अहमदिया मुसलमान कौन होते हैं, पाकिस्तान में उनके मस्जिदों को क्यों तोड़ा जा रहा है?
पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिमों को इंसान ही नहीं समझा जाता है और संविधान में उनके पास कोई अधिकार नहीं हैं। पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिमों को मुस्लिम नहीं माना जाता है।
Ahmadiyya Mosques: पाकिस्तान के कराची में हाल ही में अज्ञात हमलावरों ने अल्पसंख्यक अहमदिया समुदाय की एक मस्जिद के गुंबदों और मीनारों को तोड़ दिया। सोशल मीडिया पर शेयर किए गये तस्वीर और वीडियो में, लोगों को कराची के सदर में अहमदी मस्जिद के ऊपर चढ़ते और मस्जिद के ढांचे पर हथौड़ों से वार करते हुए देखा जा रहा है। अहमदिया समुदाय के मस्जिद पर हुए हमले के बाद एक बार फिर से पाकिस्तान की मजहबी कट्टरता सामने आ गई है। ऐसे में जानना जरूरी हो जाता है, कि आखिर अहमदी मुस्लिम कौन हैं और उनके मस्जिदों से पाकिस्तान के मुसलमानों को क्यों दिक्कत होती है?
अहमदी मस्जिद पर हमला
पाकिस्तान में पिछले लंबे अर्से से अहमदिया पूजा स्थल पर हमले किए जा रहे हैं और हाल ही में, कराची में जमशेद रोड पर अहमदी जमात खाता की मीनारों को ध्वस्त कर दिया गया है। एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल दिसंबर में पुलिस ने पंजाब के गुजरांवाला में एक मस्जिद से मीनारें हटा दीं थीं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, तोड़फोड़ करने वाले लोग तहरीक ए लब्बैक पाकिस्तान (TLP) के सदस्य हैं और जिस मस्जिद की मीनारों को तोड़ा जा रहा है, वह एक अहमदी मस्जिद है। आपको बता दें कि तहरीक-ए-लब्बैक वहीं पार्टी है जिसके नेता मौलाना साद रिजवी को एक हालिया वीडियो में भड़काऊ बयान देते हुए देखा गया था। रिजवी ने कहा था, कि हमें 'एक हाथ में कुरान और दूसरे में परमाणु बम लेकर दुनिया के सामने जाना चाहिए। पूरी कायनात हमारे कदमों पर झुक जाएगी'। पाकिस्तान की चरमपंथी पार्टी टीएलपी की स्थापना 1 अगस्त 2015 को मौलाना खादिम हुसैन रिजवी ने की थी। 2017 में टीएलपी ने एक औपचारिक राजनीतिक पार्टी का रूप ले लिया।
अहमदिया कौन हैं?
इस धार्मिक संप्रदाय की उत्पत्ति भारत के पंजाब में अमृतसर के पास कादियान में हुई है। मिर्जा गुलाम अहमद ने 1889 में अहमदिया आंदोलन की स्थापना की थी और इसे इस्लाम के अंदर सुधार की बात कहते हुए एक आंदोलन की तरह प्रचार-प्रसार किया गया। मिर्जा गुलाम अहमद को भी इस्लाम की रक्षा के लिए एक मसीहा की तरह प्रचार किया गया और अहमदिया मुसलमानों की वेबसाइट दावा करती है, कि इस संप्रदाय के मुसलमान पूरी दुनिया के करीब 200 देशों में फैले हुए है। मिर्जा गुलाम अहमद ने लोगों से कहा, कि उन्हें इस्लाम की शिक्षा का प्रसार करने के लिए अल्लाह ने भेजा है और उनके धरती पर आने की प्रतीक्षा ना सिर्फ मुसलमान, बल्कि ईसाई और यहूदी भी कर रहे थे। दावा किया जाता है, कि अहमदिया समुदाय की आबादी पूरी दुनिया में 1 करोड़ 20 लाख के करीब है, वहीं पाकिस्तान में करीब 25 लाख अहमदी मुसलमान रहते हैं। भारत में भी करीब 1 लाख के करीब अहमदिया मुसलमान रहते हैं।
अहमदिया संप्रदाय का उत्पीड़न
कट्टरपंथी मुस्लिम मौलवियों ने अहमदिया संप्रदाय का लंबे समय से विरोध किया है, जिनमें से कुछ मुस्लिम धर्मगुरु, अहमदिया को विधर्मी मानते हैं। हालाँकि, अहमदिया अपने धर्म में पैगंबर की केंद्रीयता पर विवाद नहीं करते हैं। अहमदिया समुदाय, पाकिस्तान में लगातार हमलों और उत्पीड़न का सामना करता रहा है। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग (HRCP) ने पहले पंजाब प्रांत के वज़ीराबाद जिले में एक अहमदिया पूजा स्थल की बदहाली की कड़ी निंदा की थी और देश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के ऐसे स्थानों की सुरक्षा का आह्वान किया था। अहमदिया मस्जिदों से अकसर मीनारों को हटाने के लिए आंदोलन चलाया जाता है, क्योंकि मुस्लिमों का मानना है, कि मस्जिद में लगे मीनार काफी पवित्र होते हैं और अहमीद मस्जिद में मीनार नहीं होने चाहिए। पाकिस्तान की कानून में भी इसके लिए दंड के प्रावधान हैं।
लाहौर में अहमदिया मुस्लिमों का नरसंहार
अमेरिका के एशिया मामलों के पूर्व राजनयिक नॉक्स थेम्स ने पाकिस्तान के लाहौर में 1953 में हुए दंगे का हवाला देते हुए पिछले साल अपनी रिपोर्ट में कहा था, कि उस दंगे में हजारों अहमदिया मुस्लिमों को मारा दिया गया था और हजारों अहमदियाओं को पूरी तरह से उजाड़ दिया गया था। उन्होंने कहा था, कि '1953 में अहमदियाओं के साथ हुए नरसंहार के बाद हम लगातार देख रहे हैं कि उनके साथ भयानक भेदभाव किया जाता है, उन्हें झूठे मामलों में फंसाया जाता है और उन्हें खत्म करने की कोशिश हो रही है। वहीं, पाकिस्तान के कपड़ा उद्योग में एक तरह से अहमदिया मुस्लिमों का बहिष्कार कर दिया गया है'। उन्होंने कहा कि 'पाकिस्तान में अहमदिया मुस्लिमों को ना बोलने का अधिकार है और ना ही अपनी आवाज उठाने का। उन्हें समाज से अलग रखा जाता है, उनके साथ बेहद बुरी सलूक किया जाता है और सबसे खतरनाक बात ये है कि पाकिस्तान की संसद ने ही अहमदियाओं को मुस्लिम होंने का दर्जा छीना है और उनके पास कई संवैधानिक अधिकार नहीं हैं।'
अहमदिया मुस्लिमों के पास अधिकार नहीं
पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों को राजनीतिक और सामाजिक, दोनों तरह से प्रताड़ित किया गया है। जब पाकिस्तान में जुल्फीकार अली भुट्टो की सरकार थी, तो उन्होंने पाकिस्तान में दंगाई विचारधारा को काफी हवा दी और उन्होंने पाकिस्तान की संविधान में परिवर्तन करते हुए लिखवाया कि अहमदिया को इस्लाम से बाहर किया जाता है और अहमदिया को पाकिस्तान में मुसलमान नहीं माना जाएगा। नॉक्स थेम्स ने पॉडकास्ट के दौरान नोबेल पुरस्कार विजेता अब्दुस सलम का हवाला देते हुए कहा कि 'अब्दुस सलम पहले पाकिस्तानी थी, जिन्हें प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार दिया गया था, लेकिन उन्होंने अपने घर के अंदर ही अपनी खुशी मनाई। ऐसा इसलिए, क्योंकि वो अहमदिया मुस्लिम थे।' उन्होंने कहा कि 'पाकिस्तान में रहने वाला हर अहमदिया मुसलमान काफी ज्यादा देशभक्त होते हैं, वो अपने संविधान और समाज को मानते हैं, लेकिन पाकिस्तान में उनकी ना इज्जत है और ना ही उन्हें सम्मान दिया जाता है। उन्हें हर जगह दुत्कार दिया जाता है।' साल 1974 में, पाकिस्तान के प्रधान मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अहमदिया को गैर-मुस्लिम घोषित करते हुए संविधान में संशोधन किया और उनके मस्जिद में जाने पर पाबंदी लगा दी गई।
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