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अमेरिका के सख़्त रवैये के बाद सऊदी अरब का क्या होगा?

अमेरिका ने कहा है कि वह यमन में जारी युद्ध में अब सऊदी अरब का और साथ नहीं देगा.

By BBC News हिन्दी
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यमन
Reuters
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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यमन युद्ध में सऊदी अरब के लिए अमेरिकी सहयोग रोकने की घोषणा की है.

छह साल से चल रहे इस विनाशकारी युद्ध में अब तक एक लाख से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. इस युद्ध ने दसियों लाख लोगों को भुखमरी की कगार पर पहुंचा दिया है.

देश की विदेश नीति से जुड़े अपने पहले अहम भाषण में राष्ट्रपति बाइडन ने कहा, "यमन में युद्ध ख़त्म होना ही चाहिए."

साल 2014 में कमज़ोर यमन की सरकार और हूथी विद्रोहियों के बीच संघर्ष शुरू हुआ था. साल भर बाद इस संघर्ष ने तब गंभीर रूप ले लिया जब सऊदी अरब और आठ और अरब देशों ने अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस के समर्थन से यहां हूथी विद्रोहियों पर हवाई हमले करना शुरू किया. अब तक यहां सऊदी अरब के नेतृत्व वाला गठबंधन हूथी विद्रोहियों के ख़िलाफ़ हमले कर रहा था.

बाइडन से सत्ता संभालने के बाद कई अहम फ़ैसले लिए हैं और अपने पूर्ववर्ती के कुछ फ़ैसलों को पलटा है. उन्होंने अमेरिका आने वाले शरणार्थियों की संख्या बढ़ाने का फ़ैसला लिया है और जर्मनी से अमेरिकी सैनिकों को निकालने के फ़ैसले का वापिस लिया है. ये सैनिक विश्व युद्ध द्वितीय के ख़त्म होने के बाद से जर्मनी में हैं.

यही नहीं बाइडन के नेतृत्व वाली अमेरिकी सरकार, पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल के दौरान अरब देशों के साथ किए गए अरबों डॉलर के सैन्य समझौतों की भी समीक्षा कर रहा है.

अमेरिका ने सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के लिए हथियारों की बिक्री को ले कर किए सौदों को भी अस्थायी रूप से निलंबित करने का फ़ैसला किया है. इससे एफ़-35 लड़ाकू विमान सौदे पर भी असर होगा.

अमेरिका, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को लक्ष्य निर्धारित मिसाइलों की बिक्री भी रोक रहा है. इससे यमन में युद्ध पर तो असर होगा लेकिन अरब प्रायद्वीप में अल-क़ायदा के ख़िलाफ़ लड़ाई पर असर नहीं होगा.

वहीं राष्ट्रपति बाइडन के सऊदी अरब के सैन्य अभियान के लिए समर्थन रोकने के बाद सऊदी अरब ने कहा है कि वो यमन में 'राजनीतिक समाधान' के लिए प्रतिबद्ध है.

सऊदी अरब की सरकारी मीडिया के मुताबिक़ सऊदी शासन की तरफ से कहा गया है, "सऊदी अरब यमन संकट के व्यापक राजनीतिक समाधान के समर्थन में अपनी दृढ़ इच्छास्थिति कीको एक बार फिर दोहराता और अमेरिका के यमन संकट के समाधान के लिए कूटनीतिक प्रयासों का समर्थन करने पर ज़ोर देने का स्वागत करता है."

सऊदी अरब ने बाइडन के सऊदी अरब की संप्रभुता की रक्षा करने और उसके ख़िलाफ़ ख़तरों से निपटने में सहयोग करने की प्रतिबद्धता का भी स्वागत किया है.

सऊदी अरब के डिप्टी रक्षा मंत्री प्रिस ख़ालिद बिन सलमान ने ट्विटर पर लिखा है, "संकट का समाधान खोजने के लिए दोस्तों और सहयोगियों के साथ काम करने, इलाक़े में ईरान और उसके छद्म सहयोगियों के हमलों से निपटने के लिए राष्ट्रपति बाइडन की प्रतिबद्धता का हम स्वागत करते हैं. बीते सात दशकों की तरह सभी मुद्दों पर काम करने के लिए हम अमेरिका में अपने मित्रों के साथ मिलकर काम करने की उम्मीद करते हैं."

अपने बयान में प्रिंस खालिद बिन सलमान ने कहा, "हम यमन संकट का समाधान निकालने और वहां मानवीय स्थिति को सुधारने में अमेरिका के साथ मिलकर काम करने को लेकर उत्सुक हैं."

सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात को संदेश

राष्ट्रपति बाइडन ने वरिष्ठ राजनयिक टिमोथी लेंडरकिंग को यमन के लिए अमेरिका का विशेष दूत नियुक्त किया है. उन्हें संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर काम करने और यमन संकट का हल निकालने की ज़िम्मेदारी दी गई है.

यमन में राजधानी सना समेत अधिकतर हिस्सों पर हूथी विद्रोहियों का नियंत्रण है. टिमोथी को विद्रोहियों और अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सरकार के बीच फिर से वार्ता शुरू कराने की ज़िम्मेदारी दी गई है.

बीबीसी संवाददाता लीस डूसेट के मुताबिक़ राष्ट्रपति बाइडन की ये घोषणा यमन युद्ध को समाप्त करने की उनकी प्रतिबद्धता की पुष्टि करती हैं.

यमन युद्ध में सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन के लिए अमेरिकी सहयोग रोकने से ये रक्तरंजित अध्याय तुरंत समाप्त नहीं हो जाएगा. लेकिन ये सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के नेताओं के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति की तरफ़ से सख़्त संकेत ज़रूर है.

सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात का नेतृत्व भी यमन युद्ध से बाहर निकलने के रास्ते तलाश रहा है.

हालांकि राष्ट्रपति बाइडन के लिए यमन में शांति स्थापित करना एक बड़ी चुनौती हो सकती है.

बाइडन ने ये काम टिमोथी लेंडरकिंग को सौंपा है जो कई सालों से इस मुद्दे पर काम कर रहे हैं और इससे जुड़े सभी लोगों को जानते हैं.

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से सऊदी अरब के मज़बूत संबंध थे. उन्होंने ना सिर्फ़ यमन युद्ध में सऊदी अरब का सहयोग जारी रखा था बल्कि सऊदी अरब के साथ हुए रक्षा समझौतों को अमेरिका के रक्षा उद्योग के लिए अहम बताया था.

राष्ट्रपति ट्रंप के सत्ता से जाने के बाद सऊदी अरब और अमेरिका के रिश्तों में आया बदलाव दिखने लगा है. बाइडन की ताज़ा घोषणा के बाद ये स्पष्ट भी हो गया है कि अमेरिका और सऊदी अरब के रिश्ते अब फिर से परिभाषित होंगे.

बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद सऊदी अरब को लेकर अमेरिका की नीति में बदलाव तो ज़रूर होगा लेकिन विश्लेषकों को लगता है कि इसका सऊदी पर बहुत ज़्यादा असर नहीं होगा.

मध्यपूर्व मामलों के जानकार और जेएनयू में प्रोफ़ेसर पीआर कुमारास्वामी कहते हैं, "यमन को लेकर बाइडन की नीति सऊदी अरब को इस युद्ध से बाहर निकलने का मौक़ा देगी."

वहीं अंकारा की इल्द्रिम यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर और अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार ओमेर अनस कहते हैं, "अमरीका और सऊदी अरब के रिश्ते हमेशा से मज़बूत रहे हैं. ऊर्जा और सुरक्षा क्षेत्र में दोनों के बीच नज़दीकी संबंध हैं. यदि अमेरिका सऊदी अरब को दोस्त ना बनाए तो फ़ारस की खाड़ी की सुरक्षा पर सवाल उठेंगे. ऐसे में बाइडन के आने से सऊदी अरब और अमेरिका के रिश्तों पर बहुत ज्यादा असर नहीं होगा."

यमन को लेकर बाइडन का रुख़ पहले से ही बिलकुल स्पष्ट था. ओमेर कहते हैं, "यमन को लेकर सऊदी अरब पर दबाव ज़रूर रहेगा. संयुक्त अरब अमीरात ने इस युद्ध से अपने आप को पीछे खींचने का ऐलान किया है, यदि यूएई पीछे हटता है तो यमन के मुद्दे को बातचीत से सुलझाया जा सकेगा."

जमाल खाशोजी
AFP
जमाल खाशोजी

सऊदी अरब के लिए मुसीबत बनेंगे ख़ाशोज्जी?

बाइडन प्रशासन में पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी की मौत का मामला सऊदी अरब को परेशान कर सकता है. सऊदी शासन के आलोचक ख़ाशोजी की तुर्की में सऊदी अरब के वाणिज्य दूतावास में हत्या कर दी गई थी.

ओमेर अनस कहते हैं कि बाइडन प्रशासन में ख़ाशोज्जी की मौत का मुद्दा फिर से उठ सकता है.

ओमेर कहते हैं, "जमाल खाशोज्जी की हत्या के मुद्द पर बाइडन प्रशासन ज़रूर सऊदी अरब को घेरेगा. इसे लेकर अमेरिका में कई क़ानूनी प्रक्रियाएं शुरू हो सकती हैं और उनमें क्राउन प्रिंस का नाम भी शामिल हो सकता है.यदि क्राउन प्रिंस का नाम आया तो सऊदी के लिए दिक्कतें हो सकती हैं. इस मुद्दे और इससे जुड़े क़ानूनी पहलुओं को कैसे सुलझाया जाएगा ये सऊदी के लिए एक बड़ा मुद्दा हो सकता है."

सऊदी अरब ख़ाशोज्जी की मौत से क्राउन प्रिंस के संबंध होने के आरोप को नकारता रहा है.

सऊदी अरब के लेखक और विश्लेषक अली शिहाबी कहते हैं, "अमेरिका को क्राउन प्रिंस को संदेह का लाभ देना होगा क्योंकि यहां कोई ठोस सबूत नहीं है."

खुफ़िया सूत्रों के हवाले से प्रकाशित मीडिया रिपोर्टों में दावा किया गया है कि सीआईए को "विश्वास है कि क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने ही खाशोज्जी की हत्या का आदेश दिया होगा."

लेकिन अली शिहाबी कहते हैं, "चाहे सीआईए हो या गृह विभाग हो या फिर पेंटागन हो, लेकिन सच ये है कि अमेरिका के लिए मध्यपूर्व में कुछ भी करने के लिए सऊदी अरब का साथ बेहद ज़रूरी है."

वहीं ओमेर अनस कहते हैं, "फ़ारस की खाड़ी की सुरक्षा अहम है और बाइडन प्रशासन नहीं चाहेगा कि यहां चीन या रूस का रसूख बड़े. बाइडन कह ही चुके हैं कि जहां-जहां रुस का प्रभाव है वहां-वहां अमेरिका अपना प्रभाव बढ़ाएगा."

हसन रूहानी
EPA
हसन रूहानी

ईरान समझौता

सऊदी अरब और अमेरिका के बीच ईरान के परमाणु समझौते को लेकर भी मतभेद हो सकते हैं. सऊदी अरब ने ओबामा के कार्यकाल के दौरान अनचाहे मन से ईरान डील का समर्थन भी किया था.

बाइडन कह चुके हैं वो ईरान के साथ हुए 2015 के परमाणु समझौते को फिर से लागू करने जा रहे हैं. हालांकि बाइडन प्रशासन ईरान पर कुछ नए दबाव बनाने की कोशिश ज़रूर करेगा. सऊदी चाहेगा कि इस मामले में उसकी कुछ बातें ज़रूर मान ली जाए. हालांकि ईरान कह चुका है कि जो समझौता ट्रंप ने रद्द किया था उसे उसी स्वरूप में दोबारा लागू किया जाएगा.

विदेश मामलों में यूरोपीय परिषद की मध्य पूर्व और उत्तर अफ़्रीका कार्यक्रम की डिप्टी डायरेक्टर एली जेरानमायेह कहती हैं, "अगर आप विदेश नीति, परमाणु असैन्यकरण और राजस्व पदों पर बाइडन प्रशासन की नियुक्तियों को देखें तो सभी के परमाणु वार्ताओं और समझौतों को लागू करने से सीधे संबंध रहे हैं."

ओमेर अनस कहते हैं, "ईरान समझौते पर अमेरिका और ईरान के बीच क्या होता है यह भी सऊदी अरब के लिए बेहद अहम होगा. सऊदी अरब अपने पड़ोस में शिया देश ईरान को ताक़तवर होता देखना नहीं चाहेगा."

सऊदी अरब मध्यपूर्व में अमेरिका का अहम सुरक्षा सहयोगी है और इस क्षेत्र में शिया विद्रोही गुटों को रोकने में उसकी भूमिका अहम रही है.

प्रोफ़ेसर कुमारास्वमी कहते हैं, "बाइडन ईरान को लेकर राष्ट्रपति ओबामा की नीति नहीं अपना सकेंगे. वो सऊदी अरब को नज़रअंदाज़ नहीं कर पाएंगा. इसका मतलब ये है कि बाइडन की ईरान नीति में सऊदी अरब को भी जगह दी जाएगी."

जमाल खाशोजी
Getty Images
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व्हाइट हाऊस में नई टीम के साथ रिश्ते बनाने की चुनौती

राष्ट्रपति बाइडन ने अपने चुनाव अभियान के दौरान कहा था कि ट्रंप प्रशासन ने सऊदी अरब के नाम का ब्लैंक चेक काटा था. उन्होंने ट्रंप पर सऊदी अरब में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर आंखें मूंद लेने के आरोप भी लगाए थे.

व्हाइट हाऊस की नई टीम कह चुकी है कि सऊदी अरब के साथ रिश्ते दोबारा निर्धारित किए जाएंगे और इनके केंद्र में मानवाधिकार होंगे. साल 2017 में क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की सत्ता पर पकड़ मज़बूत होने के बाद से उन्होंने सऊदी अरब में कई सामाजिक बदलाव किए हैं. लेकिन अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अभी भी सख़्त पहरा है.

प्रोफ़ेसर पीआर कुमारास्वामी कहते हैं , "ये तो साफ़ है कि ट्रंप जैसा दोस्ताना नहीं रहेगा. लेकिन बीते चार सालों में सऊदी अरब में भी बहुत कुछ बदल गया है. सऊदी अरब अब इसराइल के करीब है."

"अमेरिका में आई नई सरकार के कारण जो नए हालात पैदा हुए हैं वो सऊदी के लिए चुनौती भी हैं और मौक़ा भी. सबसे अहम ये है कि सऊदी अरब अपने पत्ते कैसे खेलता है."

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English summary
What will happen to Saudi Arabia after America's stern attitude?
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