क्विक अलर्ट के लिए
नोटिफिकेशन ऑन करें  
For Daily Alerts
Oneindia App Download

इराक़ के शिया-सुन्नियों का रुख़ अमरीका को लेकर क्यों पलट गया

साल 2003 के दिसंबर महीने में अमरीका ने सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदख़ल किया तो वहां के शिया मुसलमानों ने जश्न मनाया था. शियाओं को लगा था कि अमरीका ने सद्दाम हुसैन को हटाकर उनकी मनोकामना पूरी कर दी. इराक़ के वर्तमान प्रधानमंत्री आदिल अब्दुल महदी तब शक्तिशाली शिया पार्टी के नेता थे. सद्दाम के अपदस्थ होने के बाद वो एसयूवी गाड़ी पर सवार होकर एक जुलूस में निकले थे. 

By रजनीश कुमार
Google Oneindia News
ईरान
Getty Images
ईरान

साल 2003 के दिसंबर महीने में अमरीका ने सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदख़ल किया तो वहां के शिया मुसलमानों ने जश्न मनाया था. शियाओं को लगा था कि अमरीका ने सद्दाम हुसैन को हटाकर उनकी मनोकामना पूरी कर दी.

इराक़ के वर्तमान प्रधानमंत्री आदिल अब्दुल महदी तब शक्तिशाली शिया पार्टी के नेता थे. सद्दाम के अपदस्थ होने के बाद वो एसयूवी गाड़ी पर सवार होकर एक जुलूस में निकले थे. हर तरफ़ से वो बॉडीगार्ड से घिरे थे और जीत का जश्न मना रहे थे.

इसी जश्न में उन्होंने लंदन के पत्रकार एंड्र्यू कॉकबर्न से कहा था, ''सब कुछ बदल रहा है. लंबे समय से शिया समुदाय के लोग इराक़ में बहुसंख्यक होने के बावजूद अल्पसंख्यकों की तरह रह रहे थे. अब शियाओं के हाथ में इराक़ की कमान आएगी.''

2003 के बाद से अब तक इराक़ के सारे प्रधानमंत्री शिया मुसलमान ही बने और सुन्नी हाशिए पर होते गए. 2003 से पहले सद्दाम हुसैन के इराक़ में सुन्नियों का ही वर्चस्व रहा. सेना से लेकर सरकार तक में सुन्नी मुसलमानों का बोलबाला था.

इराक़
Getty Images
इराक़

कैसे पलट गई बाज़ी?

सद्दाम के दौर में शिया और कुर्द हाशिए पर थे. इराक़ में शिया 51 फ़ीसदी हैं और सुन्नी 42 फ़ीसदी लेकिन सद्दाम हुसैन के कारण शिया बहुसंख्यक होने के बावजूद बेबस थे. जब अमरीका ने मार्च 2003 में इराक़ पर हमला किया तो सुन्नी अमरीका के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे और शिया अमरीका के साथ थे.

17 साल बाद अब समीकरण फिर से उलटता दिख रहा है. इसी महीने इराक़ की संसद में एक प्रस्ताव पास किया गया कि अमरीका अपने सैनिकों को वापस बुलाए. इस प्रस्ताव का इराक़ के प्रधानमंत्री अब्दुल महदी ने भी समर्थन किया. सबसे दिलचस्प ये रहा कि संसद में इस प्रस्ताव का सुन्नी और कुर्द सांसदों ने बहिष्कार किया और शिया सांसदों ने समर्थन किया.

संसद में बहस के दौरान सुन्नी स्पीकर ने शिया सांसदों से कहा था कि वो इराक़ के भीतर फिर से हिंसा और टकराव को लेकर सतर्क रहें. मोहम्मद अल-हलबूसी ने कहा था, ''अगर कोई ऐसा क़दम उठाया गया तो इराक़ के साथ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय वित्तीय लेन-देन बंद कर देगा. ऐसे में हम अपने लोगों की ज़रूरतें भी पूरी नहीं कर पाएंगे.''

हालांकि ये सवाल भी उठ रहे हैं कि इराक़ की वर्तमान सरकार के पास वो अधिकार नहीं है कि अमरीकी सैनिकों को वापस जाने पर मजबूर करे. अब्दुल महदी केयरटेकर प्रधानमंत्री हैं.

लेकिन एक बात स्पष्ट है कि सुन्नी चाहते हैं कि अमरीकी सैनिक इराक़ में रहें और शिया चाहते हैं कि अमरीका अपने सैनिकों को वापस बुलाए. 2003 में सुन्नी इराक़ में अमरीका के ख़िलाफ़ लड़ रहे थे और अब इन्हें लग रहा है कि अमरीका यहां से गया तो वो सुरक्षित नहीं रहेंगे.

दूसरी तरफ़, जिस अमरीका ने सद्दाम हुसैन को हटाया वही अमरीका अब इराक़ में शिया मुसलमानों को ठीक नहीं लग रहा. तो क्या अमरीका के प्रति इराक़ के भीतर सुन्नी मुसलमानों के मन में सहानुभूति पैदा हो रही है और अमरीका भी अब सुन्नियों का साथ देगा? दूसरा सवाल यह कि इराक़ के भीतर पूरा समीकरण कैसे उलट गया?

इराक़
Getty Images
इराक़

इराक़ के सुन्नी अमरीका को क्यों चाहने लगे?

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पश्चिम एशिया अध्ययन केंद्र के प्रोफ़ेसर एके पाशा कहते हैं, ''इराक़ के भीतर समीकरण वाक़ई बदल गया है. सद्दाम हुसैन को हटाने के बाद अमरीका ने सुन्नी मुसलमानों से वादा किया था कि उन्हें इराक़ की सेना में शामिल किया जाएगा लेकिन अमरीका ने ये वादा निभाया नहीं. सद्दाम के बाद इराक़ की सरकार और सेना में शिया मुसलमानों का दबदबा बढ़ गया. अगर सुन्नियों को भी रखा जाता तो संतुलन रहता. इस संतुलन के नहीं होने की वजह से शिया बहुल देश ईरान का प्रभाव इराक़ की सरकार और सेना में बढ़ा और यह अमरीका के हक़ में नहीं रहा.''

प्रोफ़ेसर एके पाशा कहते हैं, ''जो हालत सद्दाम के इराक़ में शिया मुसलमानों की थी अब वैसी ही शिया दबदबे वाली इराक़ी सरकार में सुन्नियों की हो गई है. इराक़ की सरकार और सेना में शियाओं का नियंत्रण है. उत्तरी इराक़ में कुर्दों का अपना स्वायत्त इलाक़ा है जबकि सुन्नी राजनीतिक रूप से बिल्कुल अनाथ हो गए हैं.''

इराक़ के भीतर सुन्नियों को लगता है कि अगर अमरीकी सेना वापस चली गई तो उनके लिए मुश्किल खड़ी हो जाएगी. ब्रिटिश अख़बार टेलिग्राफ़ यूके से सद्दाम की ख़ुफ़िया सर्विस में काम कर चुके 55 साल के महमूद ओबैदी ने कहा है, ''अगर अमरीकी सेना वापस जाती है तो इराक़ में सुन्नियों के लिए यह डरावना होगा. अमरीका अतीत में हमारा दुश्मन रहा है लेकिन ईरान की तुलना में वो ठीक है. अगर अमरीका गया तो हम ईरानियों के सस्ते शिकार साबित होंगे. हमलोग अमरीका के कोई प्रशंसक नहीं हैं लेकिन जब तक यहां ईरान हमें अकेला नहीं छोड़ देता है तब तक अमरीका को नहीं जाना चाहिए.''

इराक़
Getty Images
इराक़

शिया, सुन्नी और कुर्दों में बँटा इराक़

एके पाशा को लगता है कि इराक़ में विभाजन बढ़ेगा. वो कहते हैं, ''कुर्दों का अपना स्वायत्त इलाक़ा है ही. शियाओं की सरकार और सेना है. सुन्नी भी अपना स्वायत्त इलाक़ा लेंगे. भविष्य में ऐसा ही होता दिख रहा है. इराक़ के शिया ईरान के साथ रहेंगे और सुन्नी सऊदी अरब के साथ जाएंगे.''

मध्य-पूर्व की राजनीति के जानकार क़मर आग़ा को भी लगता है कि इराक़ में अमरीका को ईरान से लड़ने के लिए सुन्नियों के साथ ही जाना होगा. वो कहते हैं, ''सद्दाम हुसैन होते तो इस्लामिक स्टेट का जन्म नहीं होता. अगर इराक़ की सरकार में सुन्नियों को भी प्रतिनिधित्व मिला होता तो इस्लामिक स्टेट का उभार इतना भयावह नहीं हुआ होता. इस्लामिक स्टेट से लड़ाई ईरान ने भी लड़ी और अमरीका ने भी. एक लड़ाई से दोनों के अलग-अलग हित जुड़े थे. इस्लामिक स्टेट से लड़ाई लगभग ख़त्म हो चुकी है लेकिन अमरीका के लिए मध्य-पूर्व में सबसे बड़ी चुनौती अब ईरान है. इराक़ की शिया सरकार और ईरान के संबंध को अलग करना अमरीका के लिए बड़ी चुनौती है. अब अमरीका कोशिश करेगा कि इराक़ की राजनीति में केवल शियाओं का ही वर्चस्व ना रहे. ऐसे में अमरीका इराक़ में सुन्नियों का पक्ष लेता दिख सकता है.''

इराक़ की सरकार के अधिकारियों का कहना है कि ट्रंप प्रशासन ने चेतावनी दी है कि ईरानी जनरल क़ासिम सुलेमानी के मारे जाने के विरोध में अगर अमरीकी सैनिकों को वहां से हटने पर मजबूर किया गया तो इराक़ के बैंक ख़ज़ाने को ज़ब्त कर लिया जाएगा.

ट्रंप
Getty Images
ट्रंप

अमरीका की धमकी

अमरीकी विदेश मंत्रालय ने चेतावनी देते हुए कहा है कि अमरीका फ़ेडरल रिज़र्व बैंक में इराक़ के केंद्रीय बैंक के अकाउंट को अपने नियंत्रण में ले लेगा. अगर अमरीका ने ऐसा किया तो इराक़ की ख़राब अर्थव्यवस्था और बदतर हालत में पहुंच जाएगी.

बाक़ी के देशों की तरह इराक़ का भी देश के वित्तीय मामलों और तेल की बिक्री से हासिल होने वाले राजस्व के प्रबंधन के लिए न्यूयॉर्क फेड में अकाउंट है. अगर अमरीका ने इराक़ की इस अकाउंट तक पहुंच को प्रतिबंधित कर दिया तो वो राजस्व का इस्तेमाल नहीं कर पाएगा और नक़दी का संकट भयावह हो जाएगा. इराक़ की पूरी अर्थव्यवस्था समस्याग्रस्त हो जाएगी.

इराक़ की संसद ने इसी महीने इराक़ में मौजूद क़रीब 5,300 अमरीकी सैनिकों को वापस भेजने के लिए एक प्रस्ताव पास किया था. हालांकि यह प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं था लेकिन ईरान से भारी तनाव के बीच इराक़ में इस तरह का प्रस्ताव पास होना राष्ट्रपति ट्रंप को रास नहीं आया और उन्होंने इराक़ पर प्रतिबंध लगाने की धमकी दे डाली.

अमरीका ने इराक़ से सेना वापसी को सिरे से ख़ारिज कर दिया है. अमरीकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने कहा है कि इराक़ में अमरीकी सैन्य ठिकाना इस्लामिक स्टेट के ख़िलाफ़ काम करता रहेगा. हालांकि विदेश मंत्रालय ने फेडरल रिज़र्व में इराक़ के अकाउंट को ज़ब्त करने की चेतावनी पर कोई टिप्पणी नहीं की.

वॉल स्ट्रीट जर्नल के अनुसार अमरीका ने इराक़ के केंद्रीय बैंक के अकाउंट को ज़ब्त करने की चेतावनी इराक़ी प्रधानमंत्री को फ़ोन पर दी थी.

इराक़
Getty Images
इराक़

क्या करेगा इराक़?

न्यूयॉर्क का फेडरल रिज़र्व बैंक अमरीकी प्रतिबंध क़ानून के तहत किसी भी देश के खाते को ज़ब्त कर सकता है. इराक़ कोशिश कर रहा है कि अमरीका को बिना ग़ुस्सा दिलाए सैनिकों की वापसी की बात आगे बढ़ाए. इराक़ को लगता है कि ईरान समर्थक नेताओं और सैन्य गुटों के दबाव के बावजूद वो अमरीका से दुश्मनी मोल ना ले और संवााद से विवादों का समाधान करे.

सीएनएन से इराक़ के एक सीनियर नेता ने कहा कि सौहार्दपूर्ण माहौल में भी तलाक़ होता है तो बच्चों, पालतू जानवरों, फर्निचरों और पौधों को लेकर चिंता लगी रहती है क्योंकि इन सबसे भी एक किस्म का भावनात्मक रिश्ता होता है. दूसरी ओर इराक़ के प्रधानमंत्री अब्दुल महदी ने भी कहा है कि अमरीकी सैनिकों की वापसी बिना किसी टकराव के होनी चाहिए.

अमरीका में इराक़ के केंद्रीय बैंक के अकाउंट को अपने क़ब्ज़े में लेना महज़ सैद्धांतिक ख़तरा नहीं है बल्कि 2015 में ऐसा हो चुका है. अमरीका ने न्यूयॉर्क के फ़ेडरल रिज़र्व बैंक में इराक़ी अकाउंट तक इराक़ की सरकार की पहुंच कुछ हफ़्तों को लिए रोक दी थी. तब इस बात की चिंता थी कि इस अकाउंट के पैसे का इस्तेमाल ईरानी बैंक और इस्लामिक स्टेट के अतिवादी कर रहे हैं. इराक़ की अर्थव्यवस्था पर न्यूयॉर्क फ़ेड का नियंत्रण बहुत प्रभावी है.

अमरीका का मानना है कि इराक़ में प्रधानमंत्री अब्दुल महदी के शासन में ईरान का प्रभाव बढ़ा है. ऐसे में अमरीकी सैनिकों की वापसी होती होती है तो ईरान का प्रभाव और बढ़ेगा. ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी भी कई बार दोहरा चुके हैं कि अमरीका को इस इलाक़े से निकल जाना चाहिए.

ईरान
Getty Images
ईरान

अमरीका की एक चिंता यह भी है कि अमरीकी सैनिकों की वापसी से अमरीकी करंसी डॉलर की सुलभता ईरानी खातों तक बढ़ेगी. अमरीका ने जब से ईरान पर प्रतिबंध लगाया है तब से उसका एक लक्ष्य ये भी रहा है कि ईरान का विदेशी मुद्रा भंडार बिल्कुल न के बराबर कर दिया जाए.

दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अमरीकी डॉलर का ही इस्तेमाल होता है. इसके साथ ही ईरानी इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कोर को भी अमरीका और उसके सहयोगी देशों के मध्य-पूर्व में सैन्य अभियान के ख़िलाफ़ अपने अभियान के लिए डॉलर की ज़रूरत पड़ती है. अगर इस्लामिक रिवॉल्युशनरी गार्ड कोर को डॉलर नहीं मिलेंगे तो सैन्य अभियान चलाना मुश्किल होगा.

न्यूयॉर्क फ़ेड दुनिया भर के 250 केंद्रीय बैंकों, सरकारों और अन्य सरकारी वित्तीय संस्थानों को वित्तीय सेवाएं देता है. न्यूयॉर्क फ़ेड ने कभी सार्वजनिक रूप से नहीं बताया कि इराक़ के केंद्रीय बैंक के अकाउंट में कितना पैसा है. लेकिन इराक़ के सेंट्रल बैंक के अनुसार 2018 के अंत में इराक़ ने फेडरल रिज़र्व में एक ही दिन में तीन अरब डॉलर जमा किए थे.

BBC Hindi
Comments
देश-दुनिया की ताज़ा ख़बरों से अपडेट रहने के लिए Oneindia Hindi के फेसबुक पेज को लाइक करें
English summary
Why did Iraq's Shia-Sunnis turn back on America?
तुरंत पाएं न्यूज अपडेट
Enable
x
Notification Settings X
Time Settings
Done
Clear Notification X
Do you want to clear all the notifications from your inbox?
Settings X
X