख में बीजेपी दलितों को लेकर काफी संभावनाएं देख रही है।

भगवान बुद्ध में बीजेपी को दिख रही हैं संभावनाएं!

भगवान बुद्ध में बीजेपी को दिख रही हैं संभावनाएं!

बीएसपी को 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड लहर में भी 22.2% वोट मिले थे और उसके 19 उम्मीदवार चुनाव जीते थे। लेकिन, इस बार भारतीय जनता पार्टी थोड़ी दबाव में थी, फिर भी बीएसपी को सिर्फ 12.9% वोट ही मिल पाए और उसका इकलौता उम्मीदवार ही विधानसभा पहुंच पाया। जबकि, यूपी में अनुसूचित जातियों की आबादी में अकेले जाटव करीब 12से 14% हैं, जिनसे मायावती खुद आती हैं। 5 साल में 10% वोट बैंक का हाथ से निकलना, दलितों की पार्टी कहलाने वाली बसपा के लिए चिंता की वजह है; और बुद्ध पूर्णिमा के शुभ अवसर पर पीएम मोदी का भगवान बुद्ध से जुड़े स्थलों पर जाना, उससे पूरी तरह से अलग करके नहीं देखा जा सकता है।

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भगवान बुद्ध से जुड़े बाकी कार्यक्रम

भगवान बुद्ध से जुड़े बाकी कार्यक्रम

पीएम मोदी अपने पहले कार्यकाल में 2014 में दो बार और 2018 में भी दो बार नेपाल की यात्रा पर आ चुके हैं। 2018 में यानी 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने जनकपुर धाम और मुक्तिनाथ धाम जैसे तीर्थ स्थलों और सांस्कृतिक धरोहरों की यात्रा की थी। उन्होंने सोमवार को भगवान बुद्ध की जन्मस्थली का दौरा किया है तो दिल्ली में उनकी सरकार के महत्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट में भी गौतम बुद्ध को समर्पित एक संग्रहालय को शामिल किया गया है। 2016 में वाराणसी में '5वां अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन' और बोध गया में भी हिंदू-बौद्ध टकराव को दूर करने के लिए भी एक सम्मेलन आयोजित किया जा चुका है। इसी तरह से 2017 में राजगीर में एक '21वीं शताब्दी में बौद्ध धर्म ' पर कॉन्फ्रेंस भी आयोजित हो चुका है। यही नहीं प्राचीन विश्व प्रसिद्ध नालंदा यूनिवर्सिटी के बगल में आधुनिक नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना भी भगवान बुद्ध की शिक्षा को फिर से स्थापित करने की दिशा में बड़ा कदम है। लेकिन, सबके तार उस एक बहुत बड़े समाज से जुड़ रहे हैं, जो भारत की राजनीति में काफी अहम साबित हो रहे हैं।

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English summary
A big message for India's Dalit politics is hidden in PM Modi's visit to Nepal on Buddha Purnima. Dr Ambedkar was a follower of Lord Buddha and Dalits consider him their greatest messiah.
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