जानिए कौन थीं भारतीय मूल की जासूस नूर इनायत खान जो छा सकती हैं ब्रिटिश नोटों पर
नई दिल्ली। ब्रिटिश महिला जासूस और भारतीय मूल की नूर इनायत खान को ब्रिटेन में 50 पाउंड के नोट पर जल्द ही देखा जा सकता है। दूसरे विश्व युद्ध में मुस्लिम महिला जासूस नूर इनायत खान की फोटो नोट पर छापने के लिए वहां के सांसदों से लेकर ऑनलाइन पिटीशन से जबरदस्त समर्थन मिल रहा है। बैंक जल्द ही एक नाम की घोषणा करेगी, लेकिन नूर इनायत खान के लिए कुछ कैंपेन चलाए जा रहे हैं, जिससे वह नोट पर दिखने से पहले ही चर्चा में आ चुकी हैं। चेंज डॉट ओआरजी (Change.org) पर सोमवार शाम तक करीब 13,000 लोग समर्थन दे चुके हैं। टीपू सुल्तान की वंशज और भारत के सुफी संत हजरत इनायत खान की बेटी नूर इनायत खान अल्पसंख्यक समुदाय की पहली मुस्लिम महिला ब्रिटिश की करेंसी पर दिखने वाली हैं। ऐसा पहली बार होगा जब किसी आर्म्ड फोर्स के सदस्य को ब्रिटिश करेंसी पर जगह मिलेगी।
कौन थीं नूर इनायत खान?
एक मुस्लिम सुफी संत भारतीय पिता और अमेरिकी मां की घर में 1914 में पैदा हुईं नूर इनायत खान का बचपन एक लेखिका के रूप में पेरिस में बीता। जब दूसरा विश्व युद्ध शुरू हुआ, तब नूर का परिवार यूके पलायन हो गया और उसने विमेंस ऑक्सीलरी एयर फोर्स (WAAF) ज्वॉइन किया और फिर दो साल बाद वह एसओई की सदस्या बन गईं। फरवरी 1943 में उन्हें एयर इंटेलिजेंस की डायरेक्टर के रूप में चुना गया और जिसके बाद उन्हें दुश्मन के कब्जे वाले क्षेत्र में वायरलेस ऑपरेटर के रूप में विशेष प्रशिक्षण के लिए भेजा गया था। 1943 में नूर 29 साल की उम्र में फ्रांस पर दुश्मनों के कब्जे वाले क्षेत्र में एंट्री करने वाली पहली महिला रेडियो ऑपरेटर बनीं, जो कि सबसे खतरनाक जॉब्स में से एक थी।
धोखे का शिकार हुई और फिर मौत
गेस्टापो (नाजी जर्मनी की सीक्रेट पुलिस) ने एसओई के फ्रेंच जासूस नेटवर्क को नष्ट कर दिया। नूर के साथ काम कर रहे दूसरे एजेंटों की जल्द ही पहचान कर ली गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन अपने साथियों से संपर्क नहीं होने तक वह फ्रांस में ही रही। तीन महीनों तक नूर ने पेरिस में कई जगहों पर एजेंटों का सेल चलाया। नूर के कार्यों ने यूरोप में अनगिनत लोगों के जीवन को बचाया। आखिरकार नाजियों के धोखा का शिकार हुई नूर को गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में कई बार यातना का शिकार हुई नूर ने अपने देश के प्रति वफादार रहते हुए कोई भी जानकारी लीक नहीं की। आखिरकार 1944 में उसे डकाऊ कैंप में भेज दिया गया, जहां नूर और उनकी तीन साथियों की हत्या कर दी गई।
भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है नूर?
अहिंसा में विश्वास रखने वाली नूर इनायत खान फासीवाद के खिलाफ अपनी आवाज उठती रहती थीं। उनके पिता एक राष्ट्रवादी थे और नूर चाहती थी कि भारत भी ब्रिटिश हुकूमत से आजाद हो। नूर ने अपने सैन्य साक्षात्कारकर्ताओं से कहा था कि युद्ध के प्रयास के बाद वह भारतीय आजादी के लिए अभियान चलाएंगी। नूर न सिर्फ एक ब्रिटिश गौरव थीं, बल्कि भारत के लिए भी एक गर्व की बात है, जिसे यह सम्मान मिल रहा है।
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